अहमद पांडे, अब्दुल्ला दुबे; यूपी के इस गांव में ब्राह्मणों वाला सरनेम रखते हैं मुसलमान
- नौशाद ने बताया कि दो साल पहले उन्होंने इतिहासकार और विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष राजीव श्रीवास्तव से अपनी जाति का पता लगाने में मदद ली थी।
उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के देहरी गांव में 60 से 70 ऐसे मुस्लिम परिवार हैं जो अपने नाम के साथ हिंदू उपनाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। उनका कहना है कि उनके पूर्वज हिंदू थे। हालांकि इन मुस्लिम परिवारों का यह साफ-साफ कहना है कि उन्होंने हिंदू धर्म नहीं अपनाया है और ना ही उनका धर्म परिवर्तन करने का कोई इरादा है। यूपी के इस गांव के बारे में कुछ लोगों का कहना है कि हिंदू उपनामों का उपयोग साम्प्रदायिक खाई को पाटने में मदद कर सकता है।
आपको बता दें कि नौशाद अहमद यहां नौशाद अहमद दुबे के नाम से जाने जाते हैं। वहीं गुफरान को ठाकुर गुफरान, इरशाद अहमद को इरशाद अहमद पांडे और अब्दुल्ला को अब्दुल्ला दुबे के नाम से जाने जाते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, नौशाद अहमद कहते हैं, "अनेक मुस्लिम परिवारों ने दशकों से चौधरी, सोलंकी, त्यागी, पटेल, राणा, सिकरवार जैसे उपनामों का उपयोग किया है। किसी ने सवाल नहीं उठाया। लेकिन दुबे और ठाकुर जैसे उपनामों के इस्तेमाल से अब ध्यान आकर्षित हुआ है।" नौशाद ने यह भी बताया कि उन्होंने अपने नाम के साथ शेख नहीं लगाया, लेकिन उनके रिश्तेदार ऐसा करते थे। हमने ऐसा इसलिए नहीं किया क्योंकि यह एक अरबी उपनाम है। यह भारतीय नहीं है।
नौशाद ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, "मेरे परिवार के वरिष्ठ सदस्य गांव में पंडितजी के नाम से प्रसिद्ध थे। मेरे परदादा ने मुझे बताया था कि हमारे पूर्वज लाल बहादुर दुबे देहरी आए थे और एक ज़मींदारी खरीदी थी। उन्होंने बाद में इस्लाम धर्म अपना लिया।" नौशाद का कहना है कि वह अभी भी यह जानने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पूर्वज लाल बहादुर ने धर्म परिवर्तन क्यों किया।
नौशाद रोज पांच बार नमाज अदा करते हैं और इस्लामिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं। उनका कहना है कि "मैं पुनः धर्म परिवर्तन करने की इच्छा नहीं रखता हूं।" हालांकि वह माथे पर तिलक लगाने के खिलाफ भी नहीं हैं।
नौशाद ने बताया कि दो साल पहले उन्होंने इतिहासकार और विशाल भारत संस्थान के अध्यक्ष राजीव श्रीवास्तव से अपनी जाति का पता लगाने में मदद ली थी। श्रीवास्तव ने रिकॉर्ड्स के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि नौशाद के पूर्वज ब्राह्मण थे और उनका गोत्र 'वत्स' था।
शेख अब्दुल्ला ने दुबे उपनाम अपनाया। उन्होंने पाया कि उनके पूर्वज हिंदू थे और वे भी यही उपनाम इस्तेमाल करते थे। गांव के एक और निवासी एहतशाम अहमद ने बताया कि उनके पूर्वज ब्राह्मण थे, हालांकि उन्होंने अभी तक हिंदू उपनाम अपनाया नहीं है क्योंकि वे अभी भी यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके पूर्वज कौन सा उपनाम इस्तेमाल करते थे। उन्होंने कहा, "गांव में कई परिवार अब हिंदू उपनाम अपनाने लगे हैं।"