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बोले आगराः बेजुबानों को बचाने की सोचिए

Agra News - ताज नगरी आगरा में, कई युवा और संस्थाएं निराश्रित श्वानों के अधिकारों के लिए संघर्ष कर रही हैं। ये डॉग लवर्स भूख, स्वास्थ्य और सुरक्षा के मुद्दों के प्रति जागरूकता फैला रहे हैं। पीएफए और कैस्पर्स होम...

Newswrap हिन्दुस्तान, आगराSun, 9 March 2025 10:02 PM
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बोले आगराः बेजुबानों को बचाने की सोचिए

आगरा। ताज नगरी के हजारों स्ट्रीट डॉग्स को जीने का हक दिलाने में सक्रिय हैं ताजनगरी के ये मतवाले। उनकी जुबान बनने का प्रयास करने वाले स्ट्रीट डॉग लवर्स उनकी अनकही वेदनाओं को बखूबी समझते हैं। जिंदगी की जंग में आवश्यकता पड़ने पर समाज से लड़ने से भी गुरेज नहीं करते। उनको हक से खाना दिलाने में मदद करते हैं। कैस्पर्स होम, कालिका गोशाला, पीएफए आदि संस्थाओं के अलावा व्यक्तिगत रूप से युवाओं का बड़ा वर्ग इन बेजुबानों की ताकत बनके सामने आया है। इनके लिए बनाए गए कानून की जानकारी लोगों को दे रहा है। ताज नगरी के निराश्रित श्वानों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का मुद्दा धीरे-धीरे आंदोलन का रूप ले रहा है। अनेकों डॉग लवर्स निराश्रित श्वानों की हिफाजत के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं। श्वानों के लिए इस्तेमाल होने वाले आवारा कुत्ता जैसे शब्द अब आम नहीं रहे। डॉग लवर्स के लिए निराश्रित श्वान सिर्फ जानवर नहीं हैं। यह तमाम लोगों को सुरक्षा गार्ड भी हैं।

डॉग लवर्स कहते हैं कि शहर की कालोनियों, मोहल्लों, अपार्टमेंटों, बस्तियों में रहने वाले लाखों लोग मुफ्त के इन हजारों बेजुबान प्रहरियों के दम पर चैन की नींद सो रहे हैं। इसलिए सड़क पर रहकर लाखों लोगों की सुरक्षा करने वाले इन बेजुबानों को हरेक व्यक्ति समाज की सुरक्षा के लिए अहम माने। आवारा कुत्तों के लिए भी खाने-पीने और स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के लिए डॉग लवर्स समय-समय पर मुहिम चलाते हैं। आर्थिक अभाव में मुहिम कुछ समय के बाद दम तोड़ देती है।

डॉग लवर्स कहते हैं कि हरेक श्वान सम्मान का अधिकार है। सरकार की ओर से चलाए जाने वाले नसबंदी कार्यक्रम के बाद भी इनकी संख्या का लगातार बढ़ते जाना चिंता का कारण है। डॉग लवर्स कहते हैं कि भूख इनकी बड़ी समस्या है। इसका समाधान उतना ही छोटा है। हर घर से अगर एक-एक रोटी भी इनके नाम की निकाली जाए, तो इसका समाधान एकदम हो जाएगा। इससे सरकार पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा।

