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बोले अयोध्या:बाजारों में रेडीमेड व्यापार के हावी होने से बेरोजगारी की कगार पर पहुंचे दर्जी

Ayodhya News - अयोध्या में कपड़ा सिलाई का धंधा बुरी तरह प्रभावित हुआ है। रेडीमेड वस्त्रों के बढ़ते बाजार ने दर्जी कारीगरों की कमाई को 40-45 प्रतिशत तक घटा दिया है। अब युवा इस पेशे को छोड़कर अन्य व्यवसायों में जा रहे...

Newswrap हिन्दुस्तान, अयोध्याThu, 27 Feb 2025 06:07 PM
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बोले अयोध्या:बाजारों में रेडीमेड व्यापार के हावी होने से बेरोजगारी की कगार पर पहुंचे दर्जी

नंबर गेम-1- : शहर मे 1000 से अधिक हैं कपड़ा सिलाई करने की दुकानें। 2-: 5000 से अधिक दर्जी कारीगर करते हैं कपड़े की सिलाई।

अयोध्या। कहते हैं कि कब कौन सा बिजनेस आसमान छूने लगे और कौन सा बिजनेस रसातल में पहुंच जाए कहां नहीं जा सकता। ठीक यही बात वर्षों से कपड़ा सिलाई के धंधे में लगे दर्जी कारीगरों पर सटीक बैठती है। कुछ वर्ष पूर्व ही बाजारों में थोड़ी- थोड़ी दूर पर कपड़े की सिलाई करने वाले दर्जियों की दुकानें दिख जाती थी। लेकिन समय ने करवट लिया और कपड़ा सिलने की दुकानों की जगह अब रेडीमेड वस्त्रालय की दुकानें दिखने लगी हैं। कपड़ा सिलाई के धंधे में लगा युवा वर्ग तो इस धंधे को छोड़कर बाहर निकालकर अन्य धंधों में लग गया है। लेकिन पिछले 25 वर्षों से सिलाई कर रहे दर्जी कारीगर आज भी सिलाई के पेशे को जीवंत बनाए हुए हैं। रिकाबगंज के झारखंडी मोहल्ले में पिछले 30 साल से दर्जी कारीगर का काम कर रहे मोहम्मद कलीम का कहना है कि पहले सिलाई का धंधा ठीक-ठाक चल रहा था अच्छी कमाई भी हो रही थी लेकिन रेडीमेड उद्योग को बढ़ावा मिलने से हम लोगों को एक-दो माह छोड़कर बाकी समय खाली ही रहना पड़ता है। पहले होली दिवाली व ईद जैसे त्योहारी सीजन में हम लोग दिन के अलावा रात में कपड़े की सिलाई करते थे फिर भी सिलाई करने के लिए कपड़ा कम नहीं पड़ता था। आज के समय में दिन में एक-दो सेट कपड़ा ही सिलाई के लिए मिल पा रहा है। रेडीमेड उद्योग के बाजार में छा जाने की वजह से हम लोगों के काम में 40 से 45 प्रतिशत तक गिरावट आई है। पिछले 20 साल से रिकाबगंज में सिलाई का कार्य कर रहे मोहम्मद राशिद का कहना है कि रेडीमेड कपड़े के बाजार में आ जाने से लोगों को अब कपड़ा खरीद कर सिलाई करवाना महंगा लगने लगा है। इसी कारण शादी विवाह के सीजन को छोड़ दिया जाए तो आम दिनों में हम लोगों को बेगारी ही करना पड़ रहा है।

मेहनत के हिसाब से नहीं हो पा रही कमाई

सिलाई के कार्य में लगे दर्जी कारीगरों का कहना है कि मेहनत के हिसाब से हम लोगों की कमाई नहीं हो पाती है। दर्जी के कार्य में न हम लोग दिन देखते हैं न रात देखते हैं फिर भी इतनी भी कमाई नहीं हो पाती है कि अच्छी तरह परिवार का पालन पोषण कर सकें। कोरोना काल में यह दर्द काफी बढ़ गया था,कोरोना काल चला गया,हम लोग भूल भी गए लेकिन सिलाई के बिजनेस को धार अब तक नहीं मिल सकी है। सिलाई का कार्य कर रहे राकेश ने बताया कि दिनभर काम करने के बाद 300 से 400 रूपए की ही कमाई हो पाती है। आज के समय की मंहगाई को देखते हुए यह कमाई ऊंट के मुँह मे जीरा ही साबित हो रही है। इन्हीं आर्थिक दुश्वारियों के चलते नई पीढ़ी इस धंधे से दूर भाग रही है। नई पीढ़ी के युवा आंखों व हाथों की इस जुगलबंदी को अब किसी और क्षेत्र में आजमाना चाहते हैं,इसलिए इस धंधे से जुड़ने मे उनकी ख्वाहिश ही नहीं है।

सहालग मे चलता है धंधा,बाकी समय मे रहता है ठंडा

रिकाबगंज में कपड़े की सिलाई का कारोबार कर रहे मोहम्मद इश्तियाक अली ने बताया की कपड़ा सिलाई का धंधा साल में केवल दो-तीन माह शादी विवाह के सहालग के समय ही चमकता है बाकी समय ठंडा पड़ा रहता है। कपड़ा सिलने का कुछ काम होली,दीपावली व ईद जैसे त्योहार पर के समय भी मिल जाता है,बाकी समय काम करने के लिए ग्राहक का इंतजार ही करना पड़ता है। आज ऐसी बेगारी की स्थिति मे हम लोग अपने बच्चों को कपड़े सिलने के धन्धे से दूर रख कर अन्य व्यवसाय करने के लिए प्रेरित कर रहें हैं।

नहीं मिल पा रही कोई सरकारी मदद

वजीरगंज जप्ती में सिलाई का कार्य कर रहे राकेश कुमार व सुभाष नगर मे सिलाई का कार्य कर रहे नसरूल्ला ने बताया कि पिछले 40 साल से कपड़ा सिलने का काम कर रहा हूं लेकिन आज तक किसी भी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिल सकी है। राकेश कुमार ने बताया कि केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना की घोषणा तो की है लेकिन आज तक उसका भी फायदा नहीं मिल पाया है। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री विश्वकर्म योजना में सिलाई ट्रेड से अनुदान के लिए आवेदन किया था इसके लिए मुझे अयोध्या स्थित एक आईटीआई कॉलेज में 5 दिन का प्रशिक्षण भी दिया गया। प्रशिक्षण के कुछ माह बाद सर्टिफिकेट भी मिल गया है लेकिन आज तक इस योजना के तहत किसी भी प्रकार का लाभ नहीं मिल पाया है।

समस्या-

1. दर्जी कारीगरों को काम में सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है।

2. मेहनत अधिक होने व आय कम होने से युवा इस काम से दूरी बना रहे।

3. बढ़ता रेडीमेड कारोबार दुकान तक ग्राहकों को आने नहीं दे रहा है।

4. कारीगरों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा।

5. कारीगरों के सामने नई तकनीक सीखने का कोई माध्यम नहीं है।

सुझाव-

1. प्रत्येक कारीगर का मुफ्त स्वास्थ्य व दुर्घटना बीमा होना चाहिए।

2. कारीगरों की मजदूरी निश्चित होनी चाहिए।

3. सरकार द्वारा कारीगरों को आसानी से कम ब्याज पर लोन मिले।

4. प्रत्येक कारीगर का अनिवार्य रूप से पंजीकरण होना चाहिए ।

5. दर्जी कारीगरों से सिर्फ आठ घंटे ही काम कराने की व्यवस्था हो।

बोले लोग-

पिछले 30 साल से कपड़े की सिलाई का काम कर रहा हूं,पहले तो यह सिलाई का बिजनेस ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन पिछले कुछ सालों से रेडीमेड उद्योग की वजह से पूरी तरह मंद पड़ गया है। अब तो इस से होने वाली कमाई से घर के खर्चे भी ठीक से नहीं चल पाते।

मोहम्मद कलाम

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पिछले 25 वर्षों से सिलाई का काम कर रहा हूं लेकिन जिस तरह इस समय धंधा चौपट हुआ है ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था रेडीमेड व युवाओं के फैशनी कपड़े की मांग के चलते हम लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अब तो कुछ युवा दर्जी सिलाई का काम छोड़कर दूसरे व्यवसाय से जुड़ने लगे हैं।

मोहम्मद राशिद

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पिछले 35 साल से सिलाई का काम कर रहा हूं पहले तो काफी आय हो जाती थी जिससे घर के खर्चे भी आसानी से चल जाते थे साथ ही हर महीने बचत भी हो जाती थी लेकिन अब कुछ महीनों को छोड़ दे तो बाकी समय में बेगारी ही करना पड़ रहा है।

इश्तियाक अली

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कपड़े सिलाई का कार्य केवल सीजनल रह गया। शादी विवाह में सिलाई का कार्य मिल पाता है बाकी होली दिवाली ईद में भी अब पहले जैसा काम नहीं मिल पा रहा है। पहले की अपेक्षा 75 प्रतिशत तक काम कम हो गया है ।

मुश्ताक अली

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पिछले 40 साल से सिलाई का कार्य कर रहा हूं लेकिन रेडीमेड उद्योग के बाजारों में छा जाने से हम लोगों के धंधे में 40 प्रतिशत तक गिरावट आई है जिस घर चलाना मुश्किल हो रहा है।

राकेश कुमार

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गली मोहल्ले में महिलाएं अपने घर के अंदर ही सिलाई सीख कर कपड़े सिलने का कार्य कर रही हैं,जो हम लोगों से आधी कीमत पर ही घर में ही कपड़ा सिलाई कर तैयार कर देती हैं। इससे कुछ ही महिला ग्राहक हम लोगों के पास कपड़ा सिलवाने के लिए आ रहीं हैं।

मोहम्मद सनद

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पहले होली,दीपावाली व ईद जैसे त्योहारों पर काम अधिक होने की वजह से रात में भी सिलाई करनी पड़ती थी लेकिन अब यह सिलाई का धन्धा होली दीपावाली व ईद पर भी बेरंग ही रहता है।

फैजान अहमद

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हम लोग भले ही सिलाई की दुकान पर काम कर रहे हैं लेकिन हम लोगों के पास कपड़ा सिलवाने के लिए लोग कम आते हैं। कभी-कभी काम मिल जाता है,बाकी समय खाली बैठे रहना पड़ता है। ऐसी स्थिति मे घर चलाना काफी मुश्किल हो गया है।

मिठाई लाल प्रजापति

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दुकानों के रजिस्ट्रेशन के साथ ही दुकान पर काम करने वाले कारीगरों का भी रजिस्ट्रेशन किया जाए तथा उन्हें स्वास्थ्य व दुर्घटना बीमा का लाभ दिया जाए ताकि उनका भी परिवार सुरक्षित रहे।

रिजवान अहमद

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सरकार को सिलाई के क्षेत्र में महिलाओं को प्रशिक्षित कर उनके लिए सिलाई मशीन व सिलाई से संबंधित अन्य उपकरण उपलब्ध कराने की व्यवस्था करनी चाहिए जिससे महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें।

निसार

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हम जैसे सिलाई करने वाले कारीगरों को प्रति सेट सिलाई करने के 25 से 30 प्रतिशत दिया जाता है। काम रहने पर 500 से 600 रूपए तक कमाई हो जाती है। लेकिन काम न रहने पर घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता है।

मोहम्मद नसरूल्ला

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रेडीमेड सेक्टर के बाजारों मे हावी होने की वजह से हम लोगों की कपड़े की सिलाई ग्राहकों को महंगी लगने लगी है। इसी कारण ग्राहक रेडीमेड सेक्टर की तरफ मुड़ गया है और हम लोगों की दुकानें खाली हो गई हैं।

अब्दुल लतीफ

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शादी विवाह के सहालग को छोड़ दिया जाए तो हम लोगों के पास सिलाई का काम ही नहीं रहता। इक्का दुक्का लोग ही कपड़ा सिलाने के लिए आते हैं जिससे कुछ काम निकल जाता है। बाकी समय में आने वाली अगली सहालग के इंतजार में बैठे रहना पड़ता है।

महताब बानो

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रेडीमेड सेक्टर ने कपड़ा सिलाई का धंधा पूरी तरह से चौपट कर दिया है। पहले अच्छी खासी इनकम हो जाती थी अब तो केवल जीवन गुजारने के लिए ही सिलाई का धंधा करना पड़ रहा है।

अंकुर

बोले जिम्मेदार

कामगारों के रोजगार के लिए मुख्यमंत्री युवा उद्यमी योजना चलाई गई है,जिसके लिए अभी भी ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन चल रहा है। अयोध्या जनपद में 2000 कामगारों को इस योजना से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें 21 से 40 वर्ष की आयु तक के ऐसे कामगार आनलाइन रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं जिनके पास आधार कार्ड,पैन कार्ड,निवास प्रमाण पत्र, बैंक खाता हो व न्यूनतम कक्षा आठ पास हो। अहर्ताओं को रखने वाला कामगार आनलाइन आवेदन कर बैंक से पांच लाख रूपए तक का लोन प्राप्त कर सकता है। इसमें कामगार को किस्त तो भरनी पड़ेगी लेकिन अगले 4 वर्ष तक ब्याज सरकार वहन करेगी। 4 वर्ष के बाद 10 प्रतिशत का अनुदान भी कामगार को मिलेगा। इस योजना में 200 से ज्यादा ट्रेड हैं। जिले का लक्ष्य इसी मार्च तक 2000 लोगों को जोड़ना है जिसमे अभी तक लगभग 600 कामगारों ने आनलाइन रजिस्ट्रेशन कर दिया है। इसके लिए जनपद के 11 ब्लॉकों को मार्च तक लक्ष्य को पूरा करने का निर्देश दिया गया है।

महेन्द्र देव

जिला विकास अधिकारी

प्रस्तुति: शत्रुघ्न यादव, फोटो रविंद्र प्रताप सिंह

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