बड़ागांव में नहीं होता रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहन
- राम के साथ रावण की भी होती है पूजाबड़ागांव में नहीं होता रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों का दहनबड़ागांव में नहीं होता रावण, मेघनाद और कुंभकरण के प
देशभर में अलग-अलग जगहों पर दशहरे के उपलक्ष में रामलीला का मंचन किया जा रहा है। वर्तमान में गांव, शहर, कस्बे में काफी संख्या में लोग लीला को देखने के लिए पहुंच रहे हैं। दशहरे पर रावण पुतला दहन खास रहता है, लेकिन खेकड़ा तहसील क्षेत्र के रावण उर्फ बड़ागांव में रावण, कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले का दहन नहीं किया जाता, बल्कि दशहरे के दिन गांव के लोग तीनों भाइयों की पूजा करते हैं। यह परंपरा पूर्वजों के जमाने से चली आ रही है।
दहशरे पर देशभर में रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतलों का दहन होता है। इसके उलट बड़ागांव के ग्रामीण रावण को अपना पूर्वज मानते हुए उसका पूजन करते हैं। यह अजीब तो लगेगा, लेकिन यह ऐतिहासिक सत्य है। गांव में न तो रावण के पुतले का दहन होता है और न ही रामलीला। राजस्व रिकार्ड में भी गांव का नाम रावण उर्फ बड़ागांव दर्ज है। इसके पीछे पौराणिक किंवदंती प्रचलित है। बड़ागांव के ग्राम प्रधान दिनेश त्यागी उर्फ पप्पू त्यागी, मंशा देवी मंदिर समिति के अध्यक्ष राजपाल त्यागी और कोषाध्यक्ष उमेश त्यागी ने बताया कि त्रेता युग में रावण लंका में मां मंशादेवी को विराजमान करना चाहता था। रावण मां का शक्तिपुंज लेकर हिमालय से लंका जा रहा था। बड़ागांव में रावण को लघुशंका की शिकायत हुई, तो उसने मां का शक्तिपुंज ग्वाले को दे दिया।
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