पूर्वांचल में जापान से फिर आई एक दुर्लभ बीमारी, पूरी दुनिया में अब तक पता चले हैं 43 केस
- महिला के मैक्सिलरी मसूड़े में पीछे एक पॉलीपॉइड द्रव्य की तरह मांस का टुकड़ा दिखाई दिया। इसकी जांच की गई तो वह 2 सेंटीमीटर लंबा और एक सेंटीमीटर चौड़ा था। इसकी एक्सिसनल बायोप्सी करते हुए हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच कराई गई।
Rare disease again came to Purvanchal from Japan: पूर्वांचल में जापान से फिर एक नई दुर्लभ बीमारी आई है। करीब चार दशक तक जापानी इंसेफेलाइटिस से जूझने वाले पूर्वांचल में इस बार जापान की दुर्लभ बीमारी जिंजिवल लेयोमायोमेटस हैमार्टोमा (जेएलएमएच) से पीड़ित से मरीज मिली है। इसका इलाज एम्स में किया गया। इसे मसूड़ों का ट्यूमर भी कहा जाता है। इस बीमारी का देश में यह तीसरा केस है। अब तक पूरी दुनिया में इसके 43 मरीज रिपोर्ट हुए हैं।
एम्स के दंत रोग विशेषज्ञ डॉ. दीपांशु कुमार ने बताया कि देवरिया ग्रामीण इलाके की रहने वाली एक 27 वर्षीय युवती एक साल पहले दंत रोग विभाग में इलाज के लिए आई थी। महिला के मैक्सिलरी मसूड़े में (इंसिसिव पैपिल, मसूडे़ के ऊपरी हिस्से) के पीछे एक पॉलीपॉइड द्रव्य की तरह मांस का टुकड़ा दिखाई दिया। इसकी जांच की गई तो वह दो सेंटीमीटर लंबा और एक सेंटीमीटर चौड़ा था। इसकी एक्सिसनल बायोप्सी करते हुए हिस्टोपैथोलॉजिकल जांच कराई गई। जांच में जापान की दुर्लभ बीमारी जेएलएमएच की पुष्टि हुई। इसके बाद इसे रिपोर्ट करते हुए डाइग्नोसिस का फैसला लिया गया। दंत रोग विभागाध्यक्ष प्रो. डॉ. श्रीनिवास टीएस के नेतृत्व में डॉ. दीपांशु कुमार, डॉ. दिव्या सिंह सहित अन्य डॉक्टरों की टीम ने सर्जरी कर उस टुकड़े को हटाया। इस बीच एक साल तक लगातार मरीज के स्वास्थ्य की गई। इस दौरान कोई दिक्कत नहीं मिली है।
शादी में हो रही थी दिक्कत, तब पहुंची एम्स
डॉक्टरों के मुताबिक, महिला के मसूड़े में इस दिक्कत की वजह से शादी नहीं हो पा रही थी। जब शादी का मामला फंस गया तो परिजन एम्स में इलाज के लिए लेकर आए। परिजनों ने बताया कि बचपन में यह समस्या थी, लेकिन तब मसूड़े में इसका आकार बेहद छोटा था। लेकिन, जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती गई ट्यूमर का आकार बढ़ता गया। इसके बाद खाने-पीने और बोलने में दिक्कत होने लगी। सर्जरी के बाद इसी साल युवती की शादी हो गई है और वह अब सामान्य जिंदगी जी रही है।
एम्स के डॉक्टर करेंगे शोध
एम्स ने इस दुर्लभ बीमारी पर शोध का फैसला लिया है। विभागाध्यक्ष डॉ. श्रीनिवास टीएस ने बताया कि यह दुर्लभ केस है। पूरी दुनिया में केवल 43 केस मिले हैं। देश में इससे पहले सिर्फ दो केस रिपोर्ट हुए हैं, दोनों नाबालिग थीं। देश में पहली बार 27 वर्ष की युवती में यह बीमारी रिपोर्ट की गई है। ऐसे में यह वयस्कों के मामले में भारत का पहला केस है। इस पर शोध किया जाएगा। इसका प्रोजेक्ट पेपर तैयार हो चुका है। डॉक्टर के मुताबिक कि मरीज के परिजनों से पूछताछ में भी यह बात सामने आई है कि इस तरह की बीमारी उनके परिवार में कभी किसी को नहीं रही है। ऐसे में यह अनुवांशिक बीमारी नहीं हो सकती है।
देश का पहला मरीज 2015 में हुआ था रिपोर्ट
डॉ. दीपांशु कुमार ने बताया कि देश में जिंजिवल लेयोमायोमेटस हैमार्टोमा का पहला केस 2015 में रिपोर्ट हुआ था। मरीज 15 वर्ष की एक बालिका थी। दूसरा केस 2017 में रिपोर्ट हुआ, इसमें मरीज की उम्र दो वर्ष थी। वहीं, विश्व में पहला केस 1962 में जापान में रिपोर्ट हुआ था। यह बीमारी सबसे अधिक जापान में रिपोर्ट की गई है, जहां 20 से अधिक मरीज मिले हैं। इसके अलावा मीडिल ईस्ट में अरब में एक केस, ब्राजील में चार, यूनाइटेड किगंडम और अमेरिका में केस रिपोर्ट किए गए हैं।
1978 में पहली बार इंसेफेलाइटिस भी जापान से ही आया था
जापान में पनपने वाली जिंजिवल लेयोमायोमेटस हैमार्टोमा दुर्लभ बीमारी से पहले भी पूर्वांचल में वहां से आया एक वायरस कहर बरपा चुकी है। इस बीमारी का नाम जापानी इंसेफेलाइटिस है। 1978 में जापान से आई यह बीमारी पूर्वांचल सहित बिहार में 40 हजार मासूमों की जान ले चुकी है। इस बीमारी की चपेट में आने से 25 हजार से ज्यादा बच्चे दिव्यांग हो चुके हैं। पिछले सात सालों में समन्वित प्रयास से यूपी में इस पर करीब-करीब काबू पाया जा चुका है।