बोले आगरा: खेती किसानी का सामान, जीएसटी लगता है 18 फीसदी
Agra News - आगरा के पंप निर्माण उद्योग पर जीएसटी का भारी प्रभाव पड़ा है। 18% जीएसटी दर ने छोटे व्यवसायियों के लिए बिक्री में कमी ला दी है। टेंडर प्रक्रिया में उच्च टर्नओवर की शर्तें भी स्थानीय उद्योगों के लिए...
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मोनोब्लॉक, मोटर, सबमर्सिबिल, टुल्लू आदि पंपों को जीएसटी की सूची में 8413 नंबर पर रखा गया है। इस पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी लगता है। इंजीनियरिंग कॉम्पोनेंट मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी कहते हैं कि इस सूची के उपरोक्त सभी सामान या तो घरेलू स्तर पर आम जरूरत में काम आते हैं या फिर उनको कृषि के लिए प्रयोग किया जाता है। जिस पेशे पर सरकार आयकर लेने से भी परहेज करती हो, उस में प्रयोग होने वाले उत्पाद को 18 फीसदी की दर पर रखना कितना जायज है, यह सरकार के प्रतिनिधि ही जानें। आगरा, मनोज मित्तल। नुनिहाई में एक इकाई परिसर में शनिवार को जमा हुए कारोबारियों ने इस सेक्टर की कई विसंगतियों को रखा। उनका कहना था कि वैट व्यवस्था के दौरान यह सेग्मेंट पांच फीसदी टैक्स के दायरे में था। ऐसे कारणों की वजह से आगरा में तैयार कृषि पंप को देश भर में खरीदार मिल जाते थे। सैकड़ों की तादाद में इकाइयां इनके स्पेयर तैयार करती थीं।
जबकि बड़ी इकाइयां इनको असेंबिल करके अंतिम उत्पाद तैयार करती रहीं। साझा रूप से चलने वाली व्यवस्था ने इस कारोबार को बुलंदियों पर पहुंचा दिया। आगरा के निर्माता देश विदेश में आपूर्ति करने लगे। कृषि पंप का कारोबार तो इतना चला कि तीसरी दुनिया के देशों में आगरा के कृषि पंप एवं डीजल की तूती बोलने लगी। सरकारी निर्माण से लेकर वृहद स्तर पर होने वाले कार्य में इन्हीं पंपों को उपयोग किया जाने लगा।
इसका असर व्यापक स्तर पर हुआ। वहीं आगरा के कारोबारियों ने पूर्व उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडीशा सहित अन्य राज्यों में अपने विपणन कौशल से ढेर सारे ऑर्डर लिए। इसका फायदा उनको तो मिला ही, पटरी से उतर रही आगरा की मशीनरी इंडस्ट्री को जरूरी संजीवनी मिल गई। यहां पर कारोबार तेज गति से दौड़ने लगा। गुणवत्ता में लगातार सुधार रहने से विभिन्न स्तर पर बिक्री बढ़ने लगी। स्थानीय इकाइयां नियमित रूप से व्यस्त रहने लगीं।
कुटीर स्तर पर चलने वाली इंडस्ट्री भी इस सहयोग से चल निकली। आगरा को फुटवियर का सहयोगी उत्पाद मिल गया जो अर्थव्यवस्था में योगदान देने लगा। यह खुशनुमा स्थिति एक जुलाई 2017 तक कायम रही। जीएसटी लागू होते ही टैक्स की दरों में बड़ा बदलाव हो गया। जो उत्पाद पांच फीसदी में चल रहे थे, उनको सीधा 28 फीसदी टैक्स के दायरे में रख दिया गया। इस उद्योग की बिक्री प्रभावित होने लगी। हालात ऐसे बने कि यह उद्योग सिसक उठा। अस्तित्व के लिए संघर्ष करने लगा।
ऐसा पेच अटकाया कि यूपी वाले आऊट हो गए
उद्यमी अमित अग्रवाल रिंकू ने बताया कि प्रदेश की कृषि नीति के अंतर्गत सरकार ने तीन साल पहले कृषि पंपों को हर खेत तक पहुंचाने का इरादा बनाया। इसके लिए तय हुआ कि सरकार द्वारा प्रत्येक जनपद में कृषि पंपों की खरीद की गई। जिस उत्पाद को आगरा वाले 35 हजार रुपये में अपने काउंटर से बेच रहे थे, उसको विभाग ने 45 हजार रुपये पर फिक्स कर दिया। और इसके लिए टेंडर निकले।
