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हिन्दी फिल्मों में अंग्रेजी डकार

अंग्रेजी की टांग खींचते किरदार दर्शकों को बेहद पसंद आते रहे हैं। बोल बच्चन में जब अजय देवगन घसीटमार अंग्रेजी बोलते हैं तो लोगों को मजा आता...

Admin Sat, 6 Oct 2012 07:05 AM
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अंग्रेजी की टांग खींचते किरदार दर्शकों को बेहद पसंद आते रहे हैं। बोल बच्चन में जब अजय देवगन घसीटमार अंग्रेजी बोलते हैं तो लोगों को मजा आता है। वैसे फिल्मों में ऐसी अंग्रेजी बोलने का चलन बहुत पुराना है।

शुरु से ही आती रही अंग्रेजी
वैसे गौर करें तो पाएंगे कि अपनी फिल्मों में टूटी-फूटी अंग्रेजी का इस्तेमाल करके दर्शकों को हंसाने की कोशिशें दशकों पहले शुरू हुई थीं और आज तक यह परंपरा बदस्तूर चली आ रही है। काफी पहले गोप, घोरी, दीक्षित, टुनटुन, जॉनी वॉकर जैसे हास्य-कलाकारों को इस तरह के संवाद दिए जाते थे जिनमें अंग्रेजी का कुछ ऐसा घालमेल होता था जिन्हें सुन कर दर्शकों की हंसी निकल जाती थी। फिर धीरे-धीरे यह काम नायकों के जिम्मे आ गया। ‘जब जब फूल खिले’ में नायिका नंदा हीरो शशि कपूर को इंग्लिश सिखाती है। बाद में इसी फिल्म पर आधारित ‘राजा हिन्दुस्तानी’ में राजा बने आमिर खान की गलत अंग्रेजी को सुधारते-सुधारते शहर से आई मेमसाहब करिश्मा कपूर उससे प्यार कर बैठती है।

हंसाती रही फनी अंग्रेजी
अंग्रेजी का फनी इस्तेमाल करने वाली फिल्मों में जहां अमिताभ बच्चन की ‘नमक हलाल’ का नाम तुरंत याद आता है जिसमें अमिताभ रणजीत को बोलते हैं-आई कैन टॉक इंगलिश, आई कैन वॉक इंगलिश, बिकॉज इंगलिश इज वैरी फनी लेंगुएज। अमिताभ का वह सीन भी काफी चर्चित है जब वह ‘अमर अकबर एंथोनी’ में एक अंडे में से निकलते हैं और फर्राटेदार अंग्रेजी बोलते हैं। इधर ‘बोल बच्चन’ में अजय देवगन अपने हर हिन्दी संवाद के बाद उसका गलत अंग्रेजी तजुर्मा बोलते हैं तो दर्शक ठहाके लगाए बिना नहीं रह पाते। बानगी देखिए-बगल में छोरा और शहर में ढिंढोरा-ब्वॉय अंडर आर्म पिट एंड हाइपर सिटी इन न्वॉयस पॉल्यूशन। या फिर तुझे पाकर मेरी छाती और भी चौड़ी हो गई-माई चेस्ट बिकम ब्लाउज। ‘जोकर’ में टीचर बने असरानी को ताबड़तोड़ गलत अंग्रेजी बोलते हुए दिखाया गया। ‘राम लखन’, ‘सिंह इज किंग’ जैसे कई उदाहरण इस जगह मौजूद हैं। पिछले दिनों आई अनुराग कश्यप की ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर 2’ में ‘डेफनेट का मतलब क्या होता है-डेफ यानी बहरा और नेट यानी जाली’ वाला सीन भी कमाल का था।

फर्क दिखाती रही अंग्रेजी
अंग्रेजी जानने और न जानने को संस्कृतियों के फर्क के तौर पर भी हमारी फिल्मों में दिखाया गया। मनोज कुमार की ‘पूरब और पश्चिम’ इसका बेहतरीन उदाहरण है। इससे प्रेरित होकर बनी अक्षय कुमार वाली ‘नमस्ते लंदन’ में भी यह बात उभारी गई। इधर अमेरिका जाने की लालसा दिखाने वाली ‘फंस गए रे ओबामा’ जिसमें अमेरिका जाने को बेताब मनु ऋषि इंग्लिश कोचिंग क्लास में अंग्रेजी सीखने जाता है और टीचर उसे जबर्दस्त गलत अंग्रेजी में डांटता है कि- टीचर एंटर, नो नोटिस, फुल इंसल्टी। इंग्लिश स्पीकिंग नॉट ए चिल्ड्रन प्ले। ‘वेकअप सिड’ में रणबीर कपूर की मां बनीं सुप्रिया पाठक अंग्रेजी सीखने की कोशिश करती हैं ताकि उनके बेटे को अच्छा लगे।

मजबूरी है दोस्त
पहले तो नहीं लेकिन इधर करीब दो दशक से यह चलन खासतौर पर उभरा है कि हिन्दी फिल्मों में हिन्दी बोल कर हिन्दी के दर्शकों की जेब से निकलने वाले पैसे से रोटी खाने वाले ज्यादातर कलाकार आम बातचीत में अंग्रेजी का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। मीडिया इनसे हिन्दी में सवाल पूछता है तो जवाब अंग्रेजी में मिलता है। यहां तक कि टीवी के किसी हिन्दी शो में भी यह हिन्दी बोलने से कतराते हैं। ऐसे में अमिताभ बच्चन जैसे चंद ही लोग हैं जो हिन्दी में पूछे जाने वाले सवाल का उससे भी ज्यादा अच्छी हिन्दी में जवाब देते हैं। आपको जान कर हैरानी होगी कि पर्दे पर हिन्दी डायलॉग बोलने वाले ज्यादातर कलाकारों की डायलॉग शीट इंगलिश अक्षरों यानी रोमन में लिखी जाती है।

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