अब्बास अंसारी को सुप्रीम कोर्ट से राहत, प्रॉपर्टी पर मिला स्टे; हाई कोर्ट में जल्द सुनवाई का आदेश
- सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि हमने नोटिस जारी नहीं किया है और उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से कोई रिपोर्ट भी प्राप्त नहीं की है, इसलिए हम इस बारे में कोई राय व्यक्त करने के इच्छुक नहीं हैं कि कौन सी ऐसी परिस्थितियां थीं जिनमें याचिकाकर्ता की रिट याचिका को पीठ द्वारा सुनवाई के लिए नहीं लिया जा सका।
Abbas Ansari Case: जेल में बंद यूपी की मऊ सीट से विधायक अब्बास अंसारी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। सर्वोच्च अदालत ने अब्बास द्वारा दावा की गई संपत्ति पर यथास्थिति (स्टे आर्डर) बनाए रखने का निर्देश दिया है। 2023 में इसे निष्क्रिय संपत्ति घोषित करते हुए उन्हें बेदखल कर दिया गया था। इस मामले में अंसारी की ओर से यह आरोप लगाया गया था कि सु्प्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए आदेश के बाद उनकी रिट याचिका को हाईकोर्ट में कई मौकों पर सूचीबद्ध किया गया लेकिन कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हुई है। इस पर सु्प्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि हमने नोटिस जारी नहीं किया है और उच्च न्यायालय की रजिस्ट्री से कोई रिपोर्ट भी प्राप्त नहीं की है, इसलिए हम इस बारे में कोई राय व्यक्त करने के इच्छुक नहीं हैं कि ऐसी कौन सी परिस्थितियां थीं जिनमें याचिकाकर्ता की रिट याचिका को पीठ द्वारा सुनवाई के लिए नहीं लिया जा सका। हालांकि इसे समय-समय पर सूचीबद्ध किया गया था।
वेबसाइट लाइव लॉ डॉट इन के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चूंकि याचिकाकर्ताओं ने विशेष रूप से कहा है कि अधिकारियों ने ग्राम जियामऊ, लखनऊ में स्थित प्लॉट नंबर 93 पर निर्माण शुरू कर दिया है, जिसे वे अपने स्वामित्व में होने का दावा करते हैं और यदि तीसरे पक्ष के अधिकार बनाए जाते हैं तो इससे याचिकाकर्ताओं को अपूरणीय क्षति होने की संभावना है। हम अधिकारियों के साथ-साथ याचिकाकर्ताओं को उच्च न्यायालय द्वारा मामले की सुनवाई होने तक साइट पर यथास्थिति बनाए रखने के निर्देश के साथ इस आवेदन का निपटान करते हैं। जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिस्वर सिंह की पीठ ने यह आदेश पारित करते हुए कहा, 'तत्काल आवेदन अन्य बातों के साथ-साथ यह आरोप लगाते हुए दायर किया गया है कि इस अदालत द्वारा पारित आदेश के बाद, रिट याचिका को कई मौकों पर सूचीबद्ध किया गया है, लेकिन कोई प्रभावी सुनवाई नहीं हुई है। नतीजतन, याचिकाकर्ता को कोई अंतरिम सुरक्षा नहीं दी गई है। अन्य सभी समान रूप से स्थित रिट याचिकाकर्ताओं को विवादित स्थल पर बेदखली/तोड़फोड़/नए निर्माण के खिलाफ संरक्षित किया गया है।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया कि मामले को जल्द से जल्द उच्च न्यायालय की उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए। उन्होंने रजिस्ट्री को इस आदेश की एक प्रति उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल/रजिस्ट्रार (न्यायिक) को भेजने का निर्देश दिया। जिन्हें बदले में उस आदेश को उस पीठ के ध्यान में लाने का निर्देश दिया गया है जहां मामला सूचीबद्ध है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि डिवीजन बेंच को हमारे आदेश दिनांक 21 अक्टूबर, 2024 के पैरा 6 में हमारे द्वारा किए गए अनुरोध से अवगत कराया जाए।
