Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़बदायूंCelebration of Lord Krishna s Birth at Shrimad Bhagwat Katha in Shri Prachin Ramleela Ground

नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की सुन झूमे भक्त

श्रीप्राचीन रामलीला मैदान में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। भक्तों ने भजनों पर नृत्य किया और कथावाचक इंद्रेश ने भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मन को शुद्ध रखने के लिए नास्तिकों...

Newswrap हिन्दुस्तान, बदायूंTue, 19 Nov 2024 12:50 AM
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श्रीप्राचीन रामलीला मैदान में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया गया। जय कन्हैया लाल के उद्घोष से पूरा पांडाल वृंदावन बन गया और भक्त ब्रजवासी। भजनों पर भक्तों ने जमकर नृत्य किया। नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की ने सभी को प्रेम रस में सराबोर कर दिया। वृंदावन से आए भक्त भी जमकर थिरके। श्रीराधारानी प्रेम सेवा समिति द्वारा आयोजित श्रीमद्भागवत कथा में वृंदावन के कथावाचक इंद्रेश ने कहा कि तजो रे मन हरि बिमुखन को संग। मन को यदि शुद्ध रखना है तो नास्तिकों का संग छोड़ दो। पांच कर्मेन्द्रियां और पांच ज्ञानेन्द्रियां तो शुद्ध हैं, बस मन इन्हें भटका रहा है। मन को नियंत्रित करने के लिए अष्टांग योग जरूरी है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारप्णा, समाधि। यह योग हमें जीना सिखाता है। जीवन जीने के लिए नियम जरूरी है। इसके बाद कथावाचक ने भक्त ध्रुव और पहलाद की कथा श्रवण करायी। प्रहलाद ने अपने पिता को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया। उन्होंने बताया कि सुनना, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चना, वंदन, दासत्व और अंत में प्रभु से सखा भाव रखना। समिति के सदस्य मनोज यादव, मुकेश शंखधर, मुकेश यादव, अजीत सिंह, पवन गुप्ता, प्रदीप वार्ष्णेय और सुधाकर शर्मा, आकाश मिश्र, लखन शर्मा, पुरनमल शर्मा, नेमचंद्र, दीपक साहनी, विपनेश मिश्र, सुनीति मिश्र, सरिता वार्ष्णेय मौजूद थे।

भगवान का भजन हर स्थिति में कल्याणकारी

ब्रज के रसिक इंद्रेश ने वृंदावन में भक्तों की जुड़ रही भारी भीड़ को लेकर कहा कि भक्त वीडियो बनाकर यहां की स्मृति को ताजा रखना चाहते हैं। आधुनिकता बढ़ रही है। यदि यह भक्ति पथ पर बढ़ रही है तो सही है, लेकिन यदि संस्कृति से दूर ले जा रही है तो गलत है। रसिक ने कहा कि भगवान का मिलना तय है तो वर्तमान में किया गया भजन मार्ग बन जाता है। भगवान से मिलने का माध्यम बन जाता है कर्म। कुभाव से तो रावण को भी परमगति प्राप्त हुई थी, लेकिन समाज ने उसको आदर्श नहीं माना। प्रभु धाम जाने के बाद भी रावण वंदनीय नहीं है। भाव, कुभाव, अनख, आलसहु रामचरित मानस की इस पंक्ति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भगवान का भजन हर स्थिति में कल्याणकारी हैं।

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