जब वह रुखसार से जुल्फों को हटा देते हैं...
Amroha News - उझारी, संवाददाता। अदबी संस्था बज्मे उर्दू अदब के संयोजन में रविवार रात मुशायरा आयोजित किया गया। शायरों ने अपना बेहतरीन कलाम सुनाकर श्रोताओं की खूब वाह
अदबी संस्था बज्मे उर्दू अदब के संयोजन में रविवार रात मुशायरा आयोजित किया गया। शायरों ने अपना बेहतरीन कलाम सुनाकर श्रोताओं की खूब वाहवाही हासिल की। बस्ती में सजी शायरी की महफिल का आगाज उस्ताद शायर चमन हैदर बाकरी ने शमा रौशन कर करने के बाद नात पेश कर किया। इसके बाद इश्किया व वतन परस्ती से जुडी शायरी का दौर शुरू हुआ। अजराना से आए शायर साबिर अली ने कहा...जहां में माल-ओ-दौलत का नशा कुछ और होता है, वफा वालों का लेकिन मर्तबा कुछ और होता है। असद अशरफ यूं नमूदार हुए...अंदाज पुराना है गजल मेरी नई है ,कोहराम मचाना है गजल मेरी नई है ,हर शख्स को शेरों से असद सोच लिया हैं, दीवाना बनाना है गजल मेरी नई है।मेरठ से आए युसूफ मेरठी ने कुछ इस अंदाज में बात की...याद तो होगा के हम ही तो हैं खाक-ए-वतन,अपने खून से तुझे गुलजार बनाने वाले। डा.फैसल ने कहा...चांद छुपता है उन्हें देखकर अक्सर फैसल ,जब वह रुखसार से जुल्फों को हटा देते हैं।जमाल हसनपुरी ने पढ़ा...आ गया चांद मेरा आज मेरी महफिल में,अब चिरागों को जलाने की जरूरत क्या है। साबिर किठारवी ने कहा...हम यही सोच के हर जुल्म से टकराए हैं, है बड़ा मारने वाले से बचाने वाला। बछरायूं से आए फरमान अनवर ने अपनी बात यूं पेश की...तेग से तीर से तलवार से क्या होता है, गर तू बुजदिल है तो हथियार से क्या होता है। इंतखाब संभली ने फरमाया...लिखने बैठ जाऊं तो एक किताब बन जाए ,मेरे साथ यह दुनिया इतने खेल खेली है। मुशायरा का संचालन कर रहे आरिफ बछरायूंनी ने कहा...हौसला है जिसका कायम उसका बाकी है वजूद ,बुजदिली से मुश्किलों का सामना होता नहीं। अध्यक्षता कर रहे चमन हैदर बाकरी ने कहा...फनकार हैं सीखे हैं बहुत सारे हुनर पर,,गिरगिट की तरह रंग बदलना नहीं आता। देर रात तक चले मुशायरा में चौधरी बब्बी,विशाल चौधरी, अफसर अली, नूरुल हसन, जहीर, मुरसलीन आदि मौजूद रहे।
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