हाशिए पर रह रहे परिवारों को मदद की आस
कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में सबसे अधिक परेशानी उन परिवारों को हो रही है, जिनकी गृहस्थी रोज कमाने-खाने से चलती थी। ऐसे लोगों को यदि सरकारी राशन मिल भी जाय तो बाकी सामानों को खरीदने का संकट है।...
कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन में सबसे अधिक परेशानी उन परिवारों को हो रही है, जिनकी गृहस्थी रोज कमाने-खाने से चलती थी। ऐसे लोगों को यदि सरकारी राशन मिल भी जाय तो बाकी सामानों को खरीदने का संकट है। ‘हिन्दुस्तान ने ‘घंटी बजाओ की अपनी श्रृंखला के तहत गड़वार ब्लाक के रतसर कस्बा में लोगों के घरों पर दस्तक दी। इस दौरान कई समस्याएं सामने आयीं। मजदूरी करने वालों के खाने-पीने का संकट है तो दवा-इलाज के लिए भी तमाम परिवार जूझ रहे हैं।
गृहस्थी चलाने का संकट, नहीं मिला रसोई गैस
रतसर कस्बा के अगरधत्ता मुहल्ला निवासी गुड्डू शर्मा की पत्नी संगीता मिलीं तो लॉकडाउन से पैदा हुए हालात का दर्द जुबां पर आ गया। संगीता ने बताया कि पति दूसरे शहर में रहकर मजदूरी आदि करते हैं। उसी से रोजी-रोटी चलती है। होली में गुड्डू घर आए थे लेकिन उसके बाद ही लॉकडाउन के चलते वापस काम पर नहीं जा सके। हालांकि इस बात पर उसने राहत भी ली। कहा कि गए होते तो वहां भी वे फंस गए होते। बताया कि काम-धंधा बंद हो जाने से रोजी-रोटी का संकट हो गया है। पति-पत्नी के साथ ही दो बच्चों के भोजन की व्यवस्था कठिन हो गया है। इस परिवार को उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन भी मिला है। दो महीना पहले गैस खत्म हो गया। सरकार के नि:शुल्क गैस देने के आदेश के बाद से लगातार एजेंसी का चक्कर लगा रहे हैं लेकिन गैस नहीं मिली है। पता चला कि कुछ कागजी गलती के चलते खाते में गैस का पैसा नहीं आ सका है। इससे लकड़ी के चूल्हा पर खाना बनाना पड़ रहा है। राशन नहीं होने से यह चूल्हा भी ठंडा होने के कगार पर आ गया है।
परिवार को सरकारी मदद का इंतजार
रतसर क्षेत्र के नहर के पूरब रतसर-पचखोरा मार्ग पर सड़क के किनारे समरजीत का घर है। यहां उनकी पत्नी के अलावा दो पुत्र व दो पुत्री समेत कुछ छह लोग हैं। पुश्तैनी धंधा के सहारे किसी प्रकार रोजी-रोटी चल रही थी। लॉकडाउन में वह काम भी बंद हो जाने से खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है। कहा कि सरकारी सुविधा के नाम पर भी अबतक कुछ नहीं मिला है। आज तक इस परिवार के पास कोई राशन कार्ड भी नहीं है। इसके चलते इन्हें अनाज भी नहीं मिल सका है। कहा कि परिवार की जीविका कैसे चलेगी, यह भी अब समझ में नहीं आ रहा है।
राशन कार्ड के अभाव में नहीं मिला खाद्यान्न
गड़वार ब्लाक के रतसर क्षेत्र के नहर से पूरब रतसर-पचखोरा मार्ग पर ही सड़क के किनारे जयजीत बसफोर का परिवार रहता है। इन सभी के रोजी-रोटी का एकमात्र जरिया इनका पुश्तैनी काम ही है। बताया कि लॉकडाउन के चलते काम-धंधा से लगायत मजदूरी आदि भी बंद है। परिवार के पास कोई राशन कार्ड भी नहीं होने के चलते सरकारी खाद्यान्न भी नहीं मिल सका है। राशन कार्ड के लिए कोटेदार, प्रधान से लेकर तमाम जगह दौड़-भाग किया लेकिन कार्ड नहीं बन पाया। राशन के अभाव में धीरे-धीरे परिवार के सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है। बताया कि सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली तो घर का चूल्हा भी बुझ जाएगा।
पैसे के अभाव में बेटे का इलाज कराना मुश्किल
रतसर कस्बा के (ईदगाह) की शकीना खातून पत्नी मुन्ना डफाली किराये के मकान में रहती हैं। परिवार के छह पुत्र व दो बेटियां हैं। राशन के नाम पर परिवार को 10 किलो खाद्यान्न मिला है। पति भिवंडी (राजस्थान) में रहकर मजदूरी करते हैं। लॉकडाउन में उनका भी काम बंद है और वे वहीं फंसे हैं। एक लड़का रोजगार के सिलसिले में ही दिल्ली गया था लेकिन वह भी लॉकडाउन में वहीं बैठा है। एक बेटे की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है और पैसे के अभाव में उसका इलाज भी नहीं हो पा रहा है। बताया कि लॉकडाउन के चलते चूल्हा जलाना मुश्किल हो गया है ।
नहीं मिली सहायता तो ठंडा हो जाएगा चूल्हा
रतसर कला के शिवजी सिंह इंटर कालेज के पास किराये के मकान में रह रहीं अंजुम आरा अपने पति हादी के साथ रहती हैं। इनके अलावा इनकी तीन बेटियां हैं। हादी किसी प्रकार मजदूरी आदि के जरिए परिवार की आजीविका चलाते थे। लॉकडाउन के चलते मजदूरी का काम मिलना बंद हो गया है। ऐसे में यह परिवार आर्थिक बदहाली का सामना करने लगा है। बताया कि एक समाजसेवी ने खाद्यान्न का पैकेट उपलब्ध कराया था लेकिन वह भी अब खत्म होने को है। बताया कि सरकारी राहत के नाम पर कुछ नहीं मिला है। यदि जल्द ही कोई मदद नहीं मिली तो चूल्हा जलाना भी मुश्किल हो जाएगा।
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