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बोले कासगंज: खुशियां बरसाने वालों को ‘कृपा का इंतजार

Agra News - कासगंज में बैंड कलाकारों ने अपनी समस्याएं साझा की हैं। शादियों में डीजे के बढ़ते चलन के कारण बैंड का काम प्रभावित हुआ है। कलाकारों का कहना है कि महंगाई और डीजे ने उनकी आमदनी को कम कर दिया है। सरकार को...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराThu, 13 Feb 2025 11:33 PM
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बोले कासगंज: खुशियां बरसाने वालों को ‘कृपा का इंतजार

कासगंज। कभी बरात चढ़ाते-चढ़ाते थक जाते थे। गाते-बजाते कई कई घंटे बीत जाते थे। एक बरात चढ़ाने के बाद दूसरी बरात के लिए निकल पड़ते थे। शादियों का सीजन चलता था तो दूल्हा पक्ष से तीन घंटे के समय का अंतराल रखकर बुकिंग करते थे, लेकिन अब बदले माहौल में बहुत से लोग बरात में बैंडबाजे के जगह गाड़ियों पर लगे डीजे को बुक कर लेते हैं। इसके कारण हम बैंड वालों का धंधा ही चौपट हो गया है। हिन्दुस्तान के बोले कासगंज अभियान के दौरान बैंड कारोबारियों और कलाकारों ने अपनी समस्या को खुलकर रखा। दियों का सीजन आने से पहले ही बैंडबाजे वाले कलाकार अपना रियाज शुरू कर देते हैं। हर बैंड वाले की ड्रेस भी तैयार कराई जाती हैं। शहर में बैंड का नाम हो इसलिए जी जान से मेहनत करते हैं। इसके बाद इन बैंड कलाकारों के मन में दर्द है। क्योंकि ज्यादातर वैवाहिक कार्यक्रमों में बैंड की जगह गाड़ियों पर लगे डीजे ने ले ली है। पहले से आर्थिक तंगी के मारे इन बैंड बाजे वालों के सामने अब जीवन यापन का खतरा मंडरा रहा है।

हिन्दुस्तान के बोले कासगंज अभियान के दौरान शहरभर के बैंड कलाकारों और कारोबारियों ने शिरकत की। संवाद के दौरान इन कलाकारों की व्यथा खुलकर सामने आई। हर एक कलाकार आज के दौर में चल रहे डीजे सिस्टम को कोसता रहा। संवाद के दौरान एक कलाकार ने कहा कि पूरी साल में कुछ ही दिन सहालग चलते हैं। ऐसे में भी प्रतिस्पर्धा का दौर है। इसके बाद भी डीजे वालों ने आधे से ज्यादा धंधा छीन लिया है। पहले के समय में बैंड का काफी अच्छा काम था। तीन पीढ़ियों से बैंड संचालित करने वाले एक बैंड मास्टर ने बताया कि लोग पुरानी रीत रिवाज छोड़कर आधुनिकता की ओर दौड़ रहे हैं, लेकिन इस आधुनिकता ने बैंड वालों के सामने कई समस्याएं खड़ी कर दी हैं। हम लोग बाजे के साथ-साथ बरातियों की फरमाइश पर गाने गाते हैं। बराती नाचते, कूदते और खुश होकर इनाम भी देते हैं। यह दौर बरात चढ़ने की शुरुआत से लेकर बेटी वाले के दरवाजे तक चलता है। बैंड में गायक ने बताया कि हर कलाकर को कुछ न कुछ रुपये इनाम में जरूर मिलते थे। बैंड कलाकारों ने कहा कि अब ये दौर बदल सा रहा है। शादियों में ज्यादातर लोग बैंड की जगह डीजे को बुक कर लेते हैं। इनमें फिल्मी गाने बजाए जाते हैं। कलाकारों ने कहा कि डीजे से दो परेशानियां हैं। पहला तो काफी हाई साउंड होता है, जिससे लोगों को परेशानी होती हैं। दूसरा बैंड का महत्व खत्म हो रहा है। इस काम को हर कोई नहीं कर सकता है। एक कलाकार ही बैंड में काम करता है। बैंड के काम से जुड़े लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को इस बारे में सोचना चाहिए।

बैंडबाजा कलाकारों की ये हैं समस्याएं

मैं तीसरी पीढ़ी के रूप में बैंड का काम संभाल रहा हूँ। मेरे पिता मास्टर हबीब राही और दादा अब्दुल हमीद भी यही काम करते थे। हमारा बैंड लगभग 100 वर्ष पुराना है। अब महंगाई लगातार बढ़ रही है। वहीं शादी विवाह में डीजे के बढ़ते चलन ने हमारे धंधे की कमर तोड़ दी है। उस पर बैंक लोन भी नहीं देती। -चंदन, कलाकार

महंगाई के इस दौर में छोटे-से-छोटे बाजे की कीमत लगभग छह हजार रुपये है। एक शादी में बहुत मुश्किल से दो-ढाई हजार रुपये बच पाते हैं। बैंड की ठेली और ट्राली लाइटों को खड़ा करने के लिए किराये पर गोदाम लिया है। पाँच हजार रुपये तो हर माह उसके किराये के ही चले जाते हैं। हमें तो बैंक से लोन भी नहीं मिलता। -टिंकू, कलाकार

मैं पिछले 24 सालों से बरातों में ट्रम्प पिट बजाता हूँ। पहले पूरे सीजन लगातार काम रहता था। लेकिन अब चलन बदल चुका है। डीजे के बढ़ते ट्रेंड ने हमारे काम को बहुत प्रभावित किया हैं। ऑफ सीजन में किराये का ई-रिक्शा बच्चों के पेट पाल रहा हूँ ।-मुश्तकीम, कलाकार

बीते 16 सालों से बैंड में एक गायक कलाकार के तौर पर काम कर रहा हूँ। लेकिन डीजे और रंगशाला हमारे मुंह का निवाला छीन रहे हैं। रातभर गाने सुनाने के बाद भी हमें पूरा मेहनताना भी नहीं मिलता। सीजन खत्म होने पर गुब्बारे बेचकर बच्चों को पालता हूँ। सरकार को हमारे लिए भी कुछ सोचना चाहिए। -इकबाल, कलाकार

लगभग 12 वर्षों से शादियों में ड्रम बजाने का काम कर रहा हूँ। लेकिन विरासत में अपने बच्चों को यह काम नहीं देना चाहता। क्योंकि अब मुझे ही इस काम से कोई उम्मीद नहीं है। डीजे के बढ़ते चलन के कारण अब बहुत कम लोग बैंड बजवाते हैं। सीजन खत्म होने पर फेरी लगाकर कपड़े बेचने पड़ते हैं।-इमरान, कलाकार

मैं शादियों में ब्रास बजाने का काम करता हूँ। यह एक कला है। लेकिन अब इस कला से परिवार चलाना मुश्किल हो गया है। सीजन खत्म होने पर लकड़ी बेचकर बच्चों का पेट भरते हैं। हमें कलाकार के रूप में सरकार को गुजारा भत्ते का प्रबंध करना चाहिए।-जावेद, कलाकार

पिछले 20 सालों से मैं शादियों में बड़ा ड्रम बजा रहा हूँ। इस कला से हम अन्य लोगों की खुशियां तो बढ़ा देते हैं। लेकिन हमारी खुशियों की चिंता किसी को नहीं होती। हमारे बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते। सहालग खत्म होने पर बच्चों का पेट भरने के लिए फेरी लगाता हूँ।-रईस, कलाकार

पहले के समय में बिना बैंड बाजे के शादियां नहीं होती थीं। लेकिन आज के दौर में लोग बैंड से ज्यादा डीजे को तरजीह देने लगे हैं। डीजे की धमाकेदार आवाज में बैंड के सुरीली धुने लगातार गुम होती जा रही हैं। यदि सरकार ने हमारी ओर ध्यान नहीं दिया तो कुछ वर्षों में हमारी कला विलुप्त हो जाएगी।-अनिल कुमार, कलाकार

लंबे अरसे से बरातों में ट्रम्पपिट बजा रहा हूं। कला के रूप में इस परंपरा को लगभग 40 वर्षों से निभा रहा हूँ। लेकिन अब महंगाई के दौर में इससे गुजर नहीं होता। वाद्य यंत्र बजाने से फेफड़े भी जल्दी कमजोर हो जाते हैं। लेकिन उपचार के लिए कोई मदद नहीं मिलती। हमारी कला को सरकार भी सम्मान नहीं देती। -कबीर, कलाकार

शादियों में 30 सालों से सेक्सोफोन बजाने का काम कर रहा हूं। यह हुनर पिता से मिला, लेकिन अब अपने बच्चों को में इस काम से दूर रखना चाहता हूँ। क्योंकि साल भर में 35 - 40 दिन ही काम मिल पता है। ऐसे हालत में परिवार नहीं चलाया जा सकता। सीजन खत्म होने पर नाई का काम करता हूँ। -अतीक, कलाकार

सामूहिक विवाहों से भी संकट पैदा हुआ

बैंड के कलाकारों ने कहा कि पहले लोग अपने बजट के अनुसार शादी करते थे, लेकिन इसमें बैंडबाजे हर किसी की जरूरत होती थी। अपनी आर्थिक स्थिति अनुसार बैंडबाजे बुक कराए जाते थे। अब जब से सरकार की ओर से सामूहिक विवाहों का चलन बढ़ा है, उससे बरातें कम निकलती हैं। इसका असर भी बैंडबाजे वालों पर पड़ा है। बैंड वालों ने मांग की है कि सरकार इन सामूहिक विवाह समारोहों में बैंड की बुकिंग कराए तो हम लोगों की काफी हद तक आमदनी बढ़ सकती है। इसके अलावा अन्य सरकारी कार्यक्रमों में भी बैंड वालों की बुकिंग कराए जानी चाहिए।

नहीं मिलता बैंक से लोन

बैंडबाजों में काम करने वालों के पास सरकार की ओर से भी कोई सुविधा नहीं है। ना तो इनका श्रम विभाग में पंजीकरण होता है ना ही किसी बैंक से लोन मिल पाता है। यह लोग बेंडर स्कीम में भी नहीं आते है। सरकार की ओर से वेंडर को दस हजार रुपये का लोन मिल जाता है। बैंकें इनको इस योजना में नहीं गिनते। बेंडर होने के लिए नगर पालिका में पंजीकरण होना जरुरी है। पूरे वर्ष में तीन महीने ही काम मिल पाता है। बाकी के 9 महीने तक घर चलाने के लिए इधर उधर भटकते रहते हैं।

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