दिल्ली में बीच सड़क तड़पता रहा युवक, तमाशबीन बनकर देखते रहे 150-200 लोग; मदद की आस में चली गई जान
दिल्ली के अलीपुर में इंसानियत को शर्मसार करने वाली घटना घटी। एनएच-44 पर एक युवक को एक वाहन ने टक्कर मार दी। वो 15 मिनट तक सड़क पर मदद के लिए गुहार लगाता रहा लेकिन किसी ने मदद नहीं की।
अलीपुर में एनएच-44 पर एक युवक को एक वाहन ने टक्कर मार दी। वह करीब 15 मिनट तक सड़क पर मदद के लिए गुहार लगाता रहा। मौके पर काफी लोगों की भीड़ जमा हो गई, लेकिन उनमें से किसी ने उसकी मदद नहीं की और न पुलिस को फोन किया। हरियाणा की ओर जा रहा एक कार चालक उसे नजदीकी अस्पताल ले गया, लेकिन एक से दूसरे अस्पताल में रेफर करते-करते युवक ने दम तोड़ दिया।
पुलिस अधिकारी ने बताया कि 18 वर्षीय अतुल परिवार के साथ फर्श बाजार, शाहदरा इलाके में रहता था। 3 अक्तूबर की रात करीब नौ बजे वह बाइक से जा रहा था। नरेला से सोनीपत जाने वाले एनएच-44 पर निर्माणाधीन इमारत के सामने एक अज्ञात वाहन ने उसे कