अखिलेश के तल्ख तेवर से यूपी में इंडिया गठबंधन पर संकट के बादल, हरियाणा नतीजों ने बदला रुख?
हरियाणा के चुनाव के नतीजे आते ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के तेवर अब सहयोगी कांग्रेस के प्रति तल्ख हो गए हैं। कांग्रेस से सीटों पर तालमेल से पहले ही सपा ने छह प्रत्याशियों का ऐलान कर दिया।
हरियाणा के चुनाव के नतीजे आते ही समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव के तेवर अब सहयोगी कांग्रेस के प्रति तल्ख हो गए हैं। इसके चलते पार्टी ने मंगलवार को यूपी विधानसभा की दस सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए पीडीए समाज के छह प्रत्याशी उतार दिए। इससे कांग्रेस की बेचैनी बढ़ गई है। मध्य प्रदेश व हरियाणा में कांग्रेस द्वारा अपनी उपेक्षा से सपा अब इंडिया गठबंधन में आक्रामक तेवर दिखा रही है। माना जा रहा है कि इससे गठबंधन पर संकट के बादल भी मंडराने लगे हैं।
कांग्रेस ने मांगी थीं पांच सीटें
अब गेंद कांग्रेस के पाले में है। वह अब पश्चिमी यूपी की चार सीटों पर निगाह रखे है। इस पर अभी प्रत्याशी सपा ने घोषित नहीं किए हैं। असल में कांग्रेस ने पांच सीटें मंझवा, फूलपुर, मीरापुर, खैर व गाजियाबाद सीट पर दावा पेश किया था लेकिन सपा ने बुधवार को जो छह प्रत्याशियों की सूची जारी कर दी है, उसमें मंझवा व फूलपुर भी शामिल हैं। माना जा रहा है कि अगर सपा कांग्रेस को मीरापुर व खैर देने के मूड में नहीं है। सपा गाजियाबाद सीट दे सकती है। जो भाजपा का मजबूत गढ़ है। सपा का इस बात का मलाल है कि कांग्रेस का अतिआत्मविश्वास के चलते हरियाणा में कांग्रेस का न आम आदमी पार्टी से गठबंधन हुआ और न सपा से।
सपा ने टिकट घोषित कर दिए नाराजगी के संकेत
सूत्रों के मुताबिक, सपा ने इकतरफा सीटें घोषित कर कांग्रेस पर दबाव बढ़ा दिया और अपनी नाराजगी का अहसास भी करा दिया है। संदेश साफ है कि वह सपा को कमजोर समझने की भूल न करें। उधर कांग्रेस का तर्क रहा है कि गठबंधन से दोनों को यूपी में फायदा हुआ है क्योंकि जनता को गठबंधन के चलते एक मजबूत विकल्प मिला खास तौर पर पीडीए में।
जातीय जनगणना का मुद्दा हथियाने पर खींचतान
सपा में इस बात से बेचैनी है कि कैसे जातिगत जनगणना के मुद्दे को कांग्रेस ने अपने हाथ ले लिया जबकि सपा पहले से ही जातिगत जनगणना का सवाल उठा रही थी और पीडीए की बात कर ही थी। बाद में कांग्रेस ने इसे एजेंडे में शाामिल कर लिया। खासतौर पर कांग्रेस जातिगत जनगणना पर जोर देती है। हालांकि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी व सपा प्रमुख अखिलेश यादव अगल-बगल बैठते हैं और दोनों के बीच बेहतर समन्वय दिखता है। हरियाणा चुनाव के वक्त भी उन्होंने इंडिया गठबंधन की मजबूती के लिए त्याग करने की बात कही थी।
लोकसभा चुनाव से पहले गठबंधन को लगे थे हिचकोले
सपा असल में लोकसभा चुनाव से पहले ही इंडिया गठबंधन में यह बात साफ कर चुकी है कि वह यूपी में बड़े भाई की भूमिका में है। वह सीट बंटवारा खुद तय करेगी। बीच में सीटों को लेकर दोनों दलों के बीच तल्खी बढ़ गई। सपा व कांग्रेस के प्रांतीय नेताओं में वाकयुद्ध शुरू हो गया। लगा कि गठबंधन टूट जाएगा लेकिन ऐन वक्त पर कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने दखल दिया और 17 सीटों पर कांग्रेस मान गई। गठबंधन का नतीजा बेहतर रहा और सपा 37 व कांग्रेस छह सीट जीत गई।
मिल कर चुनाव लड़ेंगे
सपा के राष्ट्रीय सचिव और प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के अनुसार उपचुनाव की तारीखें जल्द घोषित होने वाली हैं, प्रत्याशी घोषित करना जरूरी हो गया है। इसलिए हम लोगों ने छह सीटों पर प्रत्याशी तय कर दिए हैं। अभी चार सीटें बाकी हैं। चुनाव सपा-कांग्रेस गठबंधन से ही लड़ा जाएगा। कहीं कोई दिक्कत नहीं है।