दिहाड़ी मजदूर कैसे बनी कंपनी CEO, दिलचस्प है राजस्थान की रुक्मिणी कटारा की कहानी; PM मोदी कर चुके हैं सम्मानित
राजस्थान के डूंगरपुर जिले के एक गांव की महिला ने ऐसा काम किया है जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी है। कभी भरी दोपहरी में मनरेगा के तहत मजदूरी करने वाली महिला आज एक कंपनी की सीईओ है, जिसका टर्नओवर 3.5 करोड़ रुपये से ज्यादा का है।

राजस्थान के डूंगरपुर जिले के एक गांव की महिला ने ऐसा काम किया है जो दूसरों के लिए प्रेरणादायी है। कभी भरी दोपहरी में मनरेगा के तहत मजदूरी करने वाली महिला आज एक कंपनी की सीईओ है, जिसका टर्नओवर 3.5 करोड़ रुपये से ज्यादा का है। एक समय रुक्मिणी कटारा मनरेगा में दिहाड़ी मजदूरी करके अपना जीवनयापन करती थीं। लेकिन आज उनकी कंपनी घरों को सौर ऊर्जा से बिजली देती है। उनकी यात्रा माड़वा खापर्दा से शुरू हुई, जहां वह राजीविका के जरिए एक स्वयं सहायता समूह में जुड़ीं और सोलर लैंप और प्लेट बनाने और इंस्टॉल करने का तरीका सीखा।
सीखने की ललक से पाया मुकाम
राजीविका जो आधिकारिक तौर पर राजस्थान ग्रामीण आजीविका विकास परिषद (आरजीएवीपी) है, राजस्थान सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के तहत एक स्वायत्त निकाय है। यह ग्रामीण गरीबों के जीवन को बेहतर बनाने के मकसद से आजीविका कार्यक्रमों को लागू करने का काम करता है। रुक्मिणी की सीखने की ललक जल्द ही लीडरशिप में बदल गई। आज, वह दुर्गा सोलर कंपनी का नेतृत्व करती है, जो औपचारिक रूप से डूंगरपुर रिन्यूएबल एनर्जी टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड के रूप में पंजीकृत है। न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, आज उनके नेतृत्व में कंपनी न केवल सोलर प्लेट, बल्ब और उपकरण बनाती है, बल्कि उनके क्षेत्र की 50 महिलाओं को रोजगार भी देती है, जिससे उन्हें स्वतंत्र जीवन जीने का मौका मिलता है।
पीएम मोदी ने रुक्मिणी को सम्मानित किया
रुक्मिणी की कहानी को राष्ट्रीय पहचान तब मिली जब 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में उन्हें सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा, "महिलाओं को कभी भी खुद को कम पढ़ा-लिखा होने के कारण नहीं रोकना चाहिए। आप कम पढ़ी होने के बावजूद भी आगे बढ़ सकती हैं।" वह चार बच्चों की मां हैं और अपने बच्चों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं, जिनमें से दो बी.एड की पढ़ाई कर रहे हैं जबकि दो छोटे स्कूल की पढ़ाई कर रहे हैं।
विश्वास से होती है बदलाव की शुरुआत
रुक्मिणी उन कई आदिवासी महिलाओं के लिए एक जीवंत उदाहरण हैं जो उनमें अपना प्रतिबिंब देखती हैं। वह इस बात का जीता जागता सबूत हैं कि बदलाव की शुरुआत विश्वास से होती है। उन्होंने कहा, “मैंने केवल नौवीं क्लास तक पढ़ाई की है। लेकिन आज मैं एक कंपनी की मालकिन हूं। तो दूसरी महिलाएं ऐसा क्यों नहीं कर सकतीं?” वह कहती हैं, उनका आत्मविश्वास घरों से कहीं ज्यादा लोगों को रोशन करता है। सरकार के अनुसार, 31 जनवरी 2025 तक लगभग 10.05 करोड़ महिला-नेतृत्व वाले परिवारों को 90.90 लाख स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) में जोड़ा जा चुका है।