टेंडर जब प्रकाशित हुआ तो आगरा वाले चौंक गए। इसमें सप्लायर के लिए न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर निश्चित कर दिया। यह नहीं, जो राशि तय की गई, वह तत्कालीन सूक्ष्म एवं लघु इकाइयों की परिभाषा के बाहर की स्थिति थी। जबकि यह जानते हुए कि आगरा में अधिकतर इकाइयां इसी श्रेणी की है। उसके बाद से तो इस फील्ड के लिए मुश्किलें बढ़ती गईं। क्योंकि टेंडर में न्यूनतम 65 करोड़ रुपये के टर्नओवर की शर्त थी, आगरा की किसी भी इकाई को उत्तर प्रदेश सरकार की अहम योजना का ऑर्डर ही नहीं मिल सका।
गुजरात की तीन इकाइयां इस टेंडर के लिए पात्र हुईं। और इनको ही ऑर्डर मिल गए। आगरा के कारोबारी 500 करोड़ रुपये की बिक्री से वंचित रह गए। वह भी उस उत्पाद की, जिसके वो दिग्गज थे। क्योंकि अधिकारियों द्वारा जो सीमा तय की गई, उसका ओर छोर ही नहीं।
उस समय सूक्ष्म इकाइयों के लिए न्यूनतम आवश्यकता पांच करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर की थी। जबकि छोटी इकाइयों के लिए न्यूनतम वार्षिक टर्नओवर 50 करोड़ रुपये तय था। हाल के बजट में हालांकि संशोधन हुए हैं, इसका भी फायदा आगरा की इकाइयों को नहीं मिला है। क्योंकि ज्यादातर इकाइयां टेंडर की शर्त के अनुसार काफी कम रहीं। आकलन है कि आगरा के कारोबारी बड़ी बिक्री से वंचित रह गए। इसको लेकर शासन के समक्ष पैरवी भी की गई। लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
अनेकों विभागों से पड़ता है पाला
अमित अग्रवाल रिंकू ने कहा कि उद्यमियों को छोटे स्तर पर अपना अस्तित्व बनाए रखना संभव नहीं। प्रदूषण, नगर निगम, जलकल, श्रम, ईएसआई, पीएफ, जीएसटी, आयकर, फैक्ट्री एक्ट, अग्निशमन जैसे विभागों से जूझने के साथ इकाई चलाना संभव नहीं हो पाता। उनके अनुसार कुछ विभागों की एनओसी लेने में ही इकाई संचालक की चप्पलें घिस जाती हैं। ऐसी स्थिति भी आती है कि अनुमति नहीं मिल पाती है और इकाई में लगाई गई लागत मिट्टी में मिल जाती है। उन्होंने कहा कि सरकार को चाहिए कि सिंगल विंडो सिस्टम को मजबूत बनाएं। या फिर एक ही विभाग को सभी की जिम्मेदारी सौंप दी जाए।
टीटीजेड गठन के बाद से बिगड़े हालात
पूर्व अध्यक्ष अमित जैन ने कहा कि इंजीनियरिग कॉम्पोनेंट उद्योग को सबसे अधिक मुश्किलें ताज संरक्षित क्षेत्र के गठन के बाद से आईं। क्योंकि यह उद्योग ढलाई पर निर्भर रहता है। सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक निर्णय के बाद ढलाई उद्योग में हलचल रही। उसके कारण आगरा से शिफ्ट होकर यह उद्योग राजकोट सहित अन्य हिस्सों को चला गया। उनके पास तो प्रतिस्पर्द्धा में टिके रहने का अवसर था। लेकिन आगरा के लिए कुछ भी नहीं। आगरा वालों को बतौर ईंधन गैस ही प्रयोग करनी थी। जबकि अन्य सेंटरों के उद्यमी धड़ल्ले से कोयले का प्रयोग कर अपना व्यापार करने लगे। जबकि आगरा के हिस्से प्राकृतिक गैस ही रही।
नहीं रहा बैंक लोन का लाभ
कारोबारियों ने बताया कि पूर्व में किसानों को पंप सेट लेने पर आसानी से बैंक लोन मिल जाता था। लोन पर ब्याज की दर बेहद कम हुआ करती थी। इस वजह से किसान अपना लोन सैंक्शन कराकर आगरा से ही पंप खरीद लेते थे। दूसरे स्थानों के किसानों ने भी अपना लोन स्वीकृत कराकर आगरा से पंप की खरीद की। इसी प्रकार पंप खरीद पर सरकार से योजना विशेष में सब्सिडी मिलती थी। दोनों ही लाभ बंद कर दिए गए। इस कारण से भी आगरा की मशीनरी इंडस्ट्री मुश्किलों में घिरी हुई है। कारोबारी चाहते हैं कि एक बार फिर से किसानों के लिए ऐसे लोन की सुविधा शुरू होनी चाहिए जिससे कि वे सिंचाई कर सकें।
श्रम की दिक्कत हुई
ताज संरक्षित क्षेत्र में आगरा के आने के बाद कुछ साल ऊहापोह की स्थिति ने इस सेक्टर की श्रम शक्ति को तितर बितर कर दिया। उसके बाद भी हालात नहीं संभले। आरोप है कि इस उद्योग को जरूरत के अनुसार श्रमिक ही नहीं मिल पाते। जबसे शासन की तरफ से राशन वितरण नीति में अत्यधिक दरियादिली हुई है, श्रमिकों ने अतिरिक्त रोजगार के प्रति दिलचस्पी लेना ही कम दिया है। वे बारीक काम तो करते ही नहीं, जिस काम में मेहनत की आवश्यकता पड़ती है, उससे भी दूरी बना ली जाती है। ढलाई के भी बहुत से कारीगर इस लाइन को छोड़ गए। वे ऑटो चला रहे, अन्य वाहनों के लिए
प्रमुख दिक्कतें
जीएसटी की दरों में विसंगति
स्पेयर पार्ट पर टैक्स ज्यादा
टीटीजेड के नियमों की सख्ती
विभागों के अनुपालन ज्यादा
सफेद श्रेणी का लाभ नहीं
समाधान
जीएसटी की दरों में विसंगति दूर करना
स्पेयर पार्ट पर अत्यधिक टैक्स कम करना
टीटीजेड के नियमों का सरलीकरण किया जाए
विभागों के नियम अनुपालन का सरलीकरण हो
सफेद श्रेणी में होने के लिए अनुपालन कम हो
प्रतिक्रियाएं
इस समय नियमों का जंजाल बढ़ा है। ऐसे हालातों में छोटी इकाइयों के लिए बड़ी यूनिट से प्रतिस्पर्द्धा करना मुश्किल हो गया है। सरकार को इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने ही होंगे।
अमित मित्तल, अध्यक्ष, एक्मा
हम लोगों की प्रमुख समस्याओं में भूगर्भ जल है। इसके अलावा सुरक्षा संबंधी दिक्कतें भी इस ट्रेड को परेशान कर रहीं। विभिन्न विभागों के कारण भी हम लोगों को दिक्कत हो रही।
नितिन गर्ग, सचिव, एक्मा
हमारी मुख्य दिक्कत जीएसटी की है। इसकी दर 18 फीसदी है। जबकि डीजल इंजन मुख्यत: कृषि उत्पाद है। पर्यावरण से संबंधित नियमों में भी हमको राहत मिले। तभी काम बढ़ेगा।
संजीव अग्रवाल, उपाध्यक्ष, एक्मा
यह सेक्टर टैक्स की विसंगति के कारण परेशान है। पहले ही टीटीजेड के कारण आगरा में उत्पादन लागत बढ़ गई है। टैक्स की विसंगति के कारण हम लोगों को कारोबार करना मुश्किल हो रहा है।
विजय कुमार बंसल, कोषाध्यक्ष, एक्मा
हमारी इंडस्ट्री सफेद श्रेणी में होने के बाद भी कई प्रकार की एनओसी के जंजाल में फंसती है। इसको लेकर सरकार के नियमों में बदलाव किया जाए। उद्यमियों को राहत हो।
उमेश बंसल
कृषि पंप सेट पर जीएसटी की दर बहुत ज्यादा है। इससे बिक्री प्रभावित हो रही। विसंगति होने की वजह से भी मुश्किलें होती हैं। इनका समाधान किया जाए। ताकि यह ट्रेड फले।
अतुल गुप्ता, अध्यक्ष नेशनल चैंबर
आगरा को जब से टीटीजेड में लाया गया है, तब से यहां कोई बड़ा उद्योग नहीं लगा है। टीटीजेड में नए एवं पुराने उद्योगों को सरलता से चलने देना चाहिए। विस्तार की गुंजाइश हो।
