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बोले आगरा, ताज के साये में कैद में जिंदगी

Agra News - आगरा में ताजमहल के पास बसे पांच गांवों के निवासी प्रतिबंधों से परेशान हैं। गांवों में किसी भी समय बाहर जाना मुश्किल हो जाता है, खासकर रात में। एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड जैसी सेवाएं भी इन तक नहीं पहुंच...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराMon, 24 Feb 2025 08:42 PM
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बोले आगरा, ताज के साये में कैद में जिंदगी

आगरा। ताजमहल 5 गांवों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों के लिए अभिशाप बन गया है। शहरी सीमा के वार्ड 33 में आने वाले गांवों पर ताजमहल की वजह से प्रतिबंधों का पहरा है। शाम ढलते ही इन गांवों में रहने वाले परिवार बीहड़ जैसे खुले इलाके में कैद हो जाते हैं। मन चाहे भी तो पत्नी बच्चों को गांव से बाहर ले जाकर किसी होटल, रेस्टोरेंट में इडली, डोसा नहीं खिला पाते। अंधेरा होता ही इन गांवों में सन्नाटा पसर जाता है। रास्ता होने के बाद भी शहर से संपर्क टूट जाता है। इतना ही नहीं, देर रात अगर गांव के किसी शख्स की तबीयत अचानक बिगड़ जाए, किसी का एक्सीडेंट हो जाए, तो एंबुलेंस भी गांवों तक आसानी से नहीं पहुंच पाती। फायर ब्रिगेड के लिए गांव तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं है। चैक डैम का शिलान्यास होने के बाद ग्रामीणों को कुछ उम्मीद जगी थी। लेकिन यह पूरी न हो सकी। संवाद कार्यक्रम में ग्रामीणों ने अपनी परेशानी साझा की।

ताज पूरी दुनिया में तारीफ बटोरता है। दीवाने पूरी दुनिया में हैं। लेकिन ताज के साये में बसे गांवों के निवासी इस इमारत को अपने लिए अभिशाप मानते हैं। उस पल को कोसते हैं, जब उन्होंने ताज के साये में नगला पैमा में घर बनाया था। ग्रामीण कहते हैं कि तब सोचा था कि ताज के पास घर बनाना सौभाग्य की बात होगी। अब यही ताज प्रतिबंधों की मार की वजह से उन्हें दुर्भाग्य लगता है। दरअसल इन गांवों का एक रास्ता ताज के पूर्वी गेट के सामने से होकर गुजरता है। दूसरा रास्ता 10 किलोमीटर दूर शिल्पग्राम के पास खुलता है। दशहरा घाट एंट्री प्वाइंट पर हर समय पुलिस और सीआईएसएफ का पहरा रहता है। इस रास्ते से ग्रामीणों को केवल दो पहिया वाहन लेकर निकलने की ही अनुमति है। वो भी तब जब वाहन चालक के पास गांव के पते का आधार कार्ड हो। अगर गांव के पते का आधार कार्ड नहीं है। तो, वाहन चालक को 12 किलोमीटर घूमकर घर जाना पड़ेगा। प्रतिबंधों की वजह से बेटियों की बारात गांव तक आसानी से नहीं पहुंच पाती है। ताजमहल से ये गांव तीन से पांच किलोमीटर दूर हैं। लेकिन चार पहिया वाहन से कोई रिश्तेदार घर आना चाहे तो उसे बियावान जंगल से होकर 10 से 12 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। रास्ते में लूटपाट होने का खतरा भी रहता है।

