बोले आगरा: दावे हजार, उखर्रा का रास्ता ही भूल गया विकास
Agra News - आगरा के उखर्रा गांव में लोग मूलभूत जरूरतों की कमी से परेशान हैं। प्राचीन पोखर दलदल में तब्दील हो चुकी है, सड़कें टूटी हुई हैं और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। ग्रामीणों का कहना है कि विकास के वादे किए...

आगरा। आगरा के उखर्रा में रहने वाली बड़ी आबादी मूलभूत जरूरतें पूरी न हो पाने से परेशान है। गांव की प्राचीन पोखर अधिकारियों की अनदेखी की वजह से दलदल में तब्दील हो चुकी है। कई स्थानों पर सड़कें टूटी पड़ी हैं। कुल मिलाकर गांव के हालात बहुत अच्छे नहीं हैं। ग्रामीण कहते हैं, विकास के बड़े वायदे किए गए। उसके बाद जिम्मेदार गांव का रास्ता भूल गए। लोग किस हाल में जीवन गुजार रहे है, किसी को फर्क नहीं पड़ता। आपके अखबार हिन्दुस्तान के बोले आगरा अभियान के तहत आयोजित संवाद कार्यक्रम में ग्रामीणों ने अपनी परेशानी साझा की। साथ ही आगाह किया, दिक्कतों को जल्दी दूर नहीं किया गया, गांव में जिम्मेदारों को आने नहीं दिया जाएगा। नगर निगम सीमा के वार्ड 57 में आने वाले उखर्रा में मिश्रित आबादी निवासी करती है। गांव के लोग पिछले चुनाव के बाद से बेहद परेशान हैं। वजह ये है कि इस क्षेत्र से जिन प्रत्याशियों की जीत हुई। कहा जा रहा है कि उन्हें इस गांव से कम वोट मिले थे। आरोप है कि इस कारण से जीते हुए जनप्रतिनिधियों ने गांव से किनारा कर लिया है। इससे क्षेत्र में विकास की रफ्तार थम गई है। बात सड़क की हो या फिर पानी की। ग्रामीणों को परेशानी झेलनी पड़ रही है। गांव में जगह-जगह रास्ते खराब हैं। पेयजल के लिए सप्लाई का इंतजाम नहीं है। मजबूरी में लोगों को पानी की जरूरत पूरी करने के लिए निजी समर्सिबिल लगवानी पड़ रही है। गांव की प्राचीन पोखर का सालों से सौंदर्यीकरण नहीं हो पाया है। गांव में जगह-जगह गंदगी के ढेर लगे रहते हैं। स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है। शिक्षा के लिहाज से भी गांव के बच्चों के लिए बेहतर इंतजाम नहीं हैं। लड़के- लड़कियों को पढ़ने के लिए गांव से बाहर जाना पड़ता है। गांव से लगी पार्क माइनर नहर भी ग्रामीणों के लिए परेशानी बन गई है। गांव की तरफ आने वाली सड़क अतिक्रमणों की वजह से बेहद संकरी हो गई है।
आगरा की जिस पार्क माइनर से शाहजहां गार्डन की सिंचाई होती थी। आज वही पार्क माइनर देखरेख के अभाव में नाले में तब्दील हो चुकी है। इस मुगल कालीन नहर का अस्तित्व धीरे धीरे खत्म हो रहा है। अब इस नहर को बच्चे नाले के रूप में जानते हैं। नहर की वजह से जनजीवन अस्त व्यस्त है। बच्चे, बूढ़े हों या फिर जवान। जरा सी चूक होने पर नहर के गंदे पानी में गिर जाते हैं। उखर्रा रोड पर रहने वाली हजारों की आबादी हालातों से परेशान है। फिर भी इस समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। नहर की वजह से आए दिन हादसे होते हैं। लोगों को कहना है कि नहर को सही तरह से विकसित कर दिया जाए, तो इलाके की सूरत ही बदल जाएगी। भूगर्भ जलस्तर में तो इजाफा होगा ही। गंदगी की समस्या से भी हमेशा के लिए निजात मिल जाएगा। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि गांव में कुछ साल पहले तक तीन तालाब हुआ करते थे। अब दो स्थानों पर मकान बन चुके हैं। एक पोखर बची हुई है। उसकी हालत भी खराब है। पोखर के आसपास रहने वाले परिवार गंदगी की वजह से दिन-रात उठने वाली दुर्गंध से बेहद परेशान हैं।
