जो करते हैं हिफाजत सरहदों की, समझते हैं वही कीमत सिरों की...
Badaun News - ककराला में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में शहीद हुए योद्धाओं की याद में शहीद मेला आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि पंकज श्रीवास्तव ने इस संघर्ष के महत्व पर प्रकाश डाला। मेले में कवि सम्मेलन और मुशायरा...

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष में ककराला में अंग्रेजों से मुकाबला में शहीद हुये योद्धाओं की याद में ककराला में शहीद मेले का आयोजिन किया गया। मेले का तीसरे दिन शनिवार को समापन हो गया। मुख्य अतिथि पंकज श्रीवास्तव ने प्रथम स्वतंत्रा संग्राम के बारे में बताया कि 1857 की क्रांति की बुनियाद पर आधुनिक भारत बना। इसने साबित किया कि हिन्दू और मुसलमान खून के रिश्ते में बंधे हैं। पहली बार अंग्रेजों से आजादी के लिए चले प्रथम स्वतंत्रता संघर्ष के जरिये स्वतंत्रता सेनानियों ने भारत राष्ट्र के सपने को देखा जो 1947 में साकार हुआ। शहीद मेला के आयोजक कांग्रेस जिलाध्यक्ष अजीत यादव कहा, ककराला वासियों ने प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज सेना के जनरल पैनी को मार गिराया और ककराला को आजाद करा दिया था।
शहीद मेला स्थल पर शहीदों की याद में देर रात शाम शहीदों के नाम से मुशायरा व कवि सम्मेलन हुआ। कवि सम्मेलन मुशायरे में कवि अरविंद धवल ने अपना प्रसिद्ध लोक गीत भैया न्यारे हो गए सुनाकर खूब तालियां बटोरीं। मुगले आजम उरौलवी ने शेर पढ़ा, कदम कदम पर मुझे डर दिखाई देता है...। खालिद नदीम बदायूंनी ने पढ़ा, जब भी बिछडे हुए लोगों को मिलाया जाए...। समर बदायूंनी ने कहा, जो करते हैं हिफाजत सरहदों की,समझते हैं वही कीमत सिरों की...। रागिव ककरालवी ने कुछ यूं कहा, यह सियासत की अगर चिंगारियां उठती रहीं...। मुबीन ककरालवी ने शेर पढ़ा,, इतनी रची बसी है कि मरने के बाद भी...। अध्यक्षता करते हुए सोहराब ककरालवी ने पढ़ा, एक ज़माने से खो गया हूं मै, तुम को मिल जाऊं तो ख़बर करना...। इस अवसर पर राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक आकिल खान , मेहरुल, आबिद अली, फैजियाब खान, तजम्मुल अंसारी, कामिल खान, खालिद महमूद आदि मौजूद रहे।
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