Hindi NewsUttar-pradesh NewsAgra NewsStruggling Families in Agra Await Government Aid for Basic Needs

बोले आगरा, नजर उतारने वालों को लगी है नजर

Agra News - आगरा में 200 परिवार सरकार की मदद के लिए तरस रहे हैं। इनके पास पहचान पत्र, पक्का मकान और बिजली कनेक्शन नहीं है। नींबू मिर्च बेचकर गुजारा करते हैं, लेकिन बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पा...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराThu, 20 Feb 2025 07:39 PM
share Share
Follow Us on
बोले आगरा, नजर उतारने वालों को लगी है नजर

आगरा, राहुल सिंह। आगरा में नजर उतारने वाले 200 परिवारों को सरकार की नजरें इनायत होने का इंतजार है। इनके पास ना तो अपनी कागजी पहचान है। न ही पक्का मकान। बिजली कनेक्शन न होने की वजह से इन परिवारों की रात अंधेरे में कटती है। ये परिवार लोगों के घर और दुकानों पर नींबू मिर्च लटकाकर नजर उतारते हैं। पर खुद के लिए दो जून की रोटी को भी तरसते हैं। घर का खर्च चलाने के लिए परिवारों के पास केवल नींबू मिर्च का सहारा है। नींबू मिर्च को दुकानों पर बेचकर जो रकम मिलती है उससे इनके घरों का चूल्हा जलता है। गृहस्थी चलती है। अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए महिलाओं को कबाड़ में सिर खपाना पड़ता है। बच्चे भीख मांगते हैं। आपके अखबार हिन्दुस्तान के अभियान बोले आगरा की ओर से आयोजित संवाद में नजर उतारने वालों ने मदद की गुहार लगाई है।

इन परिवारों में बच्चों और युवाओं की संख्या 100 के पार है। युवाओं के पास नौकरी नहीं है। बच्चे स्कूल नहीं जाते। बचपन का मतलब तक नहीं जानते। खेलने कूदने की उम्र में मासूम बच्चे मां के साथ कबाड़ा बीनने जाते हैं। सरकारी सुविधाएं क्या होती हैं। किसी को पता ही नहीं है। बस अच्छे दिनों के इंतजार में सभी की जिंदगी की गाड़ी आगे बढ़ रही है। परिवार की जवान बहू बेटियां खुले में शौच करने जाती है। चारों तरफ कपड़े की ओट लगाकर खुले आसमान के नीचे नहाती हैं। इनके परिवार आज भी पानी की एक एक बूंद के लिए तरसते हैं। जहां कहीं पानी की पाइप लाइन टूटी मिलती है। वहीं से पानी भर लाते हैं। जिस दिन सप्लाई नहीं आती। इनके बर्तन खाली रह जाते हैं। शुक्रवार को परिवार के सभी सदस्य अपनी अपनी झोपड़ियों में नींबू मिर्च को धागे में बांधकर तैयार करते हैं। शनिवार सुबह महिलाएं और युवक नींबू मिर्च की टोकरी लेकर अपने अपने क्षेत्र में निकल जाते हैं। लोगों को बुरी नजर से बचाने के लिए दुकानों, घरों के दरवाजों पर नींबू मिर्च लगाते हैं। इससे जो कमाई होती है। उससे परिवारों की रोजी रोटी चलती है। घर के खर्चे पूरे करने के लिए बच्चों को मजबूरी में भीख मांगनी पड़ती है।

शिक्षा विभाग कार्यालय के पास झोपड़पट्टी डालकर यह परिवार रहते हैं। करीब 50 साल पहले इनके पूर्वज रोजगार की तलाश में आगरा आए थे। रहने की जगह नहीं मिली तो उन्होंने सरकारी जमीन पर झोपड़पट्टी डाल ली। पहले एक, फिर दो और देखते ही देखते करीब 500 परिवार गांव से आकर यहां बस गए। अब इनकी आबादी लगभग एक हजार है। बच्चों के चेहरे पर मुसकान ही नहीं है। समय से पहले वे बूढ़े हो चुके हैं। बच्चों के भविष्य की चिंता हरेक परिवार को है। हालात नहीं बदले तो उनके बच्चों का क्या होगा। अधिकांश के पास आधार कार्ड नहीं हैं। माता-पिता चाहते हैं कि बच्चे पढ़लिख कर काबिल बने। समाज में उनका नाम रोशन करें। लोगों ने बताया कि झोपड़पट्टी में बिजली कनेक्शन नहीं है। शाम होते ही घरों में अंधेरा हो जाता है। बच्चे पढ़ नहीं पाते। मच्छरों का आतंक है। बच्चे ज्यादातर बीमार रहते हैं। आमदनी का एक हिस्सा बीमारी के इलाज में खर्च हो जाता है। परिवारों के हालात खराब हैं। जिंदगी गंदगी में गुजर रही है। बच्चे कब्रिस्तान में खेलते हैं। टीवी, इंटरनेट, मोबाइल से बच्चों का वास्ता नहीं है। इन परिवारों से जुड़े लोग बस इसी उम्मीद में जी रहे हैं कि बच्चों को अच्ची नौकरी मिलेगी तो उनकी जिंदगी भी संवर जाएगी। घर गृहस्थी अच्छे से चलेगी।

मिले बिजली कनेक्शन

झोपड़पट्टी में रहने वाले इन परिवारों के पास बिजली कनेक्शन नहीं है। इन परिवारों की रात अंधेरे में गुजरती है। उजाले के लिए केवल मोमबत्ती का सहारा रहता है। महिलाएं दिन में ही रात के लिए खाना बना लेती हैं। वो जानती हैं कि रात में बिना रोशनी खाना बनाना मुश्किल होगा। इन परिवारों का दिन तो जैसे तैसे कट ही जाता है लेकिन बिजली न होने की वजह से रात में सोना दुश्वार हो जाता है। मच्छर, बच्चों का खून चूस लेते हैं। बच्चे और बुजुर्ग सोने के लिए रात भर करवटें बदलते हैं। महिलाओं को भी रात के समय परेशानी होती है। हर वक्त जहरीले कीटों से खतरा रहता है। घर का बच्चा जूते चप्पल न होने की वजह से नंगे पांव ही दौड़ता है। परेशान परिवारों ने सरकार से बिजली का अस्थाई कनेक्शन दिए जाने की मांग की है। जिससे उनकी जिंदगी में सामने खड़ी दुश्वारियां कुछ कम हो जाएं।

बच्चों को मिले शिक्षा

झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले इन परिवारों ने बच्चों को शिक्षा दिए जाने की मांग की है। बच्चों का आधार कार्ड नहीं बन पाया है। इस वजह से बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिला नहीं मिल पा रहा है। लोगों के पास जाति प्रमाण पत्र भी नहीं हैं। कई लोगों के आधार और वोटर कार्ड भी नहीं बने हैं। शिकायत होने पर एलआईयू (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) इन परिवारों की जांच कर चुकी है। फिर भी इन परिवारों को सरकारी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। माता-पिता ने गुहार लगाई की बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला हो जाए तो बच्चे कुछ तो पढ़ना लिखना सीख जाएंगे। बच्चे शिक्षित होंगे तभी अपना और परिवार का जीवन सुधार पाएंगे।

नहीं है शौचालय

परिवारों के पास शौचालय का इंतजाम नहीं है। इस वजह से महिलाओं, युवतियों को शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है। इससे खासतौर पर महिलाओं को सबसे ज्यादा दिक्कत होती है। झोपड़पट्टी के पास साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं है। यहां से दिन-रात दुर्गंध उठती है। सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। इन हालातों से महिलाएं डरी, सहमी रहती हैं। महिलाओं ने कहा कि शौचालय का इंतजाम होना बहुत जरूरी है। खुले में शौच करने पर शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। शौचालय बन जाएगा तो खुले में शौच करने से निजात मिल जाएगी। शौचालय न होने की वजह से बच्चों को भी काफी परेशानी होती है।

पेयजल का हो इंतजाम

झोपड़पट्टी में रहने वाले इन परिवारों के लिए पानी की भी बड़ी परेशानी है। पेयजल के लिए परिवार की महिलाओं को यहां वहां भटकना पड़ता है। तब कहीं जाकर दो चार बाल्टी पानी का जुगाड़ हो पाता है। पानी की दिक्कत इस कदर है कि लोगों को नहाने तक के लिए पूरा पानी नसीब नहीं हो पाता। जो पानी मिल पाता है। वह खाना पकाने और बर्तन धोने में ही खर्च हो जाता है। महिलाएं जैसे तैसे नहाने के लिए पानी बचा पाती हैं। परेशान परिवारों ने अधिकारियों से पानी उपलब्ध कराने की मांग की है। उनका कहना है कि पानी की उपलब्धता हो जाए तो जीवन में खड़ी दिक्कतें कुछ हद तक कम हो जाए।