डलावघर में तब्दील हुई प्राचीन पोखर
स्थानीय लोगों ने बताया कि गांव में तीन पोखर हुआ करती थी। तब गांव का जलस्तर काफी ऊपर था। धीरे-धीरे कर दो पोखरों पर लोगों ने कब्जा कर लिया। पोखर को पाटकर उसपर मकान खड़ा कर लिया। अब केवल एक पोखर का अस्तित्व ही शेष बेचा है। ये पोखर भी देखरेख के अभाव में डलावघर में तब्दील हो गई है। ग्रामीणों ने बताया कि वह कई बार जनप्रतिनिधियों को पोखर के सौंदर्यीकरण के लिए प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। इसके बाद भी कहीं सुनवाई नहीं हो रही। अब पूरे इलाके का गंदा पानी पोखर में जमा होता है। पोखर के आसपास हमेशा दुर्गंध रहती है। पोखर के पास जाने पर सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। जलभराव की वजह से पोखर में मच्छर पनपते हैं। छोटे बच्चे और बुजुर्ग मच्छर जनित बीमारियों का शिकार रहते हैं।
जनप्रतिनिधियों की अनदेखी
बड़े उखर्रा गांव में रहने वाले लोग, जनप्रतिनिधियों की अनदेखी से दुखी नजर आए। उन्होंने बताया कि निगम और विधानसभा के चुनाव में उनके गांव से जीते हुए प्रतिनिधियों को कम वोट मिले थे। अब उन्हें इस बात का खामियाजा उठाना पड़ रहा है। गांव से वोट न मिल पाने से जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि उनके गांव में नहीं आते हैं। गांव के लिए विकास कार्यों के प्रस्ताव भी पास नहीं कराए जाते हैं। पूरे गांव में अब तक सीवर लाइन नहीं डाली गई है। इस वजह से मलमूत्र गांव के पोखर में पहुंच रहा है। दिक्कतें बढ़ती जा रही हैं। समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा। ग्रामीण अनुरोध करते हैं, पुरानी बातों को भूल कर गांव का विकास कराया जाए ताकि लोगों की मुश्किल दूर हो सकें।
पार्क माइनर बनी परेशानी
ग्रामीणों के मुताबिक मुगलकाल में शाहजहां गार्डन और ताजमहल के आसपास लगे पेड़ पौधों की सिंचाई पार्क माइनर से की जाती थी। रोहता नहर ने निकली पार्क माइनर का पानी शाहजहां गार्डन के तालाबों में पहुंचता था। फिर तालाबों के पानी से गार्डन में लगे पेड़ पौधों की सिंचाई होती थी। इधर, नहर किनारे तेजी से आबादी बढ़ी। अधिकारियों ने नहर की देखरेख में लापरवाही बरती। नतीजा ये निकला कि लोगों ने घरों से निकलने वाले गंदे पानी का स्त्रोत नहर में मिला दिया। कुछ समय में ही नहर नाले की तरह दिखाई देने लगी। नहर का पानी जब सिंचाई योग्य नहीं रहा तो इसे रोक दिया गया। अब नहर में आने वाले पानी की निकासी के लिए कोई स्थान नहीं है। नहर में हर समय गंदगी रहती है। घनी आबादी में स्थित खुली नहर हादसे का सबब बनती है।
संकरे मार्ग पर रहता है जाम
