बोले बलिया : बड़ी कंपनियों की दखल, पालिका की मार, हम कैसे चलाएं कारोबार
Balia News - फर्नीचर कारोबारियों को ऑनलाइन शॉपिंग और बड़ी कंपनियों के कारण गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय प्रशासन की उपेक्षा और जल जमाव के कारण उनका धंधा मंदा हो गया है। उद्योग विभाग का सहयोग न...
फर्नीचर कारोबार से जुड़े लोगों के सामने बाजार के बढ़ते दायरे की गंभीर चुनौतियां हैं तो स्थानीय स्तर पर उपेक्षा का दर्द भी सालता है। ऑनलाइन शॉपिंग और बड़ी कंपनियों की दखल से इनका धंधा मंदा हो गया है। शहर में जल जमाव और नालियां चोक होने से लकड़ियां एवं फर्नीचरों के खराब होने का खतरा बना रहता है। उद्योग विभाग का अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने से भी इनका कारोबार प्रभावित हो रहा है। अतिक्रमण के खिलाफ अभियान में होने वाली मनमानी इन्हें गंभीर चोट पहुंचाती है। नगर के एलआईसी रोड पर ‘हिन्दुस्तान से चर्चा में फर्नीचर कारोबारी शैलेंद्र सिंह ने बाजार के बदलते ट्रेंड से बात की शुरुआत की। कहा कि आजकल लोग अपने घरों को सजाने के लिए महंगे से महंगे वूडेन आइटम खरीदने में नहीं झिझकते हैं। बड़े-बड़े शोरूम व मॉल में ये बिकने लगे हैं। लकड़ी की गुणवत्ता की बजाय बड़ी कंपनियों का जोर चमक-दमक और फीनिशिंग पर होता है। ग्राहक भी फिदा होकर उनकी खरीदारी कर रहे हैं। उनके उत्पाद आर्ट बोर्ड के बने होते हैं। लोगों को इसका पछतावा कुछ समय बाद होता है, लेकिन खामियाजा हम जैसे कारोबारी भुगत रहे हैं। बताया कि कुछ दशक पहले तक लकड़ी की कोई कमी नहीं थी। इसके चलते कारोबार करना काफी आसान था। कम पूंजी में ही उद्योग शुरू हो जाता था। अब एक ओर जहां इमारती लकड़ियों की कमी है, वहीं मशीनी युग में फर्नीचर बनाने के लिए कई तरह के इलेक्ट्रॉनिक उपकरण भी खरीदने होते हैं। इमारती लकड़ियां गैर प्रांतों से आने के कारण महंगी हो गयी हैं। आम व सागौन तो कमोवेश जिले में उपलब्ध हो जाता है लेकिन शीशम, महोगनी, साखू आदि अन्य जगहों से ही आते हैं। इनसे बने फर्नीचर की कीमत मनमाफिक नहीं मिलती।
अच्छी कमाई के लिए लगन का इंतजार
राजेश गुप्त ने कहा कि फर्नीचर का धंधा सीजनल है। अच्छी कमाई के लिए लगन का इंतजार होता है। वर्ष में अधिकतम छह माह कारोबार चलता है। उसी कमाई से सब कुछ मैनेज करना होता है। कारीगरों को छोड़ नहीं सकते। खाली बैठने पर भी उनका भुगतान करना होता है। दुकान का किराया, बिजली बिल समेत अन्य खर्च पूरे साल होते हैं। पूरे साल पूंजी भी फंसी रहती है। कई कारीगर लगन के बाद रोजी-रोटी के लिए दूसरे शहरों में चले जाते हैं। जितेंद्र वर्मा ने बताया कि ऑनलाइन बाजार भी कारोबार को प्रभावित कर रहा है। मशीन से हुई फिनिशिंग के आकर्षण में वे ऑनलाइन खरीद करने लगे हैं। कई बार सामान घर आने पर उन्हें पछतावा भी होता है।
जुर्माना लगाते हैं लेकिन संसाधन नहीं देते
राजेश गुप्त ने कहा कि स्थानीय प्रशासन का रवैया भी ठीक नहीं है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर नगर पालिका आए दिन उत्पीड़न कर रही है। जिन मार्गों पर ट्रैफिक व अतिक्रमण अधिक है, वहां जाने की बजाय उसका पूरा जोर एलआईसी रोड पर ही होता है। महीने में पांच से छह बार इस मार्ग पर ही अभियान चलता है, जबकि यह सड़क काफी चौड़ी है, अन्य मार्गों की तरह व्यस्त भी नहीं है। अतिक्रमण हटाने के नाम पर लकड़ियां उठा ली जाती हैं, जुर्माना लगा दिया जाता है, जबकि हम दुकान के सामने पटरी पर काम कर रहे होते हैं। इसी तकलीफ को सुधीर और बलजीत सिंह ने विस्तार देते हुए कहा कि जुर्माना लगाने वाली नगर पालिका संसाधन के नाम पर कुछ नहीं देती। आसपास कहीं डस्टबिन नहीं है। लकड़ी के काम में कचरा भी निकलता है। लाचारी में हम दुकानों के आगे ही जमा करते हैं। बाद में कर्मचारी उठाकर ले जाते हैं। बताया कि पहले एक बड़ा सा डस्टबिन रखा गया था, जो गायब हो गया है।
