बोले आगरा: जिनके बूते दुनिया में नाम, उनके सामने दिक्कतें तमाम
Agra News - आगरा के जूता कारीगर कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। वे ठेकेदारी प्रथा का शिकार हैं और पूरी मजदूरी नहीं मिलती। आर्थिक सुरक्षा की कमी और दुर्घटनाओं का डर उन्हें परेशान करता है। सरकार की योजनाएं कागजों...
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मिढ़ाकुर (आगरा)। जिले के कस्बों से बड़ी संख्या में जूता कारीगर आगरा शहर और उसके आस-पास स्थित फैक्ट्रियों में कार्य करने पहुंचते हैं। ये जूता कारीगर कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। ये जूता कारीगर ठेकेदारी प्रथा का शिकार हैं। उनको पूरा मेहनताना नहीं दिया जाता है। कोई आर्थिक सुरक्षा नहीं है। आने-जाने में हादसे का डर हमेशा सताता रहता है। आगरा का जूता पूरे विश्व में प्रसिद्ध है लेकिन उसको बनाने वाले कारीगरों की कोई सुध लेने वाला नहीं है। ताजमहल के बाद दुनिया भर में आगरा का नाम जूता व्यवसाय के लिए ही लिया जाता है। लेकिन इनके कारीगर समस्याओं से जूझ रहे हैं। मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। इस वर्ग पर ध्यान देने वाला कोई नहीं है। तमाम दावों और प्रयासों के बीच जूता कारीगर दिक्कतों का सामना कर रहे हैं।
बड़ी संख्या में गांव-कस्बों से जूता कारीगर फैक्ट्रियों में पहुंचते हैं। उनको आने-जाने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। रास्ते में बारिश, सर्दी और गर्मी इनको झेलनी पड़ती है। फैक्ट्री संचालकों द्वारा उनकी सुविधाओं का कोई ख्याल नहीं रखा जाता है। रविवार को कस्बा मिढ़ाकुर में जब जूता कारीगरों से संवाद किया गया तो उनका दर्द सामने आया। शोषण की बात सामने आयी। कारीगरों ने बताया कि जूता फैक्ट्री संचालक सीधे उनको नौकरी नहीं देते हैं। वहां ठेकेदारी प्रथा लागू है। ठेकेदार के माध्यम से ही उन्हें काम मिलता है । ठेकेदार जी तोड़ मेहनत कराने के बाद भी उनका मजदूरी का पूरा पैसा नहीं देता है। इस कारण उन्हें घर चलाने में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कारीगर ठेकेदारों के शोषण का सामना कर रहे हैं। संवाद में जूता कारीगरों ने शिकायत दर शिकायत की। बताया कि कंपनियां फंड और बोनस के नाम पर कुछ भी नहीं देती है। फैक्ट्रियों में मजदूरों को लाने ले जाने की कोई सुविधा नहीं मिलती है। सिर्फयहीं नहीं। कारीगरों के बीमार पड़ने या कोई दुर्घटना हो जाने पर कोई भी आर्थिक मदद नहीं मिलती है। कारीगरों की किसी दुर्घटना में अगर मौत होती है कोई आर्थिक मदद फैक्ट्री संचालकों द्वारा नहीं दी जाती है। कारीगरों के बच्चों की शिक्षा तथा रहन-सहन पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।
इधर जीएसटी, एचएसएन और बीआईएस लड़ाई का भी सबसे ज्यादा असर छोटे जूता कारीगरों पर पड़ रहा है। सरकार और जूता व्यापारियों के बीच कई मुद्दों पर चल रही वार्ता का खामियाजा भी कारीगरों को उठाना पड़ रहा है। जूता बनाने वाले सालों पुराने महारथी कारीगर भी अब टूट चुके हैं। सरकार की ओर से छोटे कारीगरों के लिए चलाई जा रहीं योजनाएं सुनाई तो देती हैं, पर कहीं भी दिखाई नहीं देतीं। यह समस्या भी जूता कारीगरों के जीवन की बड़ी समस्या बनता जा रहा है। जूता कारीगर दूसरा काम तलाश रहे हैं। हाथों से जूता बनाने वाले तमाम कारीगर काम छोड़ चुके हैं। इसलिए राह आसान करने के लिए जीएसटी, एचएसएन और बीआईएस की मांगें जल्द मांगी जाएं। इससे हाथों से जूता बनाने वाले शहर के लाखों हुनरमंद कारीगरों की जिंदगी में नई सुबह का आगाज होगा। इधर साल 2020 और 2021 के कोरोना काल की मार भी जूता कारीगरों पर पड़ी है। तब जूता उत्पादन ठप हो गया। फैक्ट्रियां बंद हो गयी। इसके चलते बड़ी संख्या में जूता कारीगरों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा।
इनकी पीड़ा
वर्षों से जूता का कार्य कर रहे हैं। महंगाई के साथ वेतन के भुगतान में कोई खासी वृद्धि नहीं होती है। ऐसे में घर खर्च चलाना तक मुश्किल होता है।
पंकज, जूता कारीगर
मैं अपने बच्चों को पढ़ा लिखा रहा हूं । इस काम में कोई भविष्य नहीं है। मैं अपने बच्चों को इस काम से दूर रखुंगा। दूसरे कार्य करने को प्रेरित करता हूं। अजय, जूता कारीगर
पहले घरों में छोटी-छोटी इकाइयों में जूता बनाने का कार्य किया जाता था। मगर पिछले कुछ वर्षों में सभी बंद हो गई है। लोगों के सामने रोजी रोटी का संकट है।
कुमर सिंह
मैं पढ़ लिखकर अच्छी नौकरी पाना चाहता था। मजबूरी में जूता कारीगर बना। वेतन ठीक न होने की वजह से मेरे सामने कई प्रकार की चुनौतियां हैं। हरिकेश, जूता कारीगर
अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा कर बड़ा आदमी बनाना चाहता था। मजबूरी में जूता कारीगर बनाना पड़ा। क्या करूं इस काम के अलावा दूसरा कोई काम भी तो नहीं आता।
अतर सिंह
जूता का कारोबार धीरे धीरे सिमट रहा है। कारीगरों को समय के अनुसार वेतन भी नहीं मिल रहा है। कारीगर जूता बनाने का कार्य छोड़ रहे हैं।
नरेंद्र, जूता कारीगर
कंपनियों में आधुनिक मशीनें लग रही है। हाथ से जूता बनाने का कार्य सिमटता जा रहा है। ऐसे में कुशल कारीगरों के सामने भी तमाम दिक्कतें हैं।
ओमवीर , जूता कारीगर
जूता बनाने वाली फैक्ट्रियों में जूता कारीगरों को सस्ती मजदूरी मिलती है। कई बार फैक्ट्रियों में काम न होने की वजह से जूता कारीगर बेरोजगार हो जाता है। निहाल सिंह जूता कारीगर
जूता कारीगरों के लिए सरकार को कोई महत्वपूर्ण स्कीम चलानी चाहिए । जिससे उन्हें कौशल विकास के साथ वेतन आदि के लिए जूझना न पड़े।
चन्द्रभान, जूता कारीगर
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