शमसाबाद मार्ग को जोड़ने वाले उखर्रा मार्ग का रास्ता ग्वालियर रोड तक पहुंचता है। पार्क माइनर के दोनों तरफ बने मार्ग से कई रिहायशी कॉलोनियों का रास्ता है। इस मार्ग से हर दिन छोटे बड़े हजारों वाहन गुजरते हैं। जैसे ही मार्ग पर वाहनों का दबाव बढ़ता है। रास्ता जाम हो जाता है। पर्याप्त स्थान न होने के कारण वाहनों का आवागमन थम जाता है। जाम की वजह से बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती है। एंबूलेंस भी समय पर नहीं पहुंच पाती। खुली पड़ी नहर की वजह से रास्ता संकरा हो गया है। रही सही कसर अतिक्रमण करने वालों ने पूरी कर दी है। जाम की वजह से मार्ग पर रहने वाले हजारों लोग परेशान हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जाम की समस्या का समाधान होना चाहिए। दुरुस्त ट्रैफिक प्लान बनना चाहिए।
गंदगी और टूटी हैं सड़कें
बड़े उखर्रा गांव की तरफ जाने वाली मुख्य सड़क टूटी पड़ी है। सड़क पर मिट्टी का गुबार रहता है। जैसे ही तेज हवा चलती है। या फिर कोई वाहन निकलता है। पूरी सड़क धूल से भर जाती है। इन हालातों से सड़क किनारे रहने वाले परिवार बेहद परेशान हैं। लोग धूल की वजह से हर समय घर के दरवाजे बंद रखते हैं। सवाल पूछते हैं कि ये सड़क कब पक्की होगी। उनकी दिक्कत कब खत्म होगी। लगातार उड़ रही धूल की वजह से लोगों का सांस लेना मुश्किल हो गया है। बच्चे भी खेलने के लिए घर से बाहर नहीं निकल पाते। इसके साथ ही गांव से हर दिन निकलने वाले कूड़े के निस्तारण के लिए भी कोई इंतजाम नहीं है। लोगों का आरोप है कि गांव में कभी सफाई कर्मचारी नहीं आते। मजबूरी में पूरे गांव का कूड़ा पोखर में फेंका जाता है।
ये हैं समस्याएं
पार्क माइनर में हर समय गंदगी रहती है।
प्राचीन पोखर डलावघर में बदल चुकी है।
गांव में कई स्थानों पर सड़कें कच्ची हैं।
गांव का चौपाल भवन पूरी तरह जर्जर है।
अतिक्रमणों से सड़क संकरी हो गई है।
ये है समाधान
पार्क माइनर को कवर करने से दिक्कत खत्म हो जाएगी।
गांव की प्राचीन पोखर का सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए
गांव में पक्की सड़कों का निर्माण होने से राहत मिलेगी
गांव के चौपाल भवन की मरम्मत किए जाने की जरूरत है
सड़क पर हुए अतिक्रमण को अभियान चलाकर हटाया जाए
वर्जन -
गांव की प्राचीन पोखर अनदेखी की वजह से दलदल में तब्दील हो चुकी है। कई बार जनप्रतिनिधियों को पोखर के सौंदर्यीकरण के लिए प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। इसके बाद भी किसी ने सुनवाई नहीं की।
जगवीर इंदौलिया-पूर्व पार्षद
अब पूरे इलाके का गंदा पानी पोखर में जमा होता है। पोखर की वजह से आसपास के क्षेत्र में हमेशा दुर्गंध उठती है। सांस लेना भी मुश्किल हो गया है। जलभराव की वजह से पोखर में मच्छर पनपते हैं। बच्चे बीमार हो जाते हैं।
जितेंद्र- स्थानीय निवासी
बड़े उखर्रा गांव की तरफ जाने वाली मुख्य सड़क टूटी पड़ी है। सड़क पर मिट्टी का गुबार रहता है। जैसे ही तेज हवा चलती है। या फिर कोई वाहन निकलता है। पूरी सड़क धूल से भर जाती है। इससे काफी दिक्कत होती है।
मोनू-स्थानीय निवासी
पार्क माइनर पर लोगों ने कई स्थानों पर अवैध तरीके से पुलिया बना ली है। इस वजह से पार्क माइनर की सफाई नहीं हो पाती है। नहर से हर समय दुर्गंध उठती है। हर दिन ही हादसे होते हैं। लोग कई बार नहर में गिरकर घायल हो चुके हैं।
शशिकांत उपाध्याय- स्थानीय निवासी
गांव से हर दिन निकलने वाले कूड़े के निस्तारण के लिए भी कोई इंतजाम नहीं है। लोगों का आरोप है कि गांव में कभी सफाई कर्मचारी नहीं आते। मजबूरी में पूरे गांव का कूड़ा पोखर में फेंका जाता है। इससे बहुत परेशानी होती है।
