गर्भावस्था में अल्ट्रासाउंड न कराना जोखिम भरा
आगरा में गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड की कमी से माँ और बच्चे को खतरा हो सकता है। विशेषज्ञ डा. ऋचा सिंह के अनुसार, सही समय पर अल्ट्रासाउंड कराने से भ्रूण का विकास, जन्मजात विकृतियों, और अन्य...
आगरा गर्भावस्था में ज्यादा अल्ट्रासाउंड कराना ठीक नहीं है। इससे बच्चे को जोखिम हो सकता है। अगर आप भी ऐसा सोचते हैं तो यह कोरा वहम है। बल्कि जांच न कराने से गर्भवती और उसके शिशु को खतरा हो सकता है। गंभीर होने पर दोनों की जान पर भी बन सकती है। एसएन मेडिकल कालेज में स्त्री और प्रसूति रोग विभाग की अध्यक्ष डा. ऋचा सिंह के मुताबिक अगर बिना अल्ट्रासाउंड जांच की गर्भवती आती हैं तो उनके बच्चे की सही आयु का पता लगाना मुश्किल होता है। महिलाएं अक्सर गर्भधारण का सही समय भूल जाती हैं। शहरी आबादी में यह कम लेकिन देहात से आने वाली महिलाओं के साथ भ्रम की स्थिति अधिक है। जांच न कराने पर प्लेसेंटा की स्थिति, जन्मजात विकृतियां, खून की कमी, अंगों के विकसित होने या न होने का पता नहीं चल पाता। ऐसे में गर्भवती का सिर्फ प्रसव ही कराया जा सकता है। अगर स्थितियां अनुकूल हैं तो सामान्य, अन्यथा की स्थिति में सीजर करना पड़ता है। फिर जैसा बच्चा पेट में विकसित हुआ है, वही बाहर आएगा। अगर उसमें कोई दिक्कत है तो बनी रहेगी।
कब कराएं अल्ट्रासाउंड
पहला:- डेढ़ से दो माह के बीच कराना चाहिए। इससे बच्चे के दिल की धड़कन देखी जाती है। भ्रूण ठीक से विकसित हो रहा है तो धड़कन भी अच्छी होती है। इससे पता चल जाता है।
दूसरा:- तीन माह पर कराना चाहिए। इसमें आनुवांशिक सिंड्रोम जैसे सिर न बनना, अंगों का विकसित होने या न होने का पता चलता है। गड़बड़ होने पर माता-पिता फैसला ले सकते हैं।
तीसरा:- 4.5 माह पर कराना होता है। दिल, पेट संबंधी जैसे वाल्व न बनना, किडनी या दिमाग संबंधी और रक्त संबंधी सिंड्रोम देखे जाते हैं। पता चलने पर फैसला लिया जा सकता है।
चौथा:- सातवें या 8.5वें महीने पर कराना बेहद जरूरी होता है। इससे बच्चे का अब तक का विकास, खून और पानी की कमी देखकर सामान्य या सीजेरियन का फैसला किया जाता है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।