इस स्थान पर देवर्षि नारद ने की थी तपस्या
- गुन्नौर स्थित देवर्षि नारद धाम की कहानी युगों पुरानी भक्त प्रह्लाद के जन्म से जोड़ी जाती है। यहां देवर्षि नारद का यह एक मात्र मंदिर है जहां उनकी मूर्ति की पूजा की जाती है।
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यूं तो मुसाफिरखाना तहसील क्षेत्र में पौराणिक और ऐतिहासिक महत्ता वाले कई स्थल हैं। ऐतिहासिक महत्ता का तेलिया बुर्ज हो या कादूनाला, दादरा का हींगलाज धाम हो या श्वेत बाराह क्षेत्र या फिर पिंडारा का महादेवन मंदिर। इन सबमें गुन्नौर स्थित देवर्षि नारद धाम की कहानी युगों पुरानी भक्त प्रह्लाद के जन्म से जोड़ी जाती है। यहां देवर्षि नारद का यह एक मात्र मंदिर है जहां उनकी मूर्ति की पूजा की जाती है।
तहसील मुख्यालय से लगभग पांच किलोमीटर पश्चिम लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग से दक्षिण लगभग दो किलोमीटर पर गुन्नौर गांव में कादूनाला वन क्षेत्र में देवर्षि नारद धाम स्थित है। देवर्षि नारद मुनि का यह अति प्राचीन मंदिर अपनी पौराणिक महत्ता को समेटे हुए है। बताया जाता है कि यह भूमि देवर्षि की तपोस्थली है। यहां स्थित अर्धनारीश्वर भगवान शिव के मंदिर की पर प्राचीनता के सम्बंध में किसी को कोई जानकारी नहीं है। लोगों का कहना है कि यह देवर्षि नारद के यहां आने से पहले का है। देवर्षि नारद धाम के बारे में प्रचलित मान्यताओं पर विश्वास किया जाए तो यह वही जगह है जहां स्वयं भू अर्द्धनारीश्वर शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था। शिव मंदिर के पास ही एक प्राचीन विशालकाय वट वृक्ष है। कहा जाता है कि जब हिरण्यकश्यप की पत्नी कयादू के गर्भ में भक्त प्रह्लाद प्रतिष्ठित थे तो देवराज इंद्र उन्हें राक्षस कुल में एक और राक्षस के जन्म की आशंका से मारना चाहते थे। देवर्षि ने तब देवराज इंद्र के प्रकोप से कयादु और गर्भस्थ प्रह्लाद को बचाने के लिए उन्हें इस जगह लाए थे। मान्यता थी कि इस जगह पर इंद्र का वज्र भी निष्फल हो जाता था। सघन वन क्षेत्र में स्थित इस वट वृक्ष के नीचे ही देवर्षि कयादु को उपदेश दिया करते थे। कयादु के स्नान के लिए शिव मंदिर के पास ही एक सगरा था जिसके अवशेष आज भी मौजूद हैं।
भगवान शिव के साथ देवर्षि नारद की भी होती है पूजा
यह एक मात्र ऐसा धाम है जहां भगवान शिव के मंदिर के सामने कुछ फासले पर देवर्षि नारद का मंदिर है। यहां उनकी प्रतिमा स्थापित है। चूंकि यहां रहकर कुछ दिनों तक देवर्षि ने तप ध्यान किया था इसलिए इस जगह को देवर्षि की तपोस्थली भी कहा जाता है जहां दूर दराज से दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।
कयादु के नाम से नाले का नाम पड़ा कादूनाला
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि कयादु के यहां निवास करने के कारण ही पहले यह वन क्षेत्र कयादू वन क्षेत्र और नाला कयादू नाला कहलाता था जो बाद में अपभ्रंशित होकर कादूनाला वन क्षेत्र हो गया। बताया जाता है कि कादूनाला कभी भी सूखता नहीं है और देवर्षि नारद धाम पर कभी भी आसमानी बिजली का आघात नहीं हो सकता है।
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