Fact Check: अजमेर शरीफ दरगाह में स्वास्तिक निशान का दावा, इन तस्वीरों का सच क्या
अजमेर शरीफ दरगाह इन दिनों खूब चर्चा में हैं। अजमेर की एक स्थानीय अदालत में यह दावा करते हुए याचिका दायर की गई है कि दरगाह के नीचे शिव मंदिर है।
अजमेर शरीफ दरगाह इन दिनों खूब चर्चा में हैं। अजमेर की एक स्थानीय अदालत में यह दावा करते हुए याचिका दायर की गई है कि दरगाह के नीचे शिव मंदिर है। अदालत में यह याचिका स्वीकार किए जाने के बाद हंगामा खड़ा हो गया है। 1911 में लिखी गई एक किताब में किए गए कुछ दावों के आधार पर यह याचिका दायर की गई है। हरबिलास सारदा नाम के लेखक ने किताब में कहा है कि इस दरगाह के नीचे हिंदू मंदिर हैं। सोशल मीडिया आए दिन एक तस्वीर साझा करते हुए दावा किया जाता है कि दरगाह में स्वास्तिक के निशान भी मिले हैं। आइए जानते हैं कि इस दावे का सच क्या है।
सोशल मीडिया पर एक बार फिर स्वास्तिक निशान वाली एक खिड़की की तस्वीरें शेयर की जा रही हैं। इसके साथ दावा किया जा रहा है कि यह अजमेर शरीफ दरगाह की हैं। ताजा विवाद के बाद एक बार फिर कई लोग इसे साझा कर रहे हैं। यह दावा नया नहीं है, बल्कि पिछले दो साल से सोशल मीडिया पर बार-बार दिखता रहा है। दरअसल, 2022 में महाराणा प्रताप सेना की ओर से यह दावा किया गया था। तब उन्होंने एक तस्वीर दिखाते हुए दावा किया था कि स्वास्तिक निशान वाली यह खिड़की अजमेर शरीफ दरगाह की है।
लाइव हिन्दुस्तान ने जब वायरल दावों की पड़ताल की तो सच कुछ और ही निकला। हमने जब 'अजमेर दरगाह स्वास्तिक' जैसे कीवर्ड के साथ गूगल सर्च किया तो हम 2022 में प्रकाशित कुछ खबरों तक पहुंचे। जिनमें इस तस्वीर का इस्तेमाल किया गया है। हमने जब तस्वीर को 'गूगल इमेज सर्च' में डाला तो हम 'ढाई दिन के झोपड़े' की खबरों तक पहुंचे, जिनमें यही तस्वीर दिखी। उस समय कई मीडिया चैनल्स ने भी अजमेर दरगाह में जाकर उस खिड़की की तलाश की थी, लेकिन उन्हें तस्वीर वाली खिड़की दरगाह में नहीं बल्कि 'ढाई दिन के झोपड़े' में मिली थी।
क्या है ढाई दिन का झोपड़ा
'ढाई दिन का झोपड़ा' अजमेर शरीफ दरगाह से करीब 500 मीटर की दूरी पर स्थित है। करीब 800 साल पुरानी इमारत भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से संरक्षित है। ढांचे के भीतर मस्जिद में नमाज अता की जाती है। कुछ इतिहासकारों का दावा है कि महाराज विग्रहराज चौहान की ओर से कभी यहां देवालय और संस्कृत शिक्षण केंद्र की स्थापना की गई थी। मोहम्मद गोरी के कहने पर कुतुबुद्दीन ऐबक ने इसे ध्वस्त करा दिया और इसकी जगह पर महज ढाई दिन में मौजूदा इमारत का निर्माण करा दिया। मंदिर के मलबे से ही इमारत का निर्माण कराया गया जिसकी वजह से आज भी इसमें स्वास्तिक समेत कई हिंदू प्रतीक चिह्न मौजूद हैं। हाल ही में भाजपा के एक सांसद ने दोबारा यहां देवालय और शिक्षण संस्थान शुरू करने की मांग केंद्र सरकार से की थी।