Hindi Newsउत्तर प्रदेश न्यूज़After 8 years, BSP was not seen struggling on the streets without any reason, Mayawati is now worried about this

8 साल बाद सड़क पर संघर्ष करते हुए यूं ही नहीं दिखाई दी बसपा, मायावती को अब इस बात की सता रही चिंता

बसपा 8 साल बाद सड़क पर संघर्ष करते हुए यूं ही नहीं दिखाई दी। बसपा प्रमुख मायावती को अब इस बात की चिंता सता रही है कि उनका वोट बैंक खिसक न जाए।इसी चिंता ने बसपा मुखिया मायावती को सड़क पर कार्यकर्ताओं को उतारने पर मजबूर होना पड़ा।

Deep Pandey हिन्दुस्तान, लखनऊ। शैलेंद्र श्रीवास्तवWed, 25 Dec 2024 05:54 AM
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अमूमन बयान जारी करने तक सीमित रहने वाली बसपा जुलाई 2016 यानी आठ साल बाद सड़क पर संघर्ष करते हुए यूं ही नहीं दिखाई दी। बसपा को सड़क पर क्यूं उतरना पड़ा इसके पीछे उसका खिसकता हुआ जनाधार माना जा रहा है। यूपी में चार-चार बार दलितों के दम पर सत्ता में आने वाली बसपा से यही वोट बैंक अब छिटकते हुए दिखाई दे रहा है। इसी चिंता ने बसपा मुखिया मायावती को सड़क पर कार्यकर्ताओं को उतारने पर मजबूर होना पड़ा।

भाजपा विरोधी होने का संदेश देने की कोशिश:

बसपा पर आरोप लगता रहा है कि वह भाजपा की टीम-बी के तौर पर काम करती है। इसीलिए बसपा ने डा. भीमराव आंबेडकर के अपमान पर भाजपा के खिलाफ सड़क पर उतर यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि वह भाजपा की पिछलग्गू नहीं, बल्कि उसकी विरोधी होने के साथ ही दलितों की शुभचिंतक ही है।

ये भी पढ़ें:लखनऊ में बसपा का जोरदार विरोध प्रदर्शन, गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ नारेबाजी

अमूमन बयान जारी करने तक सीमित रहने वाली बसपा जुलाई 2016 यानी आठ साल बाद सड़क पर संघर्ष करते हुए यूं ही नहीं दिखाई दी। बसपा को सड़क पर क्यूं उतरना पड़ा इसके पीछे उसका खिसकता हुआ जनाधार माना जा रहा है। यूपी में चार-चार बार दलितों के दम पर सत्ता में आने वाली बसपा से यही वोट बैंक अब छिटकते हुए दिखाई दे रहा है। इसी चिंता ने बसपा मुखिया मायावती को सड़क पर कार्यकर्ताओं को उतारने पर मजबूर होना पड़ा।

भाजपा विरोधी होने का संदेश देने की कोशिश:

बसपा पर आरोप लगता रहा है कि वह भाजपा की टीम-बी के तौर पर काम करती है। इसीलिए बसपा ने डा. भीमराव आंबेडकर के अपमान पर भाजपा के खिलाफ सड़क पर उतर यह संदेश भी देने की कोशिश की है कि वह भाजपा की पिछलग्गू नहीं, बल्कि उसकी विरोधी होने के साथ ही दलितों की शुभचिंतक ही है।

वर्ष 2017 के बाद से खिसकने लगा जनाधार

पंजाब से निकल कर बसपा संस्थापक कांशीराम ने उत्तर प्रदेश में पैठ इसीलिए बनाई थी कि यहां के दलित वोट बैंक के सहारे वह देश की राजनीति में मुकाम स्थापित कर सकें। उनकी यह रणनीति कारगर भी रही। उत्तर प्रदेश के दलित समाज ने खुलकर बसपा का साथ दिया। यह माना जाने लगा कि उत्तर प्रदेश में बसपा जिधर चाहेगी दलित उधर जाएगा। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसी का फायदा उठाया और मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंची, लेकिन वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद बसपा का चुनाव दर चुनाव जनाधान खिसकने लगा। इसके लिए कुछ हद तक मायावती को भी दोषी माने जाने लगा।

जनाधार पाने की कोशिश

कांशीराम ने बसपा बनाते समय पार्टी में दलितों के साथ पिछड़ों, अति पिछड़ों के साथ मुस्लिमों को भी जोड़ा, लेकिन समय के साथ ये साथ छोड़ते हुए चलते बने। मायावती ने न तो इन्हें रोकने की कोशिश की और न ही इनके स्थान पर उसी वर्ग के नेताओं को पार्टी में आगे बढ़ाया। बसपा वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने में सफल रही। उस समय माना गया कि बसपा सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चलकर सफल रही, लेकिन आगे चलकर अन्य किसी भी चुनाव में यह फार्मूला नहीं चला और स्थिति यह हुई कि उसका दलित और अति पिछड़ा वोट बैंक भी उससे छिटक गया। बसपा सुप्रीमो को लगने लगा है कि उसे जनाधार पाने के लिए कुछ नया करना होगा, शायद इसी मकसद से उन्हें पार्टी कार्यकर्ताओं को सड़क पर उतारने को मजबूर होना पड़ा।

चुनाववार मिले मत प्रतिशत

चुनाव सीट मत प्रतशित

वर्ष 2024 विधानसभा उपचुनाव शून्य 07%

वर्ष 2012 विधानसभा चुनाव 80 25.91%

वर्ष 2017 विधानसभा चुनाव 19 22.23%

वर्ष 2022 विधानसभा चुनाव 01 12.83%

वर्ष 2019 लोकसभा चुनाव 10 19.43%

वर्ष 2024 लोकसभाचुनाव 00 9.35

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