पर्युषण पर्व : आत्मा में लीन हो जाना ही ब्रह्मचर्य
आगरा के शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म मनाया गया। पंडित अभिषेक शास्त्री ने प्रवचन में बताया कि ब्रह्म का आचरण और आत्मा में लीन होना ही ब्रह्मचर्य है।...
आगरा। शांतिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर सेक्टर 7 आवास विकास कालोनी सिकंदरा में पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म मनाया गया। सभी आठों इंद्रों की बोली लगाई गई। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के दसवें दिन पंडित अभिषेक शास्त्री ने अपने प्रवचन में कहा- ब्रह्म का आचरण करना, आत्मा में लीन हो जाना ही ब्रह्मचर्य धर्म है। अपनी ज्ञायक स्वभाव आत्मा में प्रवृत्ति करना ही निश्चय ब्रह्मचर्य अर्थात उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म है। स्पर्शन इन्द्रिय के विषयों, मैथुन कर्म से सर्वथा विमुख हो जाने को ब्रह्मचर्य कहते हैं। किन्तु काम केवल स्पर्शन इन्द्रिय का ही विषय नहीं है, किसी सुन्दर शरीर, वेश्यानृत्य, अश्लील चित्र आदि को आंखों से देखना, कामोत्तेजक गीतों को कानों से सुनना, भीनी गंध वाले इत्र आदि को नासिका से सूंघना इत्यादि इन्द्रियों से किये हुए कार्यों से भी शील का घात करने वाली हैं। इस जन्म-मरण के चक्र को रोकने के लिए कुछ प्रयास तो करना ही जाना चाहिए। यह दसलक्षण पर्व वर्ष में 3 बार आते हैं, बाकी दोनों को भी इसी उत्साह और धर्म भाव के साथ मनाने का संकल्प लें और शुभभावनाएं भाएं तो ही इस महापर्व को मानने में सार है। उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म की जय हो। इसके बाद पूजा का समापन हुआ। अध्यक्ष राजेश बैनाड़ा, मंत्री विजय जैन निमोरब, कोषाध्यक्ष मगन जैन, महेश जैन, अरुण जैन, सतीश जैन, अनिल आदर्श जैन, राजेन्द्र जैन, राकेश जैन पेंट, दिलीप जैन, राकेश जैन टीचर, जितेश जैन, मनोज जैन, आलोक जैन, मोहित जैन, प्रशांत जैन, दीपक बैनारा, अनंत जैन, विशाल जैन मीडिया प्रभारी राहुल जैन और सकल जैन समाज मौजूद था।
उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म मनाया
श्री महावीर दिगंबर जैन मंदिर कमला नगर में दशलक्षण महापर्व के 10वें एवं अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म मनाया गया। महामुनि राम नामक लघु नाटिका का मंचन किया। जिसमें दिखाया कि राम को जैन परंपरा के अनुसार कैसे वैराग्य हुआ देवों द्वारा उनकी परीक्षा ली गई और वे उस परीक्षा में सफल हुए और मोक्ष को प्राप्त हो गये।
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निर्वाण लाडू हर्ष उल्लास के साथ चढ़ाया
श्री पारसनाथ दिगंबर जैन मंदिर छीपीटोला में पर्युषण पर्व के अंतिम दिन उत्तम ब्रह्मचर्य के दिन सर्वप्रथम भगवान पारसनाथ की स्वर्ण कलशों से शांति धारा हुई। श्रद्धालुओं द्वारा अष्टद्रव के थाल सजाकर देव शास्त्र गुरु की पूजा, सौलहकारण धर्म की पूजा की। दस धर्म की पूजा, बासुपूज्य भगवान की पूजा और चौबीसो जिन देव की पूजा की गई। भगवान बासुपूज्य का निर्वाण महोत्सव मनाया गया। निर्वाण लाडू बड़े ही हर्ष उल्लास के साथ चढ़ाया गया। मुनि शिव दत्त सागर महाराज ने उत्तम ब्रह्मचर्य धर्म के बारे में बताया किस किस की याद कीजिए। किस-किस के लिए रोइए, संयम बड़ी चीज है, मुंह ढक सोइए, अपने जीवन में ब्रह्मआत्म में लीन रहने का प्रयास कीजिए। क्योंकि ब्रह्म आत्म में लीन रहने का नाम ही उत्तम ब्रह्मचर्य है। अगर जीवन में समता आ जाए आपके तो साधु बन जाना मुनिश्री ने कहा नारी में बहुत सहनशक्ति होती है। पति के गुजर जाने के बाद भी अपने चार-चार बेटों का लालन पालन बहुत अच्छे से कर लेती है और अपनी सील की रक्षा करती है दोपहर को जिन श्रद्धालुओं ने द्वारा चौदह साल चतुर्दशी के व्रत रखा व्रत पूरे हो जाने के पश्चात चतुर्दशी के व्रत का उद्यापन किया गया । 1008 दीपों से भगवान पारसनाथ की महाआरती हुई। अध्यक्ष मनोज कुमार जैन, मुरारी लाल, जैन अक्षय जैन, रविंद्र जैन, मुन्नालाल जैन, रामस्वरूप जैन, पिंटू जैन, मनोज गुरु, प्रताप जैन, मुकेश जैन, रजत जैन, राजीव जैन, संजीव जैन, दीपक जैन, महावीर जैन, रेशी जैन, ऊषा जैन ,संगीता जैन, मुनिया जैन, सोनिया जैन, और मीडिया प्रभारी दिलीप जैन आदि उपस्थित रहे।
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