बोले अम्बेडकरनगर:न शिक्षा पर जोर और न ही योजनाओं का सहारा
Ambedkar-nagar News - बोले अम्बेडकरनगर ambedkar nagar file no 3 बोले अम्बेडकरनगर, बाल श्रमिकों से जुड़ी
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बोले अम्बेडकरनगर ambedkar nagar file no 3
बोले अम्बेडकरनगर, बाल श्रमिकों से जुड़ी स्टोरी, पार्ट-1
न शिक्षा पर जोर, न योजनाओं का लाभ दिलाने की सुध
अम्बेडकरनगर। बालश्रम रोकने के लिए न तो शिक्षा पर जोर है और न ही योजनाओं का बेहतर तरीके से लाभ ही दिलाए जाने की सुध जिम्मेदारों को है। बालश्रम रोकने के लिए योजनाएं तो संचालित हैं, लेकिन इनका समुचित लाभ आर्थिक रूप से कमजोर परिवार तक नहीं पहुंच रही है। ईंट भट्ठों पर काम करने वाले परिवार के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने की सुध न तो बालश्रम विभाग को है और न ही ज्यादातर सामाजिक संस्थाओं को विभाग व सामाजिक संस्थाओं के बीच सामंजस्य न होने के चलते भी बालश्रम पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग रहा है। किशोर अक्सर ई रिक्शा चलाते हुए नजर आते हैं, लेकिन इसके बाद भी यातायात पुलिस उन पर रोक लगाने को गंभीर नहीं हो रहा। बालश्रम रोकने के लिए चलने वाला अभियान ज्यादातर औपचारिकता तक ही सीमित रहता है। कुछ सामाजिक संस्थाएं जरूर इस काम में में दिलचस्पी दिखा रहीं हैं, लेकिन उन्हें इसके लिए पे्ररित किए जाने की जरूरत है।
नंबर गेम
पिछले एक वर्ष में बालश्रम के खिलाफ 60 निरीक्षण हुआ।
60 बाल श्रमिकों को कराया गया मुक्त
दावा 60 बाल मजदूरों को मुक्त कराने का, लेकिन नतीजा शून्य
-बाइक मरम्मत की दुकान पर काम करते बाल श्रमिक (फाइल फोटो)
अम्बेडकरनगर। बालश्रम रोकने के लिए जिला श्रम प्रवर्तन कार्यालय एक वर्ष में 60 बच्चों को मुक्त कराने का दावा तो करता है, लेकिन इसके बाद भी नतीजा शून्य ही रहता है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चे तेजी से बाल मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं। अभियान भी चलते हैं, लेकिन वह भी महज औपचारिकता भर ही रहता है। कागजों पर अधिक अभियान चलता है।
शासन के तमाम दिशा निर्देश के बाद भी जिले में बालश्रम रोकने के लिए विभाग तनिक भी गंभीर नहीं हो रहा है। बीते कुछ वर्षों में बालश्रम जैसी कुप्रथा जिले में तेजी से फैल रही है। बस स्टेशन व रेलवे स्टेशन के अलावा प्रमुख चौराहों पर आसानी से छोटे छोटे बच्चे भीख मांगते हुए नजर आ जाते हैं। ईंट भट्ठों के साथ ही होटलों व ढाबों पर भी बच्चे काम करते रहते हैं। शिकायतें समय समय पर जिम्मेदारों से होती हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। विभाग के पास कोई ऐसा बजट भी नहीं है, जिससे ईंट भट्ठों पर काम करने वाले परिवार के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाया जा सके। उन्हें तेज ठंडक से बचने के लिए गर्म कपड़े उपलब्ध कराए जा
सकें। कॉपी किताब उपलब्ध कराई जा सके। यदि समय समय पर ईंट भट्ठों के संचालकों के साथ बैठक कर उन्हें ही इस संबंध में जरूरी दिशा निर्देश दिए जाएं, तो काफी हद तक बालश्रम पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा सबसे ज्यादा वह बच्चे काम करते नजर आते हैं, जिनके परिवार किसी अन्य जनपद व राज्य से पलायन कर जिले में आते हैं। ऐसे परिवार ज्यादातर ईंट भट्ठों पर ही काम करते हैं।
बात मजदूरी कराने वालों पर हो कार्रवाई, रुकेगा बालश्रम
अम्बेडकरनगर। बालश्रम रोकने के लिए कानून तो बना है, लेकिन उसका सख्ती से जिले में कहीं भी पालन नहीं किया जाता है। कार्रवाई के नाम पर महज औपचारिकता ही निभाई जाती है। अभियान चलाकर बाल मजदूरों को मुक्त तो करा लिया जाता है, लेकिन उनसे मजदूरी कराने वालों पर कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित नहीं की जाती।
समाज में फैली बालश्रम जैसी कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए जिम्मेदार गंभीर नहीं हो रहे हैं। बालश्रम कानून तो बना है, लेकिन इसका सख्ती से पालन कराने के लिए जिम्मेदार कोई कदम नहीं उठा रहे। समय समय पर अभियान तो चलता है और बाल मजदूरों को मुक्त भी करा लिया जाता है, लेकिन उनसे काम कराने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई नहीं की जाती। इससे ऐसा करने वालों के हौसले बुलंद होते हैं और धड़ल्ले से बाल मजदूरी कराते हैं। दरअसल ऐसा करने वालों को आर्थिक लाभ मिलता है। उन्हें बाल मजदूरों को अधिक मजदूरी नहीं देनी पड़ती है। काम अधिक लेते हैं और मजदूरी कम देते हैं। मंगेश कुमार, लालजी, सुरेंद्र कुमार व शीतला प्रसाद कहते हैं कि यदि बाल मजदूरी कराने वालों से सख्ती से निपटा जाए, तो काफी हद तक बालश्रम पर अंकुश पाया जा सकता है। इसके लिए जिम्मेदारों को गंभीरता दिखानी होगी। जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक बालश्रम पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगाया जा सकेगा।
यातायात पुलिस भी निभाए जिम्मेदारी
अम्बेडकरनगर। अकबरपुर समेत जिले के सभी क्षेत्रों में स्थित प्रमुख सड़कों पर ऐसे ई रिक्शा दौड़ते दिख जाते हैं, जिसे किशोर चलाते रहते हैं। ऐसे वाहन चालकों पर कार्रवाई की सुध यातायात पुलिस को नहीं है। यदि यातायात पुलिस ही इस पर अंकुश लगा दे, तो काफी हद तक बालश्रम पर अंकुश लगाया जा सकता है।
बालश्रम रोकने की जिम्मेदारी यातायात पुलिस कर्मियों पर भी होती है। कारण यह कि कई किशोर ऐसे हैं, जो धड़ल्ले से ई रिक्शा चला रहे हैं। ऐसे ई रिक्शा बेधड़क होकर उन प्रमुख चौराहों से भी गुजरते हैं, जहां पुलिस कर्मियों की तैनाती रहती है। यातायात पुलिस कर्मियों की निगाह तो इन पर पड़ती है, लेकिन इस पर अंकुश पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा है। इसी का नतीजा है कि किशोर बेधड़क होकर ई रिक्शा का संचालन कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता मेहदी रजा कहते हैं कि बालश्रम रोकने के लिए यातायात पुलिस कर्मियों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी। यदि कहीं कोई किशोर ई रिक्शा चलाता नजर आए, तो उसे रोकना चाहिए। उसे शिक्षा के प्रति जागरूक करना चाहिए। इसके साथ ही ई रिक्शा मालिकों के साथ बैठक कर उन्हें किशोरों से वाहन न चलाने की चेतावनी भी दी जानी चाहिए।
सभी के सहयोग से बालश्रम पर लगेगा अंकुश
अम्बेडकरनगर। बालश्रम रोकने के लिए सिर्फ विभाग ही नहीं, बल्कि सभी के सहयोग की जरूरत है। सामूहिक प्रयास से ही बालश्रम पर अंकुश लग सकता है। हालांकि जिले में विभाग व सामाजिक संस्थाओं के बीच बालश्रम रोकने के लिए बेहतर सामंजस्य नहीं है। इसी का नतीजा है कि बालश्रम पूरी तरह से नहीं रुक रहा है।
बालश्रम रोकने की जिम्मेदारी वैसे तो जिला श्रम प्रवर्तन कार्यालय की है, लेकिन कई सामाजिक संस्थाएं भी इस पर बड़े पैमाने पर काम कर रही हैं। हालांकि इन सबके बाद भी बालश्रम पर पूरी तरह से अंकुश नहीं पा रहा है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि विभाग व सामाजिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य की कमीं है। सामाजिक संस्थाएं ज्यादातर बालश्रम रोकने का श्रेय खुद लेना चाहती हैं, तो विभाग भी इसमें कुछ अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाता है। इसी का नतीजा है कि बालश्रम पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लग पा रहा है। बल्कि देखा जाए, तो आबादी के अनुसार इसमें लगातार वृद्धि ही हो रही है। सामाजिक कार्यकर्ता अनंतराम वर्मा कहते हैं कि बालश्रम रोकने के लिए विभाग व सामाजिक संस्थाओं को मिलकर काम करना चाहिए। बालश्रम समाज के लिए बड़ा अभिशाप है। इस कुप्रथा को जड़ से समाप्त करने के लिए सभी को आपस में मिलकर काम करना चाहिए। जब सभी सामूहिक रूप से प्रयास नहीं करेंगे, तब तक इस पर पूरी तरह से अंकुश नहीं लगाया जा सकता है।
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