Hindi Newsओडिशा न्यूज़29 dead bodies unclaimed even after 2 months of Odisha train accident could not be identified

ओडिशा ट्रेन हादसे के 2 महीने बाद भी 29 लाशें लावारिश, नहीं हो पाई पहचान

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे में 294 लोगों की मौत हो गई थी। हादसे के दो महीने बाद भी 29 शवों की पहचान नहीं हो पाई है।

Himanshu Tiwari देबब्रत मोहंती, भुवनेश्वरTue, 1 Aug 2023 08:21 PM
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ओडिशा के बालासोर जिले के बहनागा बाजार स्टेशन पर ट्रेन दुर्घटना में 294 यात्रियों की मौत हो गई थी। हादसे के दो महीने बाद भी 29 शवों की अभी तक पहचान नहीं की जा सकी है। एम्स भुवनेश्वर के अधीक्षक, दिलीप परिदा ने कहा कि डीएनए मैच रिपोर्ट का अंतिम बैच इस सप्ताह रिलीज होगा, जिसमें से 2-3 नमूनों के मैच की उम्मीद है। परिदा ने कहा, "अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), भुवनेश्वर को दो चरणों में कुल 162 शव मिले थे, जिनमें से 133 शवों को डीएनए नमूना मिलान के बाद उनके रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों को सौंप दिया गया है।" उन्होंने कहा, "29 अज्ञात शवों को एम्स में कंटेनरों में रखा जा रहा है। केंद्र सरकार और ओडिशा सरकार तय करेगी कि उन शवों का क्या किया जाए, जो अंतिम चरण के बाद लावारिस रह जाएंगे।"

कंटेनर-आकार के फ्रीजर का दिया गया ऑर्डर

2 जून की शाम को ओडिशा के बालासोर जिले में बहनागा बाजार रेलवे स्टेशन के पास एक दुखद दुर्घटना में चेन्नई जाने वाली कोरोमंडल एक्सप्रेस, हावड़ा जाने वाली एसएमवीपी-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने से कम से कम 294 लोगों की मौत हो गई और 800 से अधिक घायल हो गए। दुर्घटना के कुछ दिनों बाद, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस या पैन कार्ड जैसे सत्यापित पहचान प्रमाणों के साथ शवों की पहचान करना काफी आसान था। लेकिन बिना पहचान प्रमाण वाले शवों या एक से अधिक दावेदार वाले शवों के मामले में, डीएनए सैंपलिंग को आधार बनाया गया। एम्स भुवनेश्वर ने शवों को शून्य से कम तापमान में रखने के लिए पारादीप बंदरगाह से कंटेनर-आकार के फ्रीजर का आदेश दिया ताकि किसी भी प्रकार के सड़न को रोका जा सके।

चुनौती भरा है शवों की पहचना करना

कई मामलों में, शवों के साथ पहचान प्रमाण जैसे आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, या अन्य सामान जैसे फोन, बैग या अन्य पहचान योग्य वस्तुएं होती थीं। जबकि इन 29 लाशों से जुड़े कोई पहचान प्रमाण या सामान नहीं मिले। ऐसे में पीड़ितों की पहचान करना चुनौतीपूर्ण हो गया। आधार कार्ड या ड्राइविंग लाइसेंस जैसे सत्यापित पहचान प्रमाणों के साथ शवों की पहचान का मामला अधिक सीधा था। बिना पहचान प्रमाण वाले शवों के मामले में, पहचान सावधानी से की जानी थी।

एम्स के अधिकारियों ने कहा कि डीएनए नमूने की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि मौत के बाद नमूने कितनी जल्दी लिए गए थे और क्या वे दाढ़ के दांत जैसे हिस्सों से लिए गए थे। एक अधिकारी ने कहा, "लाशों के सड़ने अवस्था में शवों का डीएनए अनुक्रमण एक समस्या है। चूंकि शव त्रासदी के 30 घंटे से अधिक समय बाद प्राप्त हुए थे, जिनमें से अधिकांश शव डिकंपोज्ड हो चुके थे, फोरेंसिक प्रयोगशालाओं के लिए डीएनए प्रोफाइलिंग करना बहुत मुश्किल काम था। नमूनों की गुणवत्ता उतनी अच्छी नहीं थी।"

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