बोले आगरा: हमारा हक दिलाने से जिम्मेदार झाड़ रहे पल्ला
Agra News - जगनेर कस्बे में पल्लेदार कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जिसमें कम मजदूरी, पेयजल की कमी और शौचालयों की अभाव शामिल हैं। दिनभर मेहनत के बाद भी उन्हें केवल 300-400 रुपये मिलते हैं। पल्लेदारों ने सरकार...
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जगनेर, हिन्दुस्तान संवाद। राजस्थान से सटे जगनेर कस्बे में पल्लेदार कई समस्याओं से जूझ रहे हैं। सर्वाधिक दिक्कत मजदूरी को लेकर है। दिन भर बोरियां उठाने के बाद भी इनके हिस्से में तीन सौ चार सौ रुपये ही आते हैं। घर चलाना मुश्किल हो रहा है। हर दिन शोषण का शिकार होते हैं ये पल्लेदार। उन्होंने सरकार से गल्ला मंडी में मजदूरी निर्धारित करने की मांग की है। यहीं नहीं मंडी में पल्लेदार पेयजल, शौचालय और टिन शेड की समसाओं से भी जूझ रहे हैं।
जगनेर में बसई रोड पर स्थित है गल्ला मंडी। यहां सुबह करीब दो पल्लेदार काम की तलाश में पहंुंच जाते हैं। यहां किसान सरसों और गेंहू बेचने आते हैं। जगनेर के अलावा यहां राजस्थान से भी किसान पहुंचते हैं। इस संपन्न मंडी में पल्लेदारों की अपनी समस्याएं और परेशानियां हैं। संवाद के दौरान ये पल्लेदार अपनी सममस्याएं बेहिचक बताते हैं। सर्वाधिक परेशानी मजदूरी की है।
एक बोरी वाहन से चढ़ाने या उतारने के लिए उनको सिर्फतेरह रुपये मिलते हैं। इसको पल्लेदार शोषण बताते हैं। उनका कहना रहा कि वो संगठित क्षेत्र के मजदूर नहीं है। इनके लिए मनरेगा जैसी निर्धारित मजदूरी नहीं है। दिन रात पसीना बहाते हैं तब जाकर दो जून की रोटी की इंतजाम हो पाता है।
पल्लेदार अमर सिंह बताते हैं कि विभिन्न श्रमिक योजनाओं के जरिए मजदूरों के हितों को साधने का दावा तो सरकारी स्तर पर होता है मगर इस दावे के पीछे की सच्चाई कुछ और ही है। यदि हम पल्लेदार दो दिन काम नहीं करें तो इनके यहां भरण पोषण की चिंता पैदा हो जाती है।
रोज कमाकर रोज खाने वाले इस वर्ग के लिए मंडियों में सुख सुविधाओं का सर्वथा अकाल है। सुभाष बताते हैं कि जगनेर की गल्ला मंडी में पानी की भी समस्या है। यहां शौचालय गंदा पड़ा है। पल्लेदार बताते हैं कि सर्दी, बारिश, गर्मी के दिनों में अक्सर मौसम बिगड़ने पर इन्हें पूरा काम भी नहीं मिल पाता। सीजनल काम के दौरान हाड़तोड़ मेहनत रहती है। ये वर्ग चाहता है कि उन्हें काम के निर्धारित रुपये दिलाए जाने की व्यवस्था की जाए। इनकी मेहनत का कोई निश्चित विकल्प नहीं है। सरकार ने जिस तरह मनरेगा मजदूरों के लिए अनिवार्य काम की गारंटी दे रखी है। इसी तरह धान, गेहूं, मक्का, बाजरा, मूंगफली, जैसे कृषि उत्पादों की खरीद के दौरान इन्हें भी अनिवार्य काम और पर्याप्त मजदूरी की गारंटी मिलनी चाहिए। पल्लेदार भूपेंद्र, धर्मेंंद्र और फतेह सिंह का कहना है कि प्यास लगती है तो पानी पीने दूर जाना पड़ता है। धूप लगती है तो पर्याप्त छाया का मंडी में इंतजाम नहीं है। यदि कोई मजदूर आराम करना चाहता है तो मंडी में उसके लिए कोई व्यवस्था नहीं है। मजदूर यदि बीमार हो जाए तो उसके उपचार की कोई व्यवस्था नहीं है। ये मजदूर चाहते हैं कि इन्हें भी मंडी में सुविधाएं मिलें। पूरा परिवार का स्वास्थ्य बीमा, आयुष्मान योजना से जोड़ा जाए और सबसे बड़ी बात पल्लेदारों को नियमित काम की गारंटी भी दी जाए। तभी इस वर्ग का भला होगा।