ताज के साये में बसे इन गांवों में पहला गांव गढ़ी बंगस है। यहां की आबादी करीब 4 हजार है। इसके बाद दूसरा गांव नगला पैमा है। गांव की आबादी करीब आठ हजार है। तीसरा गांव नगला तल्फी है। गांव की आबादी करीब 10 हजार है। इसके बाद करबना और धांधूपुरा गांव पड़ते हैं। यहां भी हजारों की संख्या में आबादी निवासी करती है। इन गांवों को आपस में और शहर से जोड़ने वाला एक ही रास्ता है। इस दिक्कत की वजह से इन गांवों में लोग अपने बेटे बेटियों की शादी करना पसंद नहीं करते।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब चेक डैम का उद्घाटन किया था। तब लोगों को उम्मीद जगी थी कि अब दिक्कत खत्म हो जाएगी। उसके बाद से लोगों को चैक डैम बनने का इंतजार है। प्रतिबंध के पहरे में बंधे परिवार इच्छा होने के बाद भी चार पहिया वाहन खरीदने की हिम्मत नहीं जुटा पाते क्योंकि वाहन बाहर शहर तक ले जाने के लिए सही रास्ता नहीं है। रास्ते की मांग को लेकर स्थानीय ग्रामीण कई बार धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। हर अधिकारी का दरवाजा खटखटा चुके हैं। इसके बाद भी सालों से गांवों में रहने वाले परिवारों को शहर से जोड़ने वाला सही रास्ता नहीं मिल पाया है। ग्रामीणों की जिंदगी ताज के साये में कैद होकर रह गई है।

पैदल पढ़ने जाती हैं बेटियां

नगला पैमा, गढ़ी बंगस और नगला तल्फी के बीच एक प्राथमिक विद्यालय है। एक आठवीं तक का निजी विद्यालय है। हाईस्कूल, इंटर की पढ़ाई करने के लिए बेटे बेटियों को गांव से बाहर जाना पड़ता है। जिन बच्चों के पास साइकिल है। वो तो स्कूल चले जाते हैं। जिन बच्चों के पास साइकिल नहीं है। उन्हें स्कूल से घर तक का सफर पैदल ही तय करना पड़ता है। गांव में सवारी वाहन आने का रास्ता नहीं है। जो रास्ता है। उसपर सवारी वाहन चालक आने को तैयार नहीं होते। रास्ते के दोनों तरफ जंगली झाड़िया हैं। जिन्हें पार करना बेटियों के लिए अग्निपथ पर चलने जैसा होता है। स्कूल आते जाते समय बेटियों की सुरक्षा पर खतरा रहता स रास्ते पर दूर दूर तक सन्नाटा रहता है। जंगली जीवों के हमले का खतरा भी बराबर बना रहता है।

चाहकर भी नहीं खरीद पाते कार

इन गांवों में रहने कुछ परिवार आर्थिक रूप से संपन्न हैं। कई घरों में ट्रैक्टर भी है। लेकिन ये लोग चाहकर भी मनपसंद कार नहीं खरीद पा रहे। शिल्पग्राम से गांव की तरफ आने वाला रास्ता हमेशा सुनसान रहता है। दोनों तरफ बियावान जंगल की कटीली झाड़ियां हैं। यहां कई बार लूटपाट हो चुकी है। ताज की तरफ से चार पहिया वाहन ले जाने की अनुमति नहीं है। इन दिक्कतों की वजह से गांव के लोग कार नहीं खरीदते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि प्रतिबंध खत्म हो जाए। या फिर उन्हें कोई वैकल्पिक मार्ग मिल जाए तो उनकी कार खरीदने की हसरत भी पूरी हो जाए। रास्ते की दिक्कत की वजह से वो चाहकर भी कार नहीं खरीद पा रहे हैं।

गांव में नहीं आते हैं सवारी वाहन

गांव में रहने वाले लोगों को कई तरह की परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। गांव में सवारी वाहन नहीं पहुंच पाते हैं। जो वाहन चालक गांव तक आने को तैयार हो जाते हैं। वह ग्रामीणों से इतना किराया मांग लेते हैं कि ग्रामीण खुद उन्हें मना कर देते हैं। पैदल ही गांव का सफर तय करते हैं। मकान बनवाने के लिए सामान मंगवाना भी ग्रामीणों को काफी महंगा पड़ता है। हर चक्कर पर दो से तीन गुना किराया चुकाना पड़ता है। गांव में परचूनी की दो तीन ही दुकानें हैं। बाकी सन्नाटा है। गांव में एंबुलेंस और फायर ब्रिगेड का पहुंचना भी मुश्किल है। गांव का नाम सुनते ही वाहन चालक यहां आने में आनकानी करने लगते हैं।

