रेलवे और MCD को रोकिए, पेड़ों को कटने से बचा लीजिए; SC में किसने दाखिल की याचिका
दिल्ली में पेड़ काटे जाने का एक और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। शुक्रवार को कोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया। याचिका में रेलवे और दिल्ली सरकार को मध्य दिल्ली के इंद्रपुरी में फुट ओवरब्रिज के निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से रोकने की मांग की गई है।
दिल्ली में पेड़ काटे जाने का एक और मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। शुक्रवार को कोर्ट याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गया। याचिका में रेलवे और दिल्ली सरकार को मध्य दिल्ली के इंद्रपुरी में फुट ओवरब्रिज के निर्माण के लिए पेड़ों को काटने से रोकने की मांग की गई है। जस्टिस अभय एस ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने इंद्रपुरी रेजिडेंट्स एसोसिएशन द्वारा दायर अर्जी पर सुनवाई करने पर सहमति जताई है। अर्जी के अनुसार, फुट ओवरब्रिज के निर्माण के लिए 15-20 पूर्ण विकसित पेड़ों को काटना पड़ेगा।
पीठ में जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल है। पीठ ने मामले की सुनवाई शुक्रवार को कार्यकर्ता और वकील एमसी मेहता द्वारा दायर जनहित याचिका (पीआईएल) के साथ तय की, जिसमें दिल्ली के हरित क्षेत्र को बढ़ाने के मुद्दे पर विचार किया जा रहा है। रेल मंत्रालय ने 2023 में फुट ओवरब्रिज के लिए एक टेंडर जारी किया था, जिसके अनुसार इंद्रपुरी रेलवे हॉल्ट पर निर्माण से मौजूदा फुट ओवरब्रिज की चौड़ाई 6.1 मीटर तक बढ़ जाएगी। ऐसा होने से दोपहिया वाहनों की आवाजाही आराम से हो सकेगी।
लोगों का कहना है कि ऐसा दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायिक आदेश को दरकिनार करने के लिए किया जा रहा है, जो इंद्रपुरी से नारायणा तक दोपहिया वाहनों के इस्तेमाल के लिए मौजूदा जीर्ण-शीर्ण फुट ओवरब्रिज की अनुमति नहीं देता है। निवासियों ने आवेदन में कहा है कि इस साल अगस्त में दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) ने शीर्ष अदालत की अनिवार्य अनुमति के बिना रेलवे को अतिरिक्त भूमि ट्रांसफर करने की मंजूरी दे दी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि पेड़ों की कटाई के लिए उनकी संख्या निर्धारित करने का काम शुरू हो गया है और इस पर तत्काल सुनवाई की जरूरत है।
आवेदन में कहा गया है, 'मौजूदा पेड़ों की सुरक्षा के लिए संबंधित अधिकारियों की निष्क्रियता का आवेदक और आम जनता के स्वास्थ्य और कल्याण पर सीधा प्रभाव पड़ता है, जिसमें स्वच्छ और स्वस्थ पर्यावरण के उनके अधिकार का उल्लंघन भी शामिल है, जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन के मौलिक अधिकार में निहित है।'