सुझाव
1. आढ़तियों द्वारा पल्लेदारों को मासिक मानदेय दिलाया जाए।
2. सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए मंडी में शिविर लगाए जाएं।
3. किसानों को सम्मान निधि की तरह पल्लेदारों को भी मिले आर्थिक लाभ।
4. आयुष्मान योजना में पल्लेदारों को शामिल किया जाए।
5. मंडी में धर्मशाला बनाया जाए, वाटर एटीएम लगाए जाएं। पर्याप्त टिन शेड होने चाहिए।
शिकायत
1. चोरी होने पर पल्लेदारों की जिम्मेदारी तय करते हैं आढ़ती।
2. किसानों के उत्पादन पर रहते हैं निर्भर, आढ़ती नहीं देते मेहनताना।
3. पल्लेदारों को सरकारी योजनाओं का नहीं मिल रहा लाभ।
4. मंडी में पल्लेदारों के रुकने के लिए कोई इंतजाम नहीं।
5. मंडी में काम करने का समय निर्धारित नहीं है।
पल्लेदारों की पीड़ा
पल्लेदारों का कोई मानदेय नहीं है। जिस दिन किसान का उत्पादन आ जाए उस दिन मेहनताना मिल जाता है। जिस दिन नहीं आता उस दिन हाथ पर हाथ रखे बैठे रहते हैं। पल्लेदारों को भी मासिक मानदेय दिया जाए।
-सुभाष
पल्लेदार चौबीस घंटे काम करते हैं। आढ़ती 11 बजे आते हैं। उसके बदले में उसे आढ़ती की तरफ से कुछ नहीं मिलता। किसान के उत्पादन से ही पल्लेदारों को 8 रुपये प्रति पैकेट मिलता है।
-सोरन सिंह
पल्लेदार का जीवन बेहद कष्टकारी है। दिनभर धूल-मिट्टी में पल्लेदार कार्य करता है। लेकिन शाम को जब घर जाता है तो उसके जेब में महज 300 से 400 रुपये आ पाते हैं। इससे क्या घर सब्जी ले जाए और क्या बचत करे।
-मुरारी लाल
मंडी में किसान को सिर्फ 13 रुपये बोरी के हिसाब से उत्पादन की वाहन से उतराई, तुलाई मिलती है। इस में भी चार से पांच पल्लेदार शामिल होते हैं। ऐसे में एक पल्लेदार के हिस्से में मात्र डेढ़ से दो रुपये ही आ पाते हैं।
-घनश्याम
श्रमिकों के लिए प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का 25 प्रतिशत का कोटा है। लेकिन उनके बच्चों को लाभ नहीं मिल पाता। जो लोग जागरूक हैं या फिर अधिकारियों के टच में रहते हैं उन्हीं को इसका लाभ मिल रहा।
-जगराओ
पल्लेदार श्रमिक की श्रेणी में आते हैं। लेकिन उनका श्रम विभाग में पंजीकरण नहीं है। मंडी में सैकड़ों पल्लेदार काम कर रहे हैं। श्रम विभाग मंडी में शिविर लगाकर पल्लेदारों का पंजीकरण करे।
फतेहसिंह
पल्लेदारों को सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता। अपनी मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट पालते हैं। पल्लेदारों का राशन कार्ड, आयुष्मान कार्ड बनाए जाएं। सभी पल्लेदारों को आवास दिए जाएं।
-राधेश्याम
आढ़ती अपनी दुकान पर माल की रखवाली के लिए चौकीदार रखें। पल्लेदारों को सिर्फ माल तुलाई और लोडिंग करने दी जाए। ताकि उनकी बेवजह की जिम्मेदारी खत्म हो। किसानों के उत्पादन से ही काम मिल पाता है।
-राजकुमार
पल्लेदार का काम सिर्फ किसान के उत्पादन की तुलाई तथा वाहनों पर लोड करने का है। लेकिन दुकान पर उन्हें माल की रखवाली करनी पड़ती है। इस रखवाली का उन्हें कुछ नहीं मिलता। लेकिन जिम्मेदारी बनी रहती है।
-राजवीर
मंडी में अक्सर उत्पादन की चोरी हो जाती है। उत्पादन की रखवाली की जिम्मेदारी आढ़ती पल्लेदारों पर छोड़ देते हैं। चोरी होने पर पल्लेदारों से चोरी गए उत्पादन की कीमत वसूली जाती है। ऐसा नहीं होना चाहिए।
-सत्यवीर
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