रासेश्वरी पाणिग्रही के संन्यास से संबलपुर में धर्मेंद्र प्रधान और प्रणब प्रकाश दास के बीच चुनावी माहौल बदला
ओडिशा की संबलपुर लोकसभा सीट पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और बीजेडी के जाजपुर विधायक प्रणब प्रकाश दास के बीच कांटे का मुकाबला है। पाला बदल के बीच बीजद की एक बड़ी नेता ने संन्यास ले लिया है।
ओडिशा की संबलपुर लोकसभा सीट पर नवीन पटनायक की पार्टी बीजू जनता दल की बड़ी नेता और पूर्व विधायक रासेश्वरी पाणिग्रही के संन्यास लेने से मुकाबला कांटे का हो गया है। 20 साल बाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता धर्मेंद्र प्रधान को रोकने के लिए बीजेडी ने संगठन सचिव प्रणब प्रकाश दास को लड़ाया है। विधानसभा का पिछला चुनाव बीजेपी के जयनारायण मिश्रा से मामलूी अंतर से हार गईं पाणिग्रही को टिकट की उम्मीद थी जो मिली नहीं। उन्होंने इस्तीफा भेजकर राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। पाणिग्रही का संन्यास प्रणब के खिलाफ जा रहा है जिसका धर्मेंद्र प्रधान फायदा उठाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं।
2009 के लोकसभा चुनाव से ही यह सीट नए नेता को जिता रही है। 2009 में कांग्रेस, 2014 में बीजेडी और 2019 में बीजेपी इस सीट से जीती है। बीजेपी ने शायद इसलिए यहां से धर्मेंद्र प्रधान को उतारा है। बीजेडी ने भी प्रणब प्रकाश दास को टिकट दिया है। इस सीट के लिए दोनों नए कैंडेडिट हैं। जिले में बीजेडी की सबसे मजबूत चेहरा पाणिग्रही के इस्तीफे से पार्टी को संबलपुर में गहरा झटका लगा है। पाणिग्रही का असर आस-पास के जिलों में भी पड़ने की आशंका है जिसका नुकसान बीजेडी को उठाना पड़ सकता है। भाजपा के नेता इस संन्यास को बीजेडी के 'मां कू सम्मान' के नारे पर सवाल उठाने के लिए करने लगे हैं।
बीजेडी के लिए इस क्षेत्र में मुसीबतें लगातार बढ़ रही हैं। पाणिग्रही के संन्यास से पहले बीजेडी के गोंड नेता और विधायक रमेश चंद्र साईं ने इस्तीफा दे दिया और भाजपा में शामिल हो गए हैं। बीजेडी ने कुचिंडा में आदिवासी नेता किशोर चंद्र नाईक का टिकट काटकर कांग्रेस से आए राजेंद्र छत्रिया को कैंडिडेट बनाया है जिससे किशोर नाराज हैं। दो आदिवासी विधायकों को साइडलाइन करने से पार्टी को आदिवासी वोटरों के बीच काफी मुश्किल हो रही है।
मोदी की गारंटी और मिट्टी का बेटा दस साल से केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान का प्रमुख नारा और सहारा है। जहां बीजेडी में बिखराव का दौर दिख रहा है वहीं बीजेपी में बीजेडी और दूसरे दलों के नेता एंट्री मार रहे हैं। प्रणब के लिए पार्टी से पलायन रोकना पहली चुनौती है और दूसरी चुनौती बड़े नेताओं को मनाना जो प्रचार से दूर-दूर चल रहे हैं। प्रणब संबलपुर लड़ने 350 किलोमीटर दूर जाजपुर से आए हैं जहां के वो मौजूदा विधायक हैं। जबकि धर्मेंद्र पहली बार 2004 में देवगढ़ से ही संसद गए थे जिसके अंदर की देवगढ़ विधानसभा सीट अब संबलपुर लोकसभा का हिस्सा है।
धर्मेंद्र प्रधान काफी समय से संबलपुर को केंद्र में रखकर 2024 की चुनावी राजनीति कर रहे थे जबकि दास को बीजेडी ने अचानक से दो सप्ताह पहले संबलपुर लड़ने भेज दिया है। चूंकि ओडिशा में लोकसभा के साथ ही विधानसभा के भी चुनाव हो रहे हैं इसलिए प्रधान और दास दोनों के ऊपर अपनी-अपनी जीत के साथ ही विधानसभा सीटों को भी निकलवाने का भार है। संबलपुर लोकसभा के अंदर की सात विधानसभा सीटों में 4 पर बीजेडी और 3 पर बीजेपी के विधायक जीते थे। पाला बदल के बाद बीजेपी के पास 4 विधायक आ गए हैं जबकि बीजेडी के पास 3 ही बचे हैं।
धर्मेंद्र प्रधान के लिए सबसे बड़ी मुश्किल बीजेपी के मौजूदा सांसद और देवगढ़ के राजा नितेश देब बन गए हैं जिनका टिकट काटकर बीजेपी ने धर्मेंद्र को उतारा है। नितेश देब की पत्नी अरुंधति देवी और बेटा अमन देब बीजेडी में शामिल हो गए हैं। पटनायक ने अरुंधति को संबलपुर विधानसभा से टिकट भी दे दिया है। ऐसे में संबलपुर लोकसभा का फैसला इस बात से होगा कि पाला बदलने वाले किसका कितना नुकसान कर सके। 2019 में इस सीट पर 9 हजार के अंतर से बीजेपी ने बीजेडी को हराया था। धर्मेंद्र प्रधान ने मार्जिन बढ़ाने के लिए बीजेडी के कई नेताओं को भाजपा के पाले में लाया है लेकिन नितेश की पत्नी के बीजेडी में चले जाने से मुकाबला कांटे का हो गया है।
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