वे कहते हैं, निराश्रित श्वानों का नसबंदी कार्यक्रम ज्यादा प्रभावी तरीके से चलाया जाए। आम लोगों के लिए इनसे जुड़े बनाए गए नियम कानूनों की जानकारी नगर निगम को देनी चाहिए। साथ ही सरकार की ठोस नीति और सामाजिक संगठनों की नैतिक जिम्मेदारी के मिलान से काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकता है। डॉग लवर्स कहते हैं कि दुर्घटना में घायल, बीमार आदि निराश्रित श्वानों के लिए शहर के चारों कोनों में डॉग हेल्थ सेंटर खुलना चाहिए। डॉग लवर्स का अपना कोई संगठन नहीं है। इसलिए अपने स्तर से निराश्रित श्वानों के स्वास्थ्य, सुरक्षा और सम्मान की लड़ाई लड़ते रहते हैं। इस प्रेम को लेकर कई बार कालोनियों और मोहल्लों में झगड़े हो जाते हैं। थाने तक चक्कर लगाते हैं। स्ट्रीट डॉग लवर रोहित शर्मा का कहना है कि हिफाजत करने वाले इन निराश्रित श्वानों को शहर के हरेक व्यक्ति के प्यार का इंतजार है। हर नागरिक को इनकी सुरक्षा की गारंटी लेनी चाहिए। डॉग लवर किसले वशिष्ठ कहते हैं कि इनके लिए बने नियमों की जानकारी लोगों तक जरूर पहुंचनी चाहिए। ज्यादातर लोगों को नियमों की जानकारी नहीं है। इसे लेकर कानूनी सख्ती भी जरूरी है।

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आर्थिक तंगी से जूझ रहा श्वानों का सेंटर

निराश्रित जानवरों की देखभाल करने वाली दयालबाग स्थित शहर की सबसे बड़ी संस्था पीपुल्स फॉर एनीमल (पीएफए) भी आर्थिक परेशानियों से जूझ रहा है। सन 1998 से वजूद में आया पीएफए 27 सालों के सफर में हजारों निराश्रित श्वानों का इलाज कर चुका है। स्थितियां अब बदल रही हैं। कार्यकारी अध्यक्ष रिचा गुप्ता बताती हैं कि हर महीने लगभग 130 निराश्रित श्वान उपचार के लिए आते हैं। इनके लिए दवा, इलाज आदि की व्यवस्था काफी मुश्किल से हो पाती है। इस समय 250 से ज्यादा निराश्रित श्वान पीएफए में रह रहे हैं। इनका रोज का खानपान का खर्चा पांच हजार रुपये का है। लगभग डेढ़ लाख रुपये श्वानों के भोजन में हर महीने खर्च होते हैं। रिचा कहती हैं कि संस्था के पास पर्याप्त संसाधनों की कमी है। एक्सरे मशीन, अल्ट्रासाउंड मशीन, खून टेस्ट करने की मशीन आदि होना बेहद जरूरी है। इसके लिए अलग से स्टाफ की जरूरत पड़ेगी। आर्थिक स्थिति पर आकर सब कुछ रुक रहा है। आर्थिक मदद का बढ़ना जरूरी है। रिचा कहती हैं कि निराश्रित श्वानों को यहां इलाज कराने के लिए लोग आते हैं। एक्सीडेंट में घायल श्वानों को लाने के लिए सेंटर से टीम भी जाती है।

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हवा में उड़ जाते हैं एडब्ल्यूबीआई के निर्देश

निराश्रित श्वानों के लिए पच्चीस सालों से काम कर रही कैस्पर्स होम की निदेशक विनीता अरोड़ा निराश्रित श्वानों के अधिकारों की लड़ाई लड़ रही हैं। सन 2015 में विनीता ने स्ट्रीट डॉग्स के लिए कैस्पर्स होम की शुरुआत की थी। विनीता कहती हैं कि निराश्रित श्वानों की देखभाल में हर महीने काफी बड़ा खर्चा आता है। उनके पालतू श्वान की याद में कैस्पर्स होम की शुरुआत की गई थी। विनीता डॉग लवर्स से देसी नस्ल के श्वानों को गोद लेने का आह्वान करती हैं। इसके लिए कई बार जागरूकता कार्यक्रम भी चलाए हैं। विनीता अवैध प्रजनन सेंटर्स के खिलाफ कई बार मोर्चा खोल चुकी हैं। साथ ही स्ट्रीट डॉग्स को लेकर तमाम बार विवाद हो चुका है। विनीता कहती हैं कि एनीमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया (एडब्ल्यूबीआई) के दिशा निर्देशों का सख्ती से पालन होना चाहिए। एनीमल बर्थ कंट्रोल के तहत बांझीकरण और टीकाकरण की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है। साथ ही जिस श्वान की सर्जरी हुई, बोर्ड के नियमों के तहत उसे फिर से उसके इलाके में छोड़ना चाहिए। हरेक कुत्ते को रेबीज का टीका लगना जरूरी है। ऐसा होता नहीं है। शहर के लगभग सभी स्ट्रीट डॉग्स बिना इंजेक्शन के घूम रहे हैं। विनीता कहती हैं कि श्वानों को उनकी मूल जगह से हटाना गैर कानूनी है। बीमार और आक्रामक श्वानों की उचित चिकित्सा देखरेश में रखा जा सकता है। उनका कहना है कि स्ट्रीट डॉग्स के साथ अमानवीय और क्रूरता का व्यवहार दंडनीय अपराध है। इन्हें चोट पहुंचाने, मारने पर भारतीय पशु क्रूरता निवारण अधिनियम 1960 के तहत दंडनीय अपराध है।