कब पूरा होगा पक्के मकान का सपना

झोपड़पट्टी में रहने वाले बच्चे जब घर से बाहर निकलते हैं। सड़क किनारे बने पक्के मकानों देखते हैं। तब वह अपने माता-पिता से ये सवाल जरूर पूछते हैं कि उनका पक्का घर कब बनेगा। बच्चों के सवाल पर माता-पिता उन्हें भरोसा देते हैं। कहते हैं कि एक दिन उनका ये सपना जरूर पूरा होगा। उनके भी सिर पर पक्के मकान वाली छत होगी। बारिश और धूप से उन्हें बचाएगी। बारिश में उन्हें भीगना नहीं पड़ेगा। परेशान परिवारों ने अधिकारियों ने सरकारी योजना के तहत आ‌वास दिए जाने की मांग की है।

शिक्षा भवन के पास करीब 200 परिवार झोपड़पट्टी डालकर रहते हैं। इन परिवारों को सरकारी मदद की दरकार है। युवाओं को प्रशिक्षण मिलना चाहिए। बच्चों को शिक्षा मिलनी चाहिए। मेरी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से अपील है कि वह इन परिवारों की मदद करें।

नरेश पारस-सामाजिक कार्यकर्ता

हमारे पूर्वज करीब 50 साल पहले रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर आगरा आए थे। तब से हम नींबू मिर्च बेचकर अपने गुजारा कर रहे हैं। न तो हमारे पास नौकरी है। न ही रहने के लिए पक्का घर। हम लोग झोपड़ी बनाकर जैसे तैसे अपना जीवन गुजार रहे हैं।

कृष्ण कुमार - स्थानीय निवासी

पहचान पत्र न होने की वजह से हमारे बच्चों का स्कूल में दाखिला नहीं हो पाता है। हमारे बच्चों के आधार कार्ड बनाए जाने चाहिए। बच्चों को स्कूल में एडमिशन मिल जाए तो वह भी कुछ पढ़ लिख लेंगे। बच्चे पढ़े लिखे होंगे तो उन्हें नौकरी मिल जाएगी। तभी वह झोपड़पट्टी से बाहर निकल पाएंगे।

रवि कुमार - स्थानीय निवासी

पुलिस और एलआईयू टीम हमारी जांच कर चुकी है। इसके बाद भी हमें किसी तरह की सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है। हमें सरकारी मदद मिल जाए तो राहत मिल जाएगी। हमारी भी गृहस्थी पटरी पर आ जाएगी। मेरी सरकार से यही मांग है कि हमें भी योजनाओं का लाभ दिया जाए।

पहाड़ी - स्थानीय निवासी

हमारी झोपड़ी में किसी भी तरह का बिजली कनेक्शन नहीं है। शाम होते ही अंधेरा छा जाता है। मोमबत्ती की रोशनी में रहना पड़ता है। रात में कोई काम नहीं हो पाता। बिजली न होने की वजह से गर्मी में सोना पड़ता है। बच्चों को काफी परेशानी होती है। मच्छरों की वजह से बच्चे सो नहीं पाते हैं।

शहीद - स्थानीय निवासी

हम लोगों के पास पक्के मकान नहीं हैं। सिर पर प्लास्टिक की छत है। सरकार गरीबों को योजना के तहत मकान देती है। किसी योजना के तहत हमें भी पक्का मकान मिल जाए तो जीवन आसान हो जाए। मेरी मांग की है कि सरकार हमें भी रहने के लिए पक्का मकान दे।

शेर अली - स्थानीय निवासी

पानी की बड़ी परेशानी है। पानी के लिए कहीं कोई इंतजाम नहीं है। घर की बहू-बेटियों को पानी के लिए इधर-उधर भटकना पड़ता है। जहां की पानी की पाइप लाइन टूटी मिलती है। हम वहीं से पानी भरकर लाते हैं। पानी की जरूरत भी पूरी नहीं हो पाती। काफी दिक्कत होती है।

सुनील - स्थानीय निवासी

हम लोग नजर उतारने वाले नींबू मिर्च बेचकर अपना गुजारा कर रहे हैं। इससे इतनी आमदनी नहीं हो पाती है कि बच्चों की पढ़ाई लिखाई हो पाए। घर गृहस्थी का खर्च आसानी से निकल पाए। सरकार को इस तरफ भी ध्यान देना चाहिए। हमारे बच्चों को रोजगार मिलना चाहिए।