बिजेंद्र - स्थानीय निवासी
पार्क माइनर के दोनों तरफ बने मार्ग से कई रिहायशी कॉलोनियों का रास्ता है। इस मार्ग से हर दिन छोटे बड़े हजारों वाहन गुजरते हैं। जैसे ही मार्ग पर वाहनों का दबाव बढ़ता है। रास्ता जाम हो जाता है। काफी दिक्कत होती है।
ज्ञानेंद्र - स्थानीय निवासी
निगम और विधानसभा के चुनाव में उनके गांव से जीते हुए प्रतिनिधियों को कम वोट मिले थे। गांव से वोट न मिल पाने से जनप्रतिनिधियों में नाराजगी है। चुनाव जीतने के बाद जनप्रतिनिधि उनके गांव में नहीं आते हैं।
बॉबी- स्थानीय निवासी
जाम की वजह से बच्चों को स्कूल जाने में दिक्कत होती है। एंबूलेंस भी समय पर नहीं पहुंच पाती। खुली पड़ी नहर की वजह से रास्ता संकरा हो गया है। जाम की वजह से मार्ग पर रहने वाले हजारों परिवार परेशान हैं।
लक्ष्मीनारायण - स्थानीय निवासी
मुगलकाल में शाहजहां गार्डन और ताजमहल के आसपास लगे पेड़ पौधों की सिंचाई पार्क माइनर से की जाती थी। अगर ये नहर पुराने स्वरूप में आ जाए तो पूरे क्षेत्र की सूरत बदल जाएगी। बड़ी राहत हो जाएगी।
बलवीर शर्मा - स्थानीय निवासी
मेरी दुकान नहर के किनारे पर है। लोगों ने नहर को डलाब घर बना दिया है। हर समय नहर से दुर्गंध उठती है। कई बार बाइक सवार लोग नहर में गिर चुके हैं। मेरी मांग है कि या तो नहर को पाट दिया जाए। या फिर सौंदर्यीकरण किया जाए
सतीश चंद्र शर्मा - स्थानीय निवासी
गांव का चौपाल भवन जर्जर हो चुका है। दरवाजा न होने की वजह से यहां दिन-रात शराबियों और जुआरियों का जमावड़ा रहता है। जर्जर भवन से हादसे का खतरा रहता है। महिलाओं को भी काफी दिक्कत झेलनी पड़ती है।
गोपाल - स्थानीय निवासी
गांव में साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं रहता। कभी सफाई कर्मचारी गांव में नहीं आते। कूड़ा उठाने वाली गाड़ी भी गांव में नहीं पहुंचती है। मेरी यही मांग है कि गांव में साफ-सफाई के बेहतर इंतजाम किए जाने चाहिए।
शिवानी - स्थानीय निवासी
गांव में सड़क किनारे फुटपाथ का निर्माण नहीं गया है। जबकि वर्क ऑर्डर में फुटपाथ का निर्माण किया जाना भी प्रस्तावित था। फुटपाथ न बनने की वजह से सड़क संकरी हो गई है। आने जाने में काफी दिक्कत होती है।
मोहन देवी- स्थानीय निवासी
गांव की पोखर में डूबकर तीन लोगों की मौत हो चुकी है। पोखर चारों तरफ से खुली हुई है। गंदगी की वजह से पोखर में दलदल बन गई है। बच्चों पर हमेशा खतरा रहता है। पोखर का सौंदर्यीकरण किया जाना चाहिए।
हरि देवी - स्थानीय निवासी
पोखर में गंदगी की वजह से पूरे गांव में मच्छरों का आतंक है। रात में सोना भी मुश्किल हो जाता है। मच्छरों के काटने की वजह से गांव में कोई न कोई बच्चा हर दिन ही बीमार रहता है। इसका समाधान होना चाहिए।
लक्ष्मी देवी - स्थानीय निवासी
गांव में रात के वक्त अंधेरा रहता है। कई स्थानों पर स्ट्रीट लाइटें लगाए जाने की जरूरत है। अंधेरे की वजह से रात में घर से निकलने में डर लगता है। स्ट्रीट लाइटें लग जाए तो गांव की महिलाओं युवतियों को राहत हो जाएगी।
नैना देवी - स्थानीय निवासी
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