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पशु निवारण क्रूरता अधिनियम

का सख्ती से हो पालन

ताज नगरी के डॉग लवर्स की अपनी मूलभूत जरूरतें हैं। इनके उद्धार के लिए मजबूत संगठन की जरूरत है। 10 साल से घायल श्वानों को पीएफए पहुंचा रहे स्ट्रीट डॉग लवर सुनीत चौहान का कहना है कि पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 का सख्ती से पालन होना चाहिए। नगर निगम के सहयोग से निराश्रित श्वानों को गोद लेने की विस्तृत कार्य योजना तैयार करने की जरूरत है। डॉग एडॉप्शन ड्राइव्स स्कीम चलनी चाहिए। नगर निगम द्वारा एनीमल बर्थ कंट्रोल के काम की रफ्तार को बढ़ाना चाहिए। इसके लिए नसबंदी जैसे कार्यक्रम सुचारू तरीके से चलाने की जरूरत है। घायल श्वानों के लिए स्ट्रीट डॉग एंबुलेंस उपलब्ध होनी चाहिए। चौहान का मानना है कि स्कूलों और कालेजों में पशुओं के कल्याण के लिए कार्यशालाएं आयोजित होने चाहिए। निराश्रित श्वानों का पंजीकरण की जरूरत भी है। इन्हें लेकर सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाया जा सकता है। इससे काफी हद तक निराश्रित श्वानों का जीवन अच्छा हो सकेगा।

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निराश्रित श्वानों के लिए कायदे-कानून

. क्रूरता शिकायत पुलिस, नगर निगम और पशु कल्याण संगठन से करें।

. आईपीसी की धारा में श्वान को नुकसान पहुंचाने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

. नसबंदी और टीकाकरण के बाद श्वानों को उन्हीं के क्षेत्र में छोड़ा जाए।

. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्राकृतिक आवास से नहीं हटा सकते।

. न्यायपालिका कह चुकी है कि श्वानों को खाना खिलाना अपराध नहीं है।

. नसबंदी और टीकाकरण के बाद मूल स्थान पर छोड़ना जरूरी है।

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निराश्रित श्वानों की समस्या और समाधान:

. निराश्रित श्वानों की जनसंख्या बढ़ती जा रही है।

. नसबंदी कार्यक्रम ज्यादा से ज्यादा चलाए जाएं।

. कई श्वान भोजन नहीं मिलने से बीमारियों के शिकार हो जाते हैं।

. हरेक घर से एक रोटी निकालकर इनकी भूख मिटाई जा सकती है।

. सड़कों पर रहने वाले श्वान कई बार दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।

. इनके उपचार के लिए शहर में आधा दर्जन क्लीनिक बनवाए जा सकते हैं।

. सड़कों पर पूरे दिन हजारों निराश्रित श्वानों को घूमना पड़ता है।

. एनजीओ व नगर निगम मिलकर सड़क कोने में कच्चे आश्रय बनाए जा सकते हैं।

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. निराश्रित श्वानों की बड़ी समस्या भोजन और स्वास्थ्य है। शहर में डॉग लवर्स इनका काफी ख्याल रखते हैं। इसके बाद भी हरेक व्यक्ति को इनके प्रति संवेदनशील होने की जरूरत है। इन्हें प्यार चाहिए। इसके बाद आपके साथ आधी रात में भी जरूरत पर ये आपके साथी बनकर खड़े दिखेंगे।

डॉ. नवीन गुप्ता

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. निराश्रित श्वानों के लिए सड़क के कोने में छोटे-छोटे कच्चे आश्रय घर बनने चाहिए। इससे बारिश, लू और बेहताशा ठंड के मौसम में इन्हें सहारा मिलेगा। इन सभी के लिए रोजाना भोजन की व्यवस्था होना काफी जरूरी है। लोगों को इन्हें प्यार करना चाहिए। इन्हें मारना नहीं चाहिए।

नंदी रावत

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. सरकारी और गैर सरकारी संगठनों को इनके लिए मिलकर आगे आना होगा। आर्थिक पक्ष की जिम्मेदारी नगर निगम अगर लेता है, तो ऐसे तमाम डॉग लवर्स हैं जो समूह बनाकर इनकी निस्वार्थ सेवा कर सकेंगे। इस कोई भी श्वान सेवी कोई चार्ज भी नहीं लेगा। यह मुहिम रंग लाएगी।

संतोष गुप्ता

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. निराश्रित श्वानों की तीन मूलभूत जरूरतें हैं। भोजन, इलाज और आश्रय। शहर में तीनों की स्थिति काफी खराब है। यह हम सभी की नैतिक जिम्मेदारी है कि इनके लिए कुछ करें। मैं अपने घर में 15 सालों से 4 स्ट्रीट डॉग्स पाल रही हूं। ये सभी मेरे घर के सदस्य की तरह हैं। इनकी चोट मेरे दिल पर वार करती है।

ब्रजबाला वशिष्ठ

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. श्वानों की देखभाल के लिए पूरे शहर में युवाओं की समर्पित टीम की जरूरत है। इसके लिए टीम को आठ से दस सेक्टरों में बांटना चाहिए। एक ऐसा व्हाट्स एप ग्रुप बनाया जाए जिसपर शहर में घायल हुए श्वान की सूचना टीमों के सदस्यों को तत्काल मिल सके। इससे घायल श्वान को समय से इलाज मिलेगा।

धर्मवीर सिंह

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. श्वानों के ‌अवैध प्रजनन केंद्रों पर कार्रवाई लगातार होनी चाहिए। इससे काफी हद तक पशुओं के साथ होने वाली क्रूरता पर अंकुश लग सकेगा। साथ ही अगर किसी को अवैध सेंटर चलने की जानकारी मिलती है तो उसका नैतिक दायित्व बनता है कि उसे रोकने की कोशिश करे।

मोहित वर्मा

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. पीपुल्स फॉर एनीमल निराश्रित श्वानों का सालों से इलाज कर रहा है। यहां की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। अपने दम पर सेंटर के लोग पशुओं का इलाज कर रहे हैं। इससे समस्या का स्थायी समाधान नहीं हो सकता है। इसके लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा।

राकेश

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. निराश्रित श्वानों के लिए केयर सेंटर खुलने काफी जरूरी हैं। यहां महीने में एक बार इन्हें लाकर इनके स्वास्थ्य की जांच होनी चाहिए। इन सेंटर्स पर प्राथमिक उपचार किट भी लगनी चाहिए। अगर श्वान यहां रहना चाहें तो उनके लिए खानपान की व्यवस्था होनी चाहिए।

आकांक्षा गुप्ता

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. निराश्रित श्वानों को प्यार की जरूरत है। यह पूरे शहर के लिए रात के बेजुबान प्रहरी हैं। इनकी हिफाजत हमारी जिम्मेदारी है। बाहरी लोगों और असामाजिक तत्वों से हमें बचाते हैं। इसलिए हम सभी को इनका सम्मान करना चाहिए। इनकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी भी है।

राजीव सोई

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. जब कोई निराश्रित श्वानों को मारता है तो दिल काफी दुखी होता है। इनमें भी जान है। सांसे हैं। इन्हें एक बार कोई प्यार करके देखे। जिंदगी भर के लिए यह उसके हो जाते हैं। इन्हें मालूम होता है कि जो इन्हें खिला रहा है, उसके प्रति वफादार रहना है।

मनीषा

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. एक्सीडेंट में घायल हुए निराश्रित श्वानों में से ज्यादातर इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि उन्हें समय से इलाज नहीं मिल पाता है। अगर दुर्घटना में घायल होने वाले श्वानों को समय से इलाज मिले तो काफी हद तक एक्सीडेंट से होने वाली मौतों का आंकड़ा कम हो सकता।

अंजली गुप्ता

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. नगर निगम की ओर से श्वानों के लिए चलाए जाने वाले नसबंदी कार्यक्रम लगातार चलने चाहिए। इसके लिए ठोस नीति की जरूरत है। मेरा मानना है कि निगम को फीडिंग के अवैध सेंटरों पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इसके लिए लगातार अभियान चलते रहना चाहिए।

नीरज सैनी

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. निराश्रित श्वानों के लिए सामाजिक जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है। इससे स्ट्रीट डॉग्स की तमाम दिक्कतों को काफी हद तक दूर किया जा सकता है। वॉलंटियर्स को आगे आना होगा। लोगों को जुड़ना होगा। इससे इनके हित में बात करने वालों की संख्या बढ़ेगी।

हेमलता सागर

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. शहर की तमाम कालोनियों, बस्तियों, मोहल्लों में ऐसे काफी लोग हैं जो इन बेजुबानों को बुरी तरह पीटते हैं। यह गलत है। मानवीय संवेदनाएं तार-तार हो जाती हैं। ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। इससे समाज में सकारात्मक संदेश जाएगा।

विकास जैन

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. निराश्रित श्वानों का पंजीकरण होना चाहिए। इसके लिए शहर के डॉग लवर्स को मुहिम शुरू करनी होगी। शुरुआती दौर में यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन है। एक बार डाटा तैयार होने से स्थिति साफ हो जाएगी कि किस इलाके में कितनी संख्या है। साथ रही जागरूकता कार्यक्रमों की जरूरत है।

मोहिनी चौधरी

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. निराश्रित श्वानों के हित की आवाज और अधिकार के लिए सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा। इनसे नफरत करने वाले या इनकी ओर ध्यान नहीं देने वाले लोगों को जागरूक करने में शहर के सामाजिक संगठन बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। श्वानों के हित में यह जरूरी है।

संजू

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. बेजुबान श्वान आवारा नहीं हैं। इनका कोई घर नहीं है। यह बेघर हैं। इन्हें आश्रय की जरूरत है। प्यार की तलाश है। भोजन की दरकार है। इसलिए इनके साथ कोई भी जुल्म नहीं होना चाहिए। अगर कोई इन्हें खाने पीने को कुछ नहीं दे सकता तो इन्हें मारे भी नहीं।

नीतू सिंह

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. पूरी दुनिया में श्वानों की वफादारी की मिसालें दी जाती हैं। इसके बाद भी यहां लोगों में इन्हें लेकर जागरूकता काफी कम है। कुदरत ने इनकी बेजुबानी को जुबान देने की जिम्मेदारी हमें दी है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि इनकी भलाई में हमेशा काम करते रहें।

डिंपल

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. विदेशी नस्ल के लोग श्वान पालते हैं। देसी नस्ल के श्वान भी काफी शानदार होते हैं। स्ट्रीट डॉग्स सभी खराब नहीं होते हैं। इनमें से बड़ी संख्या ऐसी होती है जो विदेशी नस्ल के श्वानों के लिए हमेशा चुनौती बने रहते हैं। तमाम लोग अपने घरों में स्ट्रीट डॉग्स पाल रहे हैं।

डूमर सिंह

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. मेरे घर के सामने दो बार स्ट्रीट डॉग्स की एक्सीडेंट में जान जा चुकी है। दोनों बार तेज रफ्तार बाइक की चपेट में आने से मौत हुई। दोनों श्वान कालोनी के लोगों के लिए काफी प्यारे थे। सभी परिवारों के सदस्य दिन रात उन्हें कुछ न कुछ खिलाते रहते थे।

शेखर

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