बता दें कि यह मामला अब्बास अंसारी और उनके भाई उमर अंसारी को वसीयत किए गए एक प्लॉट से संबंधित है, जिसे 2023 में प्लॉट को निष्क्रांत संपत्ति घोषित किए जाने के बाद उन्हें बेदखल कर दिया गया था। शुरुआत में, अंसारी बंधुओं ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय का रुख किया, लेकिन जब अंतरिम रोक नहीं लगी और अधिकारियों ने कथित तौर पर विवादित स्थल पर निर्माण शुरू कर दिया, तो उन्होंने 2024 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। अंसारी की एसएलपी का अक्टूबर 2024 में निपटारा कर दिया गया। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था यदि आवश्यक हो तो उच्च न्यायालय में उनके मामले की सुनवाई बिना बारी के की जाए और किसी भी स्थिति में 11 नवंबर, 2024 को की जाए।
गुरुवार को अब्बास अंसारी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने एक अनिवार्य आदेश पारित कर उच्च न्यायालय से अंसारी की याचिका पर बारी से पहले सुनवाई करने को कहा था। फिर भी, बिना किसी प्रभावी सुनवाई के 6 तारीखें बीत गईं और अन्य सभी प्लॉट धारकों को स्टे मिल गया। सिब्बल ने आगे आरोप लगाया कि अधिकारी साइट पर निर्माण कार्य जारी रखे हुए हैं और केवल अंसारी को उनकी पृष्ठभूमि के कारण राहत से वंचित रखा गया है। इस पर अफसोस जताते हुए उन्होंने कहा, 'यदि उच्च न्यायालय ऐसा करते हैं, तो एक नागरिक कहां जाएगा?'
क्या है मामला
अब्बास अंसारी के दादा ने कथित तौर पर 2004 में लखनऊ के जियामऊ गांव में स्थित प्लॉट नंबर 93 में एक हिस्सा खरीदा था। 2017 में, यह संपत्ति एक पंजीकृत वसीयत के माध्यम से अब्बास अंसारी और उनके भाई उमर अंसारी को दे दी गई। 2020 में, एसडीएम, डालीबाग, लखनऊ ने कथित तौर पर एक पक्षीय आदेश पारित किया, जिसमें प्लॉट को निष्क्रांत संपत्ति, यानी सरकारी संपत्ति घोषित किया गया। जाहिर है अगस्त 2023 में अंसारी बंधुओं को संपत्ति से बेदखल कर दिया गया। शुरू में, अब्बास अंसारी ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय (लखनऊ खंडपीठ) के समक्ष एक रिट याचिका दायर की। प्लॉट के कुछ अन्य सह-मालिक, जो एसडीएम के आदेश से प्रभावित थे, ने 2021 में एक अलग रिट याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, जिसे एक डिवीजन बेंच के समक्ष सूचीबद्ध किया गया था। 2024 में, अंसारी दंपत्ति की रिट याचिका को सह-मालिकों की रिट याचिका के साथ सूचीबद्ध करने का निर्देश दिया गया था, ताकि विरोधाभासी आदेशों से बचा जा सके।
आरोप है कि अंसारी की रिट याचिका को डिवीजन बेंच के समक्ष बार-बार सूचीबद्ध किया गया, लेकिन उनके पक्ष में कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई गई, हालांकि अन्य प्रभावित व्यक्तियों को राहत दी गई। दावों के अनुसार, अधिकारियों ने अंसारी के भूखंड पर भौतिक कब्ज़ा लेने के बाद, साइट पर निर्माण शुरू कर दिया। इससे व्यथित होकर अब्बास अंसारी ने सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की। इस एसएलपी का निपटारा अक्टूबर, 2024 में उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच की डिवीजन बेंच से इस अनुरोध के साथ किया गया था कि अंसारी द्वारा दायर अंतरिम रोक के आवेदन पर जल्द से जल्द सुनवाई की जाए और किसी भी स्थिति में 4 नवंबर, 2024 को सुनवाई की जाए। कोर्ट ने कहा था, 'हम उच्च न्यायालय से अनुरोध करते हैं कि यदि आवश्यक हो तो आवेदन को बारी से पहले स्वीकार कर लिया जाए, ताकि अंतरिम सुरक्षा के लिए याचिकाकर्ता की प्रार्थना पर उचित निर्णय लिया जा सके।' वेबसाइट लाइव लॉ डॉट इन के अनुसार, इसके बाद, चूंकि उच्च न्यायालय उच्चतम न्यायालय के उपरोक्त आदेश के बावजूद अंसारी के अंतरिम आवेदन पर विचार करने में विफल रहा, इसलिए वर्तमान मामला दायर किया गया था।