अमित जैन, पूर्व अध्यक्ष, एक्मा
यहां के ट्रैफिक की अव्यवस्था के कारण माल की रवानगी में दिक्कत आती है। इसी के साथ ही बिजली के नियमों में भी सख्ती है। लोड बढ़ाना भी महंगा कर दिया। इससे दिक्कत है।
अंशुल मित्तल
हम लोगों के लिए अग्निशमन की अनापत्ति मुश्किल का सबब बनती है। इसका सरलीकरण किया जाना चाहिए। तभी लोग अपना कारोबार सुगमता एवं सहजता के साथ चला सकेंगे।
ओपी अग्रवाल, पूर्व अध्यक्ष, एक्मा
भूगर्भ जल एक समस्या बन चुका है। हम लोगों को जल कल विभाग की आपूर्ति मिलती ही नहीं। भूगर्भ के जल का उपयोग करने के लिए जिस तरह सख्ती की है, वह दिक्कत वाली है।
विनय कुमार बंसल
छोटी इकाइयों के लिए मुश्किल लगातार बढ़ रही हैं। हाल में सरकार ने सूक्ष्म इकाइयों की परिभाषा को बदला है। इसकी बजाए सरकार वास्तव में उनके लिए कुछ कार्य करती।
संजय कुमार गोयल
हम लोगों के कार्य के क्षेत्र में सुरक्षा की दिक्कत है। इसके लिए स्थानीय स्तर पर पुलिस विभाग को इंतजाम करना चाहिए। नुनिहाई क्षेत्र को सुरक्षित बनाने के लिए प्रयास होने चाहिए।
अंकित जैन
सरकार के विभिन्न विभागों के नियमों का सरलीकरण होना चाहिए। भूगर्भ जल की आपूर्ति से संबंधित नियमों को सरल बनाया जाना चाहिए। इसके लाइसेंस भी सहजता से हों।
संजय गोयल एडवांस
हम लोगों को पानी की सप्लाई नहीं मिलती। अपना स्वयं का इंतजाम भूगर्भ जल से करने का प्रयास करते हैं तो नियम सख्त हैं। छोटे उद्योगों के लिए सरकार को गंभीरता से सोचना होगा।
संजय गर्ग
पिछले दस साल से डीजल इंजन उद्योग में रोजी रोटी का संकट हो गया है। सरकार को चाहिए कि लोन एवं सब्सिडी की योजना को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। तभी काम बनेगा।
मनोज गर्ग, पूर्व अध्यक्ष, एक्मा
सरकार को इस सेक्टर की तरफ ध्यान देना चाहिए था। इसकी बदौलत ही देश में कृषि को बढ़ावा मिला। इस पर टैक्स की दर को कम करके उद्यमियों के साथ खरीदारों को भी राहत दें।
राकेश मित्तल
इस सेक्टर का टैक्स का गणित अजीब है। डीजल इंजन पर 12 फीसदी है और इसमें एक दो ऐसेसरीज जुड़ते ही इस पर टैक्स की दर बढ़ा कर 18 फीसदी हो जाती है। यह विसंगति दूर हो।
हरिमोहन अग्रवाल
18 जब तक इंजीनियरिंग कॉम्पोनेंट पर टैक्स की दर को ठीक नहीं किया जाएगा, आगरा का यह उद्योग तरक्की नहीं कर सकता। कई दशकों तक हम लोगों ने मेहनत की, अब टैक्स के आगे हार गए।
नितिन मंगल
हम लोगों को प्रदेश सरकार की नीति अजब लगी। जो सामान अपने प्रदेश में ही हैं, एक टेंडर की मामूली सी विसंगति के कारण यह ऑर्डर बाहरी प्रदेश के बड़े कारोबारियों के हाथ में चला गया।
अमित अग्रवाल रिंकू
सरकार को इस सेक्टर का अस्तित्व बनाने के लिए मूल भूत सुविधाएं देनी होगी। टैक्स की विसंगति को दूर करना होगा। विभिन्न विभागों के नियमों के अनुपालन की शर्तों को भी सहज बनाना होगा।
गिरीश कुमार बंसल
यह सेक्टर बड़ी तादाद में सरकार को राजस्व प्रदान करता है, उसकी तुलना में सुविधाएं कुछ भी नहीं। इस तरफ सरकार को ध्यान देना चाहिए। यह बेहद जरूरी कार्य है। ट्रेड को ताकत मिलेगी।
संजय गर्ग
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