बेटे बेटियों की शादी में दिक्कत

रास्ते की दिक्कत की वजह से गांव में शहनाई की आवाज सुनाई देना भी बंद हो गई है। कई युवक शादी की उम्र होने पर भी कुंवारे बैठे हैं। जिन परिवारों के पास मैरिज होम बुक करने की आर्थिक समस्या परिवारों में बेटियों के हाथ पीले करने में दिक्कत है। गांव में बारात लेकर आना आसान नहीं है। इस वजह से लोग इन गांवों में रिश्ता जोड़ना पसंद नहीं करते। लड़के गांव का नाम सुनकर शादी से इंकार कर देते हैं। सवाल उठाते हैं कि घने जंगल के बीच बसे गांव में बारातियों की बस और दूल्हे की कार कैसे पहुंचेगी। माता-पिता को इस वजह से काफी परेशानी उठानी पड़ रही है। बच्चों का भविष्य कैसे संवरेगा। चिंता बढ़ती जा रही है।

चैक डैम का सपना अधूरा

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने पहले कार्यकाल में नगला पैमा में रबर चैक डैम का खुद शिलान्यास किया था। तब ग्रामीणों को लगा कि अब उनके दिन बदल जाएंगे। चैक डैम बन जाएगा तो गांव में आने जाने के लिए कोई नया रास्ता भी खुल जाएगा। लेकिन दिन बीतने के साथ ग्रामीणों के सपने चकनाचूर हो गए। नगला पैमा में अब तक न तो चैक डैम बनने की शुरुआत हो पाई है। ना ही ग्रामीणों को नया रास्ता मिल पाया है। गांव में रहने वाले कई परिवार यहां से पलायन करने का मन बना रहे हैं। गांव के युवा भी यहां रहना नहीं चाहते। अपने बच्चों को यहां से कहीं और ले जाने की तैयारी कर रहे हैं।

नहीं पहुंचती कचरे वाली गाड़ी

नगर निगम की सीमा में होने के बाद भी इन गांवों में सरकारी सुविधाओं का अभाव है। प्रतिबंधों और रास्ता खराब होने की वजह से गांव में कचरे वाली गाड़ी भी नहीं पहुंच पाती। इस वजह से ग्रामीणों को कूड़ा कचरा खाली पड़े खेतों में भी खपाना पड़ता है। कूड़े का सही निस्तारण न होने की वजह से ग्रामीणों को दिक्कत होती है। दुर्गंध तो फैलती ही है। कूड़े कचरे की वजह से गर्मी के मौसम में संक्रामक बीमारियों के फैलने का खतरा भी बढ़ जाता है। गांव के हालात लगातार खराब होते जा रहे हैं। जब कभी विदेशी सैलानी यहां घूमने जाते हैं तो गंदगी, जंगल और खराब रास्ता देखकर वापस लौट जाते हैं।

ये हैं समस्याएं

दशहरा घाट से गांव में बड़े वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध है। स्कूल वैन भी नहीं आ पाती हैं।

गांव में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव है। आकस्मिक स्थिति में एंबुलेंस चालक यहां नहीं आते।

गांव का रास्ता खराब होने और प्रतिबंध लगने की वजह से शादी के रिश्ते नहीं आते हैं।

रास्ते के दोनों तरफ जंगल होने की वजह से बेटियों की सुरक्षा खतरे में रहती है।

सीएम के हाथों से शिलान्यास होने के बाद भी चैक डैम का निर्माण अब तक शुरु नहीं हो पाया

है।

ये हैं सुझाव

गांवों के लिए शिल्पग्राम मुख्य मार्ग तक सीधे वैकल्पिक रास्ते का निर्माण किया जाए

जब तक वैकल्पिक मार्ग नहीं बन रहा है गांव में अस्थाई स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम किया जाए

गांव में सरकारी इंटर कॉलेज का निर्माण किया जाए। जिससे गांव के बच्चे आसानी से पढ़ पाए

