बाढ़ ने किसानों के अरमानों पर पानी फेरा
जहांगीरगंज के किसानों की स्थिति बेहद चिंताजनक है। जुलाई में रोपी गई धान की फसल बाढ़ और भारी बारिश में बर्बाद हो गई है। किसान अपने आर्थिक भविष्य को लेकर परेशान हैं, क्योंकि उनकी आजीविका कृषि पर निर्भर...
जहांगीरगंज, संवाददाता। उजड़ा हुआ किसान दुखी है, गांव का घर-दलान दुखी है, देखो दशा अन्नदाता की, धरती का भगवान दुखी है। कवि अशोक टाटम्बरी की ये पंक्तियां आलापुर तहसील क्षेत्र के घाघरा नदी के तटीय इलाकों के सैंकड़ों किसानों की व्यथा को बखूबी बयां कर रही हैं। जुलाई माह में किसानों ने जिन ख्वाबों को हकीकत में ढालने के लिए पलकों में संजोया था, वह आस बाढ़ और बारिश के पानी में डूब कर खत्म हो रही है। धान की रोपाई के साथ किसानों ने अपने अरमान भी खेतों में बोए थे लेकिन बाढ़ की मार के साथ ही भारी बारिश के पानी में उनके अरमान भी डूब कर नष्ट हो रहे हैं। जी हां! किसी को बिटिया की कोचिंग के लिए फीस भेजना था तो किसी को बुजुर्ग मां बाप का इलाज कराना था तो किसी को बेटी के हाथ पीले करना था। आजीविका के मुख्य साधन कृषि के सहारे सुनहरे भविष्य का सपना बुनने वाले किसानों के सामने अब घर गृहस्थी को सुचारु रूप से चलाने की चुनौती है। किसान राघवेन्द्र सिंह की पुत्री प्रयागराज में रहकर सिविल सेवा की तैयारी कर रही है। कोचिंग की फीस जमा करने से लेकर हर माह खर्चे के लिए खेती ही सहारा है। अब धान की फसल बर्बाद होने के कारण उनके माथे पर शिकन नजर आने लगी है। संगमलाल श्रीवास्तव के बच्चे खेती के बदौलत बाहर पढ़ते हैं। धान की फसल सड़ने से वह भी चिंतित हैं। किसान रामरतन यादव खेती के आसरे ही अपनी और बुजुर्ग माता इलाज करा रहे हैं तो राम सुमेर यादव को अबकी बार एक बेटी की शादी करनी है। फसल हो गई होती तो वह शादी की तैयारियों में उन्हें मदद मिलती। इन किसानों की तरह बाढ़ प्रभावित सैंकड़ों किसानों के चेहरों पर फसल के बर्बाद होने का दर्द देखा जा सकता है। धान की फसल को बेंचकर घर गृहस्थी के साथ ही अन्य सपनों को पूरा करने को कौन कहे किसानों की लागत भी बाढ़ के पानी में डूब कर नष्ट हो गई है। सैंकड़ों किसानों को आर्थिक सहायता की दरकार है।
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