मुकीम - स्थानीय निवासी

हमारे घरों में शौचालय नहीं हैं। इस वजह से बहन बेटियों को शौच के लिए खुले में जाना पड़ता है। इस वजह से काफी दिक्कत होती है। अगर किसी तरह शौचालय का इंतजाम हो जाए तो बड़ी राहत मिल जाएगी। महिलाओं को खुले में शौच करने से मुक्ति मिल जाएगी।

दिलदार - स्थानीय निवासी

गंदगी की वजह से झोपड़पट्टी के आसपास मच्छरों का काफी प्रकोप रहता है। रात में सोना तक दुश्वार हो जाता है। मच्छरों के काटने की वजह से बच्चे और बुजुर्ग बीमार पड़ जाते हैं। आमदनी की बड़ा हिस्सा दवाएं खरीदने में खर्च हो जाते हैं। काफी परेशानी है।

प्रकाश - स्थानीय निवासी

हम लोग अनुसूचित जाति से आते हैं। इसके बाद भी हम लोगों को जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहे है। जाति प्रमाण पत्र न होने की वजह से हमें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है। मेरी जिला प्रशासन से यही मांग है कि हमारे और बच्चों को जाति प्रमाण पत्र बनाए जाएं।

रमजान - स्थानीय निवासी

हमारी जिंदगी मुश्किल से कट रही है। सुख सु‌विधाएं क्या होती हैं। हम और हमारे बच्चे नहीं जानते हैं। सालों से हमारी जिंदगी इसी ढर्रे पर चल रही है। हमें सरकार से मदद की उम्मीद है। सरकार हमें मदद करे तो हमारे जीवन में भी बदलाव आ सकता है। हमारी जिंदगी बदल सकती है।

साजन - स्थानीय निवासी

बारिश और गर्मी के मौसम में हमें काफी परेशानी उठानी पड़ती है। प्लास्टिक की छत हमेशा टपकती है। अगर रात में बारिश शुरु हो जाती है। तो पूरी रात जागते हुए काटनी पड़ती है। अगर किसी योजना के तहत हमें भी पक्का आवास मिल जाए तो जीवन में बड़ी खुशी मिल जाए।

गुतली - स्थानीय निवासी

सुविधाएं न मिल पाने की वजह से बच्चों की जिंदगी भी अंधकारमय होती दिखाई दे रही है। बच्चों का भविष्य बनाने के लिए कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा है। मेरी सरकार से यही मांग है कि हमारे बच्चों को लिए निशुल्क शिक्षा का इंतजाम किया जाना चाहिए। बच्चे शिक्षित होंगे तो सफल बनेंगे।

शेरनी - स्थानीय निवासी

हम लोगों में से किसी के पास राशन कार्ड नहीं है। अगर किसी तरह हमारा भी राशन कार्ड बन जाए तो बड़ी राहत मिल जाएगी। बच्चों को भी भर पेट खाना मिल पाएगा। अभी तो बच्चे जितना मिलता है। उतना खाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। कभी कभी को खाली पेट भी सोना पड़ता है।

फरेंदी - स्थानीय निवासी

हम लोगों के वोटर कार्ड नहीं बने हैं। हम लोग यहां रहने के बाद भी अपने मताधिकार का उपयोग नहीं कर पाते हैं। हमारे वोट नहीं है तो जनप्रितिनिधि भी हमारा ध्यान नहीं रखते हैं। हम लोगों को वोटर कार्ड बन जाएंगे तो जनप्रतिनिधि भी हमारी सुध लेंगे। हमें भी सुविधाएं मिलेंगी।

लता - स्थानीय निवासी

हमारी बेटियों को खुले आसमान के नीचे नहाना पड़ता है। काफी शर्मिंदगी होती है। हमें भी पक्का मकान मिल जाए तो बहू बेटियों को होने वाली दिक्कत खत्म हो जाए। खुले में शौच करने और नहाने से मुक्ति मिल जाए। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए।

गेंदमाला

ढ़कूरा - स्थानीय निवासी

पानी की बहुत ज्यादा परेशानी है। गर्मी में बिना पानी के हमारा जीवन कैसे कटता होगा। कोई भी इसका अंदाजा नहीं लगा सकता है। मेरी तो बस यही मांग है कि हमारी झोपड़पट्टी तक पानी की पाइप लाइन पहुंच जाए तो बड़ी राहत मिल जाएगी।

जोशना- स्थानीय निवासी

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।

अगला लेखऐप पर पढ़ें