यमुना किनारे के इस क्षेत्र को पर्यटन गांव के रूप में विकसित किया जाए। पर्यटन सुविधा बढ़ाई जाए

गांव में रबर चैक डैम का निर्माण कार्य शुरु किया जाए। जिससे ग्रामीणों की सुविधा में इजाफा हो सके

दशहरा घाट से गांव तक गोल्फ कार्ट का संचालन सवारी वाहन के रूप में किया जाना चाहिए

वर्जन

स्कूल वैन चालक गांव में अंदर तक आने के लिए तैयार नहीं होते। इस वजह से हम कई किलोमीटर दूर साइकिल चलाकर स्कूल जाते हैं। जब कभी साइकिल खराब होती है। तो पैदल, स्कूल जाना पड़ता है। गांव का पूरा रास्ता सुनसान रहता है। आने जाने में डर लगता है।

रक्षा - छात्रा

गांव आकर कोई रिश्तेदार शादी नहीं करना चाहता है। शादी रिश्ते की बात चलाने पर वह कहते हैं कि जंगल में शादी करके क्या करोगे। रास्ते की वजह से लोगों ने गांव में रिश्ते करना बंद कर दिया है। कई युवक-युवतियों को शादी करने के लिए रिश्ते नहीं मिल रहे।

इंद्रजीत - स्थानीय निवासी

गांव में केवल एक रास्ता है। दशहरा घाट पर बैरियर लगा रहता है। गांव के पते का आधार कार्ड होने पर ही बैरियर से अंदर एंट्री मिल पाती है। जिसके पास गांव का आधार कार्ड नहीं होता। उसे गांव में अंदर नहीं आने दिया जाता है। इससे काफी दिक्कत होती है। परेशानी बढ़ती जा रही है।

कुंज बिहारी - स्थानीय निवासी

ग्रामीण लंबे समय से वैकल्पिक रास्ता दिए जाने की मांग कर रहे हैं। हम लोग कई बार प्रदर्शन भी कर चुके हैं। अब तक हमारी मांग पर सुनवाई नहीं हो पाई है। रास्ता न होने की वजह से बच्चों का भविष्य दांव पर लग रहा है। हमारे के लिए मुख्य मार्ग तक रास्ते की व्यवस्था की जाए।

रामबाबू- स्थानीय निवासी

गांव में अचानक किसी की तबीयत खराब हो जाए तो उसे बाइक पर बैठाकर अस्पताल ले जाना पड़ता है। गांव में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। इमरजेंसी की स्थिति में एंबुलेंस भी आसानी से गांव तक नहीं पहुंच पाती। लोगों को इसका बड़ा खामियाजा उठाना पड़ रहा है।

ओमप्रकाश - स्थानीय निवासी

गांव में जिन बेटियों की शादी हुई है। उनकी बारात चढ़ने में बहुत दिक्कत हुई है। इस वजह से अब लोगों ने गांव में रिश्ते करने बंद कर दिए हैं। लोग अपने बेटे-बेटी की शादी हमारे गांव में नहीं करना चाहते हैं। इससे हमारे बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है।

कमला देवी- स्थानीय निवासी

दशहरा घाट से कोई भी चार पहिया वाहन अंदर नहीं आ पाता है। इस वजह से जिन रिश्तेदारों के पास कार है। उन्होंने घर आना छोड़ दिया है। हमारे रिश्तेदारों को कार लेकर गांव में अंदर आने की छूट दी जाए। क्योंकि शिल्पग्राम के पास का रास्ता बहुत दूर पड़ता है। वहां से कोई आना जाना नहीं चाहता।

पन्नालाल - स्थानीय निवासी

घर से बाजार जाने में बहुत दिक्कत होती है। कोई सवारी वाहन नहीं मिलता। बाजार जाने के लिए चार-पांच किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है। गर्मी में ये दिक्कत बहुत ज्यादा बढ़ जाती है। इस समस्या का समाधान किया जाना चाहिए।

खुशबू कुमारी - स्थानीय निवासी

मेरा यही कहना है कि दशहरा घाट पर लगा बैरियर हटना चाहिए। हमारे दोस्त रिश्तेदार गांव तक नहीं आ पाते हैं। इस वजह से काफी दिक्कत होती है। सरकार को हमारी ये परेशानी दूर करनी चाहिए। गांव के लोगों को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही है।

शक्ति - स्थानीय निवासी

गांव में एक भी इंटर कॉलेज नहीं है। बच्चों को पढ़ने के लिए काफी दूर तक पैदल ही जाना पड़ता है। इतनी दूर पैदल जाने की वजह से कई बच्चे स्कूल जाने में आनाकानी करते हैं। उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता। शासन प्रशासन को बच्चों के भविष्य की तरफ भी सोचना होगा।

माखन - स्थानीय निवासी

शिल्पग्राम की तरह जाने वाला रास्ता बहुत दूर पड़ता है। पूरे रास्ते में घने जंगल हैं। यहां कई बार लूटपाट भी हो चुकी है। इस वजह से ग्रामीण रात के वक्त गांव से बाहर नहीं निकल पाते हैं। इस मार्ग पर पुलिस चौकी बनाए जाने की जरूरत है।

रामश्री देवी - स्थानीय निवासी

रात के समय हम लोग गांव में कैद होकर रह जाते हैं। किसी रिश्तेदार के घर शादी समारोह या कोई कार्यक्रम होता है तो हमें दिन में उनके घर जाना पड़ता है। रात में गांव से बाहर आने जाने के लिए सुविधा किए जाने की आवश्यकता है।

मोतिया देवी - स्थानीय निवासी

जनप्रतिनिधियों ने कई बार आश्वासन दिया है। लेकिन आज तक हमारी परेशानी हल नहीं हो पाई है। मुश्किल रास्ता होने की वजह से जनप्रतिनिधि भी हमारे गांव नहीं आते हैं। इस वजह से गांव का विकास भी नहीं हो पा रहा है।

नारायणी देवी - स्थानीय निवासी

दशहरा घाट बैरियर से बड़े वाहनों के आवागमन पर प्रतिबंध होने की वजह से गांव का विकास रुका हुआ है। कई गलियां खराब पड़ी है। बारिश के मौसम में तो घर से बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है। रात के वक्त लोग बाजार नहीं जा पाते हैं।

सुधीर - स्थानीय निवासी

पूरे गांव में अब तक पाइप लाइन नहीं डल पाई है। लोगों को मजबूरी में समरसिबल लगवानी पड़ती है। एक समरसिबल लगाने में करीब 80 हजार का खर्चा आता है। गांव में पानी की पाइप लाइन डल जाए तो मुसीबत की मार झेल रहे लोगों को बड़ी राहत मिल जाएगी।

कृष्ण - स्थानीय निवासी

पहले गांव में कूड़ा कचरा उठाने के लिए नगर निगम की गाड़ी आती थी। इधर काफी समय से गाड़ी ने आना बंद कर दिया है। अब हम लोगों को घर से निकलने वाला कूड़ा कचरा खाली खेतों में फेंकना पड़ता है। कूड़ा निस्तारण का इंतजाम किया जाना चाहिए।

हिमांशु- स्थानीय निवासी

गांव के लोगों को खरीदारी करने के लिए काफी दूर जाना पड़ता है। ऑनलाइन डिलवरी की सुविधा भी नहीं मिल पाती है। ऑनलाइन सामान की डिलीवरी करने वाले कर्मचारियों को गांव तक आने की छूट मिलनी चाहिए।

सुमित - स्थानीय निवासी

गांव में रहना मुश्किल होता जा रहा है। प्रतिबंध की वजह से लगता है कि हम कैद में रह रहे हैं। या तो हमें रास्ता दिया जाए। या फिर दशहरा घाट बैरियर पर लगाए जाने वाले प्रतिबंध खत्म कर दिए जाए। सरकार हमारी परेशानी को दूर करे।

लवकुश- स्थानीय निवासी

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