गैस पाइप लाइन व कुशल कारीगरों की कमी से खो रही पीतल मूर्ति उद्योग की चमक
Aligarh News - बोले अलीगढ़. फोटो... कॉमन इंट्रो अलीगढ़ पीतल उद्योग मुगलकालीन का है। 1918 से अलीगढ़ की
बोले अलीगढ़. फोटो...
कॉमन इंट्रो
अलीगढ़ पीतल उद्योग मुगलकालीन का है। 1918 से अलीगढ़ की गलियों व घरों में पीतल की मूर्तियां तैयार हो रही हैं। सात समंदर पार तक पीतल की मूर्तियों की चमक बिखर रही है। एक समय था जब अंग्रेजी देशों की मूर्तियां अलीगढ़ में बनतीं थीं और यहां से शतप्रतिशत निर्यात होता था। लेकिन दिल्ली से अलीगढ़ की कनेक्टिविटी सही नहीं होने व चाइना के बढ़ते दखल ने अंग्रेजी देशों की मूर्तियों के कारोबार को समेट दिया। अलीगढ़ से अब कुल कारोबार का 20 से 30 फीसदी ही मूर्तियों का निर्यात किया जाता है। पीतल मूर्ति उद्योग को गैस पाइप लाइन, कुशल कारीगर, प्रशिक्षण केंद्र, रॉ मटेरियल बैंक, डिसप्ले सेंटर व जीएसटी स्लैब में बदलाव की आवश्यकता है ताकि यह उद्योग बढ़ सके।
मुख्य खबर
मुगलकालीन इस पीतल मूर्ति उद्योग से जुड़ी कमियों व सुधार को लेकर निर्माताओं ने हिन्दुस्तान समाचार पत्र के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत उसको प्रमुखता से रखा। हिन्दुस्तान के अभियान बोले अलीगढ़ के तहत पीतल मूर्ति निर्माताओं ने वर्तमान में सामने आने वाली परेशानियों को रखा और साथ में बताया कि इसका समाधान क्या हो सकता है। संवाद में जुटे पीतल मूर्ति कारोबारियों में सभी अलग-अलग बिन्दुओं पर उद्योग हित में बाते रखीं। सरकार से उनको चाहिए और नियमों में किस तरह से रियायत चाहते हैं इसको लेकर वक्तव्य दिए।
अलीगढ़ का पीतल मूर्ति कारोबार 20 हजार से अधिक लोगों को रोजगार देता है। वर्तमान में पीतल मूर्ति इंडस्ट्री कई तरह की विसंगतियों से जूझ रही है। इसका समाधान नहीं हो रहा है, जिससे इंडस्ट्री मुश्किल में है। पीतल मूर्ति इंडस्ट्री की बड़ी समस्या कच्चे मॉल पर जीएसटी 18 फीसदी व तैयार मूर्तियों पर जीएसटी की दरें 12 फीसदी है। छोटे उत्पादक परेशान हो जाते हैं। जीएसटी काउंसिल के समक्ष कई बार यह मुद्दा रखा गया, लेकिन कोई समाधान नहीं हो पाया। जीएसटी के अलावा पीतल मूर्ति निर्माता कुशल कारीगरों की कमी से जूझ रहे हैं। नई पीढ़ी इस उद्योग से नहीं जुड़ रही है। इंडस्ट्री के समक्ष सबसे बड़ी समस्या पुरानी तकनीक है। पीतल मूर्ति निर्माताओं को नई तकनीक का इंतजार है, जिसके माध्यम से इस उद्योग की चमक बरकरार रहे। पीतल मूर्ति निर्माताओं की मानें तो नई पीढ़ी का जुड़ाव नहीं के बराबर हो रहा है। सरकार की ओर से प्रोत्साहन नहीं मिलता है। जीएसटी, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, श्रम विभाग समेत अन्य के नियम जटिल होते जा रहे हैं, जिससे परेशानियां खड़ी हो रही हैं।
आर्टवेयर इंडस्ट्री में सीखने वालों की आयु में बाध्यता नहीं आए
-पीतल मूर्ति इंडस्ट्री के सामने नए व कुशल कारीगर का अभाव है। उद्यमियों की मानें तो पहले कारखाने पर कारीगर का बेटा या परिवार का सदस्य दोपहर का भोजन देने आता था तो वह कुछ देर बैठकर उसके काम को सीखता था और उसको करते हुए देखता था। धीरे-धीरे यह क्रम जारी रहता था और एक दिन वह कुशलकारीगर बन जाता था। लेकिन अब श्रम विभाग के नियम जटिल हो गए हैं। 18 साल से कम आयु वर्ग के लोग कारखाने में काम नहीं सीख सकते। जबिक यह आर्टवेयर है। कला सीखने का अवसर मिलता है। इसमें आयु की बाध्यता नहीं होनी चाहिए। टीवी चैनलों पर 18 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोग करतब दिखाते हैं उनपर श्रम कानून लागू नहीं होते हैं। लेकिन पीतल मूर्ति इंडस्ट्री में कोई 18 से कम आयु वर्ग वाला काम सीख लेगा तो परेशानी खड़ी हो जाती है। इस उद्योग को बचाने के लिए श्रम विभाग के नियमों में सरल किए जाने की आवश्यकता है।
वैट के समय पीतल मूर्ति पर नहीं था टैक्स
-पीतल मूर्ति इंडस्ट्री पर वैट के समय में टैक्स नहीं था। लेकिन इसके बाद 12 फीसदी तैयार माल पर जीएसटी लगा दी गई। पीतल मूर्ति निर्माताओं की माने तो इंडस्ट्री को बचाने के लिए सरकार को जीएसटी के दायरे से बाहर करना होगा। रॉ मटेरियल पर 18 फीसदी जीएसटी है और तैयार माल पर 12 फीसदी। श्रमिकों को उपलब्धता नहीं होने व कच्चे माल में रोजाना उतार चढ़ाव पीतल मूर्ति इंडस्ट्री के लिए बड़ी समस्या है। अलीगढ़ में करीब 500 से अधिक पीतल मूर्ति निर्माता हैं जो 20 हजार परिवारों को रोजगार देते हैं। गैस की पाइप लाइन नहीं होना भी इस उद्योग के पिछड़ेपन का बड़ा कारण है।
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