राजस्थान हाईकोर्ट ने मनपसंद पार्टनर चुुनने वाले जोड़ों की पुलिस सुरक्षा के लिए जारी की SOP, जान लें पूरे नियम
हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यह पुलिस अफसरों की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे समाज के नियम बनाने और लागू कराने वाले लोगों और समूहों से धमकियों का सामना कर रहे जोड़ों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करें।
राजस्थान हाईकोर्ट ने परिवार और समाज से धमकियों और उत्पीड़न का सामना कर रहे जोड़ों को पुलिस सुरक्षा प्रदान करने के लिए एसओपी जारी की है। हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि यह पुलिस अफसरों की संवैधानिक जिम्मेदारी है कि वे समाज के नियम बनाने और लागू कराने वाले लोगों और समूहों से धमकियों का सामना कर रहे जोड़ों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करें।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस समीर जैन ने कहा कि ऐसे जोड़ों के लिए एक उचित संस्थागत तंत्र बनाया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पुलिस अधिकारी उन्हें सुरक्षा देने में नाकाम रहने के लिए जवाबदेह हों। न्यायाधीश ने कहा, "पुलिस अफसरों का यह संवैधानिक कर्तव्य है कि वे उन जोड़ों को बेहतर सुरक्षा प्रदान करें, जिनकी आजादी सामज के लोगों या समूहों द्वारा बाधित की जा रही हो, जो प्रमुख सामाजिक नियमों को थोपने के लिए गैरकानूनी उत्पीड़न करते हैं या धमकियां देते हैं।''
हाईकोर्ट ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक एसओपी जारी की है कि जो जोड़े विवाहित हैं या बस एक करीबी रिश्ते में हैं, उन्हें पर्याप्त पुलिस सुरक्षा दी जाए। निम्नलिखित निर्देश उन व्यक्तियों पर लागू होंगे, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं होंगे, जो अपनी पसंद का पार्टनर चुनने के कारण ऐसी धमकियों का सामना कर सकते हैं :-
एसओपी में क्या-क्या बातें
धमकियों की आशंका वाले व्यक्ति एक नामित नोडल अधिकारी के समक्ष आवेदन दायर कर सकते हैं, जिसके पास मामले पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र हो भी सकता है और नहीं भी।
मामले पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र रखने वाला नोडल अधिकारी, यदि आवश्यक हो तो तत्काल आधार पर आवेदक के लिए अंतरिम सुरक्षा सुनिश्चित करने के उपायों को लागू करेगा।
मामले पर क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र रखने वाला नोडल अधिकारी आवेदन पर विचार करेगा। आवेदक को व्यक्तिगत रूप से या किसी वकील के माध्यम से पेश होने और सुनवाई का अवसर प्रदान करेगा और आवेदन प्राप्त होने के 7 दिनों के भीतर इस पर फैसला लेगा।
यदि नोडल अधिकारी के निर्णय/निष्क्रियता से परेशान है तो आवेदक पुलिस अधीक्षक के समक्ष अपना आवेदन दायर कर सकता है।
पुलिस अधीक्षक आवेदन प्राप्त होने के 3 दिनों के भीतर अभ्यावेदन पर विचार करेगा और उस पर निर्णय लेगा।
यदि संबंधित पुलिस अधीक्षक के निर्णय/निष्क्रियता से परेशान है तो आवेदक ‘पुलिस शिकायत प्राधिकरण’ के समक्ष शिकायत दर्ज कर सकता है।
जब आवेदक पुलिस शिकायत प्राधिकरण के निर्णय से परेशान होता है या कार्यवाही उचित समय के भीतर समाप्त नहीं होती है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट का रुख कर सकता है।
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को एक ऑनलाइन तंत्र बनाना चाहिए जिसके माध्यम से जोड़े इस तरह के आवेदन दायर कर सकें और कार्यवाही के बारे में अपडेट प्राप्त कर सकें।
इसके साथ ही अदालत ने यह भी कहा कि ऐसे मामलों में जहां जोड़े अपने परिवार के सदस्यों से अतिरिक्त कानूनी खतरों का सामना कर रहे हैं, नोडल अधिकारी विरोधी परिवार के साथ मध्यस्थता कर सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि हाईकोर्ट ने कहा कि उसके निर्देश प्रेमी और विवाहित जोड़ों के अलावा अन्य व्यक्तियों की शिकायतों पर भी लागू होंगे।
बता दें कि, हाईकोर्ट ने इस वर्ष मार्च में विवाह करने वाले एक युवा जोड़े के मामले की सुनवाई करते हुए यह निर्देश पारित किए। इस जोड़े को महिला के परिवार के सदस्यों से धमकियां मिल रही थीं। इस मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने पाया कि हरदिन लगभग 15-20 ऐसी याचिकाएं उसके समक्ष दायर की जाती हैं। कोर्ट ने यह भी पाया कि जोड़े पुलिस के पास जाए बिना ही सीधे ही अदालत का रुख कर लेते हैं।