हैंडपंप न पेयजल का इंतजाम
आशीष और जितेंद्र वर्मा ने बताया कि इस पूरे इलाके में न तो हैंडपंप है और न ही पेयजल का अन्य कोई इंतजाम। एक हैंडपंप था भी तो वर्षों से खराब पड़ा है। हर दुकान पर औसतन तीन-चार कारीगर नियमित काम करते हैं। वे पानी खरीदकर नहीं पी सकते। नगर पालिका को चाहिए कि कम से कम एक सरकारी हैंडपंप लगवाने के साथ आसपास कहीं आरओ प्लांट लगवा दे।
सिमटा 60 फीसदी कारोबार
सुधीर कुमार ने बताया कि किसी समय फर्नीचर कारोबार के लिए एलआईसी रोड मशहूर था। जिले भर के लोग शादी-विवाह के मौके पर बड़ी खरीदारी के लिए यहां पहुंचते थे। अब वह रौनक नहीं रही। लागत बढ़ने व आमदनी कम होने के कारण दिनों-दिन व्यापार सिमटता जा रहा है। पहले इस मार्ग पर फर्नीचर के लगभग 25 बड़े कारोबारी थे। अब इनकी संख्या 15 तक रह गयी है। अधिकांश कारोबारी बैंकों से लोन लेकर धंधा करते हैं। बाजार मंदा होने के कारण लोन की भरपाई भी मुश्किल हो जाती है। कोरोना काल में हुए नुकसान से अब तक व्यापारी उबर नहीं पाए हैं। कुछ तो सामान समेट गैर प्रांतों को पलायन कर गए, जबकि कुछ अपना काम समेटकर दूसरों के यहां नौकरी करने को विवश हैं।
नालियां चोक, बारिश में सामान का नुकसान
शैलेंद्र सिंह ने बताया कि बरसात के दिनों में सामान को सुरक्षित रखना काफी मुश्किल हो जाता है। सड़क व नालियों का निर्माण मानक के अनुसार नहीं होने के कारण सड़क काफी ऊंची हो गयी, जबकि नाली नीचे। नालियों की सफाई हुए एक जमाना हो गया। वह पूरी तरह चोक हो गयी हैं। बारिश होते ही नाली व सड़क का पानी दुकानों और घरों में पहुंच जाता है। फर्नीचर के अलावा लकड़ियों को बचाने के लिए काफी मशक्कत करनी होती है। हर वर्ष बरसात में कई दिनों तक जलभराव के कारण सीलन से फर्नीचर खराब हो जाते हैं।
उद्योग विभाग से नहीं मिलता सहयोग
राजेश गुप्त ने बताया कि फर्नीचर कारोबार से करीब 200 कारीगर परिवारों का भरण-पोषण होता है। इसमें अलग-अलग फर्नीचर के कारीगरों के अलावा पेंटर आदि भी हैं। फिर भी कारोबार को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस योजना नहीं चली। सरकार से संचालित विश्वकर्मा योजना का लाभ भी गिनती के ही कारीगरों को मिल सका। उद्योग विभाग की ओर से भी कोई मदद नहीं मिलती। आवेदन करने के बाद लटकाने-भटकाने का काम होता है।
व्यापार में लकड़ी का संकट
महंथ प्रसाद और अनूप ने बताया कि लकड़ी के कारोबार में लकड़ी का ही संकट है। मजबूर होकर पलंग, ड्रेसिंग, सोफा, डाइनिंग टेबल समेत अन्य सामानों में प्लाई भी लगानी पड़ती है। पंजीकृत आरा मशीन संचालक माल बाहर से मंगवाते हैं। उनके यहां से आर्डर के अनुसार लकड़ी खरीदकर लाते हैं और अपना कारोबार करते हैं। इससे कुछ हद तक समस्या का निदान हो जाता है लेकिन खर्च बढ़ जाता है। इसके चलते फर्नीचर की कीमत भी बढ़ती है। दूसरी ओर ग्राहक कीमत की बड़ी कंपनियों से तुलना करते हैं। वे लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करतीं तो जाहिर है, सस्ता बेचेंगी ही।
सुझाव :
अतिक्रमण हटाने के नाम पर फर्नीचर कारोबारियों को परेशान न किया जाय। मनमाने ढंग से लगने वाले जुर्माने पर रोक लगनी चाहिए।
फर्नीचर कारोबार के लिए उद्योग विभाग सहयोग करे। आवेदनों का निस्तारण प्राथमिकता से किया जाय। अनुदान मिलने से कारोबार को बढ़ा सकेंगे।
नालियों की मरम्मत के साथ ही उसकी नियमित सफाई होनी चाहिए। इससे बरसात के दिनों में जलभराव होने तथा लकड़ी के नुकसान का डर नहीं रहेगा।
एलआईसी रोड पर जगह-जगह कूड़ेदान की व्यवस्था हो ताकि हम कचरे को एक जगह रख सकें। नपा को कूड़ा उठाने में भी सहुलियत होगी।
फर्नीचर बाजार में खराब हैंडपंप की मरम्मत के अलावा नया हैंडपंप लगाया जाय। आरओ प्लांट लगाने से करीगरों व दुकानदारों को राहत मिलेगी।
शिकायतें :
अतिक्रमण हटाने के नाम पर बिना वजह कारोबारियों को परेशान किया जाता है। मनमाना जुर्माना लगाने से आर्थिक झटका लगता है।
फर्नीचर कारोबार के लिए उद्योग विभाग की ओर से सहयोग नहीं मिलता। जरूरी जानकारी भी नहीं दी जाती। बैंकों से लोन लेना महंगा होता है।
नालियां चोक होने से बरसात के दिनों में जलभराव हो जाता है। दुकान में पानी घुसने से लकड़ी-फर्नीचर खराब हो जाते हैं।।
कूड़ेदान की व्यवस्था नहीं होने से कचरा सड़कों के किनारे ही रखना पड़ता है। हवा चलने पर यह इधर-उधर विखरते हैं।
सरकारी स्तर पर लगा एकमात्र हैंडपंप खराब पड़ा है। आरओ भी नहीं होने से सबसे अधिक दिक्कत कारीगरों व मजदूरों को पीने के पानी के लिए होती है।
कारोबारी दर्द :
एलआईसी मार्ग पर पानी निकासी की व्यवस्था नहीं है। नालियां बजबजा रही हैं। बारिश में सामान भी खराब होता है।
विक्की कुमार
लकड़ी बाहर से मंगानी पड़ती है। इससे लागत बढ़ती है तो फर्नीचर की कीमत भी बढ़ जाती है।
दीपक कुमार
वर्तमान में पाटिल बोर्ड (कूड) का पलंग, ड्रेसिंग, सोफा रेडीमेड आ रहा है। इसका असर स्थानीय कारोबारियों पर पड़ा है।
महंथ प्रसाद
बड़ी कंपनियों के दखल से प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। सस्ते के चक्कर में क्वालिटी से समझौता करना पड़ता है।
जितेंद्र वर्मा
पाटिल बोर्ड को एसी कमरे या अधिक धूप में रख दिया जाय तो खराब हो जाता है। जबकि लकड़ी, प्लाईयुक्त फर्नीचर के साथ ऐसा नहीं है।
सुनील कुमार सिंह
नगर पालिका को सबसे अधिक अतिक्रमण एलआईसी मार्ग पर ही दिखता है। महीने में पांच से छह बार अभियान चलाया जाता है।
बलजीत सिंह
एलआईसी रोड पर न जाम लगता है, न ही अन्य सड़कों जैसा अतिक्रमण है। मगर नगर पालिका बार-बार इसी मार्ग पर अभियान चलाती है।
शैलेंद्र सिंह
फर्नीचर का काम केवल लगन भर चलता है। छह माह में जो कमाए रहते हैं, उसे ऑफ सीजन में खर्च कर देते हैं।
राजेश गुप्ता
विश्वकर्मा योजना से कुछ कारीगरों को लाभ मिला है, शेष जानकारी के अभाव में वंचित हैं। योजना का व्यापक प्रचार हो।
सुधीर कुमार
पंजीकृत आरा मशीन मालिक लकड़ी अपने यहां मंगाते हैं, जहां से हम कारोबारी लकड़ी लाते हैं। इससे खर्च बढ़ जाता है।
आशीष कुमार
एलआईसी मार्ग पर पेयजल की व्यवस्था नहीं है। गर्मी को देखते हुए हैंडपंप के साथ आरओ प्लांट की व्यवस्था होनी चाहिए।
अनूप कुमार
ऑफ सीजन में अधिकांश मिस्त्री कमाने गैर प्रांत चले जाते हैं। लगन शुरू होने पर मिस्त्री नहीं मिलते।
राजकुमार
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।