काशी में बंटने लगा मां अन्नपूर्णा का खजाना, इस बार पांच दिन मौका, रात से लगी कतार
काशी में विराजमान स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का दर्शन और खजाने का वितरण शुरू हो गया है। साल में केवल चार दिन ही खुलने वाले मां अन्नपूणां के दर्शन के लिए रात से लोग कतार में लग गए थे। हालांकि इस बार पांच दिन खुलेगा।
काशी में विराजमान स्वर्णमयी अन्नपूर्णा का दर्शन और खजाने का वितरण शुरू हो गया है। साल में केवल चार दिन ही खुलने वाले मां अन्नपूणां के दर्शन के लिए रात से लोग कतार में लग गए थे। हालांकि इस बार पांच दिन खुलेगा। सुबह पांच बजे से दर्शन पूजन का सिलसिला शुरू हो गया। रात 11 बजे तक यह चलता रहेगा। अन्नकूट तक लोग मां के दर्शन कर सकेंगे। मां अन्नपूर्णा के स्वर्णमयी आभा को देखने की लालसा दीपपर्व पर भी लोगों को अपने घरों से सैकड़ों-हजारों किलोमीटर दूर काशी ले आती है। दक्षिण भारत से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां के खजाने की आस में दीपावली पर काशी पहुंचे हैं। विगत तीन वर्षों में इस चलन ने काफी जोर पकड़ा है।
यह मंदिर देश का एकमात्र अन्नपूर्णा मंदिर है जहां धनतेरस से अन्नकूट तक मां के खजाने का वितरण होता है। यूं तो प्रतिवर्ष चार दिन ही यह अवसर प्राप्त होता है लेकिन इस वर्ष दो दिन अमावस्या होने से भक्तों को पांच दिन दर्शन लाभ मिलेगा। पिछले वर्ष भी तिथि वृद्धि के कारण पांच दिन दर्शन मिले थे। वहीं 2022 में दीपावली के दिन सूर्यग्रहण के कारण मात्र तीन दिन ही भक्त दर्शन कर पाए थे। महंत शंकरपुरी ने बताया कि अन्नपूर्णा मंदिर से मिले सिक्के और धान के लावा को लोग तिजोरी और पूजा स्थल पर रखते हैं। मान्यता है कि मां का प्रसाद तिजोरी और पूजा स्थल पर रखने से पूरे वर्ष धन और अन्न की कमी नहीं होती।
माता अन्नपूर्णा की पुरी है काशी
भगवान शंकर से विवाह के बाद देवी पार्वती ने काशीपुरी में निवास की इच्छा जताई। महादेव उन्हें साथ लेकर अपने सनातन गृह अविमुक्त-क्षेत्र (काशी) आ गए। तब शिव-पार्वती के विमर्श से एक व्यवस्था दी गई। वह यह कि सत, त्रेता और द्वापर युगों में काशी श्मशान रहेगी किंतु कलिकाल में यह अन्नपूर्णा की पुरी होकर बसेगी। इसी कारण वर्तमान में अन्नपूर्णा का मंदिर काशी का प्रधान देवीपीठ है।
अन्नपूर्णा हैं अन्न की अधिष्ठात्रि
स्कन्दपुराण के ‘काशीखण्ड’ में उल्लेख है कि भगवान विश्वेश्वर गृहस्थ हैं और भवानी उनकी गृहस्थी चलाती हैं। अत: काशीवासियों के योग-क्षेम का भार इन्हीं पर है। ‘ब्रह्मवैवर्तपुराण’ के काशी-रहस्य के अनुसार भवानी ही अन्नपूर्णा हैं।
पंचदिवसीय पर्व का शुभारंभ
धनतेरस के साथ ही पंचदिवसीय (इस बार छह दिन) दीपपर्व का मंगलवार से शुभारंभ हो गया। इस दिन का मुख्य संबंध यमराज की आराधना से है। आयुर्वेद के प्रवर्तक धन्वंतरि की जयंती भी इसी दिन होती है। एक तरफ वैद्य (चिकित्सक) समाज धनवंतरि का पूजन कर सबके स्वास्थ की कामना करेंगे तो दूसरी ओर गृहस्थ यम दीप जलाकर यमराज से अकालमृत्यु टालने की प्रार्थना करेंगे।
यमदीप जलाने वाले व्यक्ति को यमयातना से भी मुक्ति मिल जाती है। लोक परंपराओं के अनुसार धनतेरस के दिन ही घरों में लक्ष्मी-गणेश, काली, दुर्गा, ग्वालिन आदि सजा कर भड़ेहर भरने की परंपरा निभाई जाएगी। भड़ेहर में खड़ा चना, बेसन के लड्डू, धान का लावा, चूड़ा और चीनी के खिलौने रखे जाएंगे। भृगुसंहिता विशेषज्ञ पं. वेदमूर्ति शास्त्री बताते हैं कि शास्त्रीय विधान के अनुसार धनतेरस का मुख्य संबंध यम दीप के दान से है। सायंकाल यमराज के निमित्त दीप जलाकर घर के दक्षिणी हिस्से या दरवाजे के बाहर रखना चाहिए।
शास्त्र कहता है धनतेरस पर धन्वंतरि पूजन गोधूली बेला में किया जाना चाहिए। धन्वंतरि पूजा का जन सामान्य से सरोकार सिर्फ दर्शन और प्रसाद स्वरूप औषधि ग्रहण करने से है। व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और घरों में धनतेरस के दिन स्वर्ण-रजत अथवा नवीन पात्रों के साथ लक्ष्मी गणेश का पूजन लोक चलन भी है। प्रकारांतर से धन्वंतरि पूजन और यम उपासना दोनों ही मनुष्य के दीर्घायु और स्वस्थ जीवन की कामना का माध्यम है। धनतेरस के दिन खरीदारी के लिए शहर के सभी प्रमुख इलाकों में बर्तनों की अस्थाई दुकानें सज गई हैं।