कर्म ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजा
बड़ौत, संवाददाता।कर्म ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजाकर्म ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजाकर्म ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजाकर्म ही सबसे ब
शहर की जैन स्थानक में धर्म सभा आयोजित की गई। जिसमें जैन संत भरत मुनि द्वारा प्रवचन किया गया। धर्म सभा में प्रवचन सुनने के लिए जैन समाज के लोगों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। उन्होंने कहा कि कर्म ही सबसे बड़ा धर्म और सबसे बड़ी पूजा हैं। इंसान को कर्म करते रहना चाहिए और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। मुनि द्वारा जैन स्थानक शहर में एक धर्म सभा को संबोधित किया गया। उन्होंने कहा कि धर्म किसी जाति या समुदाय में विभाजित नहीं हैं। इसे तो कोई भी कर सकता हैं। साधु-संतों के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है, जो किसी के दुख को दूर कर सके। लेकिन यह सत्य है कि उनके पास पहुंचने से बहुत से दुख स्वयं दूर हो जाते हैं। किसी भी जाति का इंसान हो आत्मा सभी में समान हैं। इसलिए किसी को भी बनता नहीं जा सकता हैं। आत्मा में ताकत है कि वह परमात्मा बन सकती हैं। साधु बनने वाले लोगों को पर टीका टिप्पणी करनी गलत होती हैं। जब इंसान स्वयं कुछ नहीं बन सकता तो दूसरों पर क्यों सवाल खड़े करता हैं। पहले खुद को देखो, उसके बाद कुछ करने या कहने की सोचना चाहिए। स्वयं की कमी दूर करते ही औरों की बहुत सी कमियां कम दिखने लगती है।
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