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बलिया-छपरा रेल दोहरीकरण में माझी पुल का पेंच

बलिया-छपरा रेलखंड के दोहरीकरण में मांझी रेल पुल के निर्माण का बड़ा पेंच फंसा हुआ है। करीब 21 साल पहले ही पुल निर्माण का काम शुरु हो गया लेकिन तकनीकी...

Newswrap हिन्दुस्तान, बलियाFri, 9 April 2021 03:13 AM
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बलिया। निज संवाददाता

बलिया-छपरा रेलखंड के दोहरीकरण में मांझी रेल पुल के निर्माण का बड़ा पेंच फंसा हुआ है। करीब 21 साल पहले ही पुल निर्माण का काम शुरु हो गया लेकिन तकनीकी कारणों के चलते यह आज तक पूरा नहीं हो सका। इसके चलते बलिया-छपरा रेलखंड पर दोहरीकरण कार्य में बाधा खड़ी हो गयी है।

औड़िहार जंक्शन-छपरा जंक्शन के बीच दोहरीकरण का प्रस्ताव कुछ साल पहले तैयार किया गया। मंजूरी मिलने के बाद इस रुट पर स्थित यूपी-बिहार की सीमा पर घाघरा नदी पर मांझी में निर्मित रेल पुल का निर्माण कार्य का शिलान्यास साल 2012 में हुआ। काम का शुभारम्भ तत्कालीन जीएम गोरखपुर ने किया। करीब 70 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाली इस पुल पर काम शुरु हो गया। काम पूरा होने का लक्ष्य साल 2017 निर्धारित किया गया था। हालांकि यह समय सीमा बीतने के बाद भी पुल बनकर तैयार नहीं हो सकी।

सूत्रों की मानें तो मांझी रेल पुल के लिये कुल 19 खम्भों को तैयार करना था, जिसमें दो एप्रोच पोल शामिल हैं। निर्माण कार्य शुरु हुआ तथा 15 खम्भे तैयार भी हो गये। इसी बीच इसकी जांच करने पहुंचे रेलवे के इंजीनियरों ने खम्भों अथवा गार्डर में तकनीकी गड़बड़ी होने की बात कह दी। इसके बाद पुल का निर्माण कार्य ठप हो गया।

दोहरीकरण में मांझी पुल की अहम भूमिका

बलिया-छपरा रेलखंड पर मांझी में बनने वाले पुल का दोहरीकरण में बड़ी भूमिका है। इस पुल के निर्माण के बाद ही इस रुट पर डबल ट्रैक की योजना पूरी हो सकती है।

23 नवम्बर 2015 को यहां पहुंचे तत्कालीन रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने बलिया-छपरा रेलखंड के दोहरीकरण की घोषणा की थी। चूंकि मांझी का पुल इसी रेलखंड पर है, लिहाजा दोहरीकरण का काम पूरा होने में इस पुल की भूमिका अहम है। पुल निर्माण पूरा होने लम्बी दूरी की ट्रेनों के संचालन से न सिर्फ लोगों के आवागमन में सहुलियत होगी, बल्कि व्यापारिक गतिविधियों में भी तेजी आयेगी।

86 साल का हो चुका है पुराना पुल

बलिया-छपरा रेलखंड पर मांझी में घाघरा नदी पर मौजूदा रेल पुल काफी पुराना हो चुका है। पुल अब काफी हद तक जर्जर भी हो चुका है। रेल सूत्रों की मानें तो इस पुल का निर्माण वर्ष 1935 में पूरा हुआ था। करीब 86 साल पुराने इस पुल से होकर वर्तमान में करीब तीन से चार दर्जन सवारी व एक्सप्रेस गाड़ियों का संचालन होता है। बताया जाता है कि राजधानी जैसी सुपरफास्ट ट्रेन भी इसी बूढे़ पुल से होकर ही दौड़ती है। इसके अलावे हर रोज कई मालगाड़ियां भी पुल से होकर गुजरतीं हैं।

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