पोरबंदर और राजघाट के अलावा यूपी के इस जिले में भी है बापू की अस्थियां, पर्यटन स्थल के रूप में मिली पहचान
यूपी का रामपुर इकलौता ऐसा जिला है। जो बाबू की अस्थियों को समेटे हुए है। पोरबंदर और राजघाट के अलावा यहां भी उनकी समाधि है। हर जगह गांधी की प्रतिमाएं तो मिलेंगी लेकिन समाधि नहीं।
मुल्क की आजादी के दो साल बाद स्वतंत्र हुआ रामपुर उत्तर प्रदेश का इकलौता ऐसा जिला है, जहां की धरती, बापू की अस्थियों को भी अपनी गोद में समेटे हुए है। जी हां, भारत में पोरबंदर और राजघाट के अलावा किसी शहर में गांधी समाधि है, तो वह शहर रामपुर ही है। यहां के बाद कमोवेश हर शहर में गांधी प्रतिमाएं तो मिलेंगी, लेकिन गांधी समाधि नहीं।
आज बापू की पुण्य तिथि है। रामपुर उन्हें नमन कर रहा है। वजह है, रामपुर से बापू का रिश्ता। अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का रामपुर स्टेट के नवाब रजा अली खां बेहद सम्मान करते थे। उन्होंने ही रामपुर में गांधी समाधि बनवाई। रजा अली खां आठ फरवरी 1948 में स्पेशल ट्रेन से दिल्ली गए। उनके साथ पांच ब्राह्मण भी गए दिल्ली गए थे। अष्ठधातु के 18सेर के कलश में नवाब रजा अली खां ही दिल्ली से बापू की अस्थियां रामपुर लाए थे। दिल्ली से यहां तक हर स्टेशन पर ट्रेन रोकी गई थी। लोगों ने बापू की अस्थियों के दर्शन किए थे। 12 फरवरी को स्वार रोड स्थित मैदान में अस्थि कलश रखा गया, जहां लोगों का हुजूम उमड़ा था। यही मैदान बाद में गांधी स्टेडियम के नाम से जाना गया। दोपहर में शोक सभा के बाद हाथियों वाली शाही सवारी में अस्थि कलश लेकर कोसी तट गए। जहां ब्राह्मणों ने मंत्रोच्चार के बीच कुछ अस्थियों को कोसी में विसर्जित किया और शेष अस्थियों से भरे कलश को आठ फिट नीचे जमीन में दबा दिया। यही है गांधी समाधि, जिसका समय-समय पर सौंदर्यीकरण होता रहा।
जानें कब क्या हुआ
-आठ फरवरी 1948 को नवाब रजा अली खां स्पेशल ट्रेन से गए थे दिल्ली।
-11 फरवरी 1948 को बापू की अस्थियों का कलश लेकर लौटे थे रामपुर।
-12 फरवरी 1948 को शोक सभा के बाद कुछ अस्थियां कोसी की धारा में की गईं प्रवाहित।
-12 फरवरी 1948 को शाम छह बजे नवाब गेट के सामने अस्थि कलश जमीन में दबाया गया।
-1958 में गांधी समाधि को ईंट-पत्थरों से बनवाया गया। इसकी देखरेख की जिम्मेदारी पालिका को सौंपी गई।
-1976 में दोबारा निर्माण कराया गया, गांधी समाधि को विस्तार दिया गया।
-2003-04 में गांधी समाधि पर बापू की प्रतिमा स्थापित कराई गई।
-2005-06 में गांधी समाधि के भव्य लुक देते हुए कराया गया सौंदर्यीकरण।
दूधिया रोशनी से जगगमाती है गांधी समाधि
दिसंबर 2011 में नगर पालिका की ओर से गांधी समाधि पर एलईडी लाइट से जगमग करने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली जिसके बाद गांधी समाधि दूधिया रौशनी से जगमगाती है।
पर्यटन स्थल के रूप में मिली पहचान
पूर्व में यहां डीएम रहे आन्जनेय कुमार सिंह ने रामपुर की गांधी समाधि को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कराया। समाधि के पास ही शहीद स्मारक बनवाया गया।
रामपुर कई बार आए बापू
आजादी की लड़ाई के दौरान बापू रामपुर कई बार आए। इतिहासकार नफीस सिद्दीकी और डा. जहीर की मानें तो खिलाफत आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाने वाले मौलाना जौहर अली और मौलाना शौकत अली के यहां बापू आकर रुकते थे।
रामपुर में बनाई गई गांधी टोपी
इतिहासविद डा. जहीर का दावा है कि वह मौलाना जौहर के नवासे हैं। मौलाना जौहर से मिलने के लिए जब बापू रामपुर आए थे तब मौलाना की मां बी अम्मा ने हाथ से सिलाई करके एक टोपी बापू को पहनाई, जो बाद में गांधी टोपी के नाम से मशहूर हो गई।