Hindi Newsराजस्थान न्यूज़Lakkhi fair of Trinetra Ganesh ji starts from today in Ranthambore, Sawai Madhopur

रणथंभौर में त्रिनेत्र गणेश जी का लक्खी मेला आज से शुरू, जानें सुविधाओं से जुड़ी पूरी जानकारी

  • राजस्थान के सवाई माधोपुर जिला स्थित रणथंभौर में त्रिनेत्र गणेश जी का लक्खी मेला आज से शुरू हो गया है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्जनों निःशुल्क भंडारे लगाए जा रहे हैं। पग-पग पर भंडारे लगाने के लिए भंडारा संचालक जुटे हुए हैं।

Prem Narayan Meena लाइव हिन्दुस्तानFri, 6 Sep 2024 01:03 PM
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राजस्थान के सवाई माधोपुर जिला स्थित रणथंभौर में त्रिनेत्र गणेश जी का लक्खी मेला आज से शुरू हो गया है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए दर्जनों निःशुल्क भंडारे लगाए जा रहे हैं। पग-पग पर भंडारे लगाने के लिए भंडारा संचालक जुटे हुए हैं। लगभग 14 किलोमीटर का सफर श्रद्धालु पैदल तय करते हैं। इस बार बारिश अधिक होने से रणथंभौर के सभी जलाशय लबालब भरे हुए हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं की सुरक्षा की देखते हुए जलाशयों पर बैरिकेडिंग की गई है। साथ ही मेला परिसर में सिविल डिफेंस और एसडीआरएफ की टीम भी तैनात रहेगी। मंदिर में सुगमता से दर्शन हो सके, इसका भी खास खयाल रखा जा रहा है।

मंदिर में आने वाले लाखों श्रद्धालुओं की व्यवस्था के मद्देनजर चार दर्जन से अधिक रोडवेज बसें मेले के लिए लगाई गई हैं। आसपास के सभी जिलों से पर्याप्त पुलिस जाप्ता यहां बुलवाया गया है। साथ ही आरएसी की कम्पनी भी मेले में तैनात रहेगी। रणथंभौर त्रिनेत्र गणेश मेले में इस बार 5 से 6 लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने का अनुमान है। समूची तैयारी को अंतिम रूप प्रदान किया रहा है। मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुरक्षा के मद्देनजर मेला परिसर में पुलिस के आला अधिकारियों सहित करीब 1200 पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं।

6 से 8 सितंबर के बीच लक्खी मेला आयोजित किया जाएगा। इस मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए व्यवस्थाओं को बेहतर बनाया गया है। त्रिनेत्र गणेश मंदिर के प्रधान सेवक हिमांशु गौतम ने बताया कि रणथंभौर के त्रिनेत्र गणेश मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। मंदिर रणथंभौर दुर्ग में स्थित है. त्रिनेत्र गणेश को लेकर लोगों में कई प्रकार किंवदंतियां भी प्रचलित है। कई लोगों का मानना है कि भगवान गणेश की इस प्रतिमा कि उत्पत्ती अपने आप हुई थी। वहीं, कई लोगों का मानना है कि भगवान शिव ने जब बाल्य अवस्था में गणेश जी का सिर काटा था तो वो सिर यहा आकर गिरा था। 

तब से ही यहा भगवान गणेश के शीश की पूजा की जाती है। साथ ही कुछ लोगों का कहना है कि जब भगवान कृष्ण का विवाह हुआ था, तब भगवान गणेश अपना विवाह नहीं होने को लेकर नाराज हो गए थे और अपनी मुसा सैना के सहयोग से भगवान कृष्ण की बारात के रास्ते में बाधाएं उत्पन्न कर दी थी। तब कृष्ण ने रणथम्भौर की ही रिद्धी-सिद्धी के साथ भगवान गणेश का विवाह सम्पन्न करवाया था। यही कारण है इस मंदिर में भगवान गणेश रिद्धी-सिद्धी के साथ विराजमान है।

इसके अलावा अगर मंदिर महंत की मानें तो जब रणथम्भौर दुर्ग पर राजा हमीर का शासन था, तब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर पर आक्रमण किया था, तब राजा हमीर कई महीनों तक दुर्ग में ही रहे थे। दुर्ग का भण्डार खाली हो गया था तो भगवान गणेश ने राजा को स्वप्न में दर्शन दिए। दूसरे दिन सुबह सारे भण्डार भरे हुए मिले। इसी दौरान यहां जमीन से अपने आप गणेश जी की प्रतिमा उत्पन्न हो गई थी। तब से ही इनकी पुजा की जाती है। बताया जाता है कि मंदिर का निर्माण रणथंभौर के राजा हम्मीर ने करवाया था। उन्होंने बताया कि पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार पत्नी रिद्धि और सिद्धि और दो पुत्र शुभ व लाभ के साथ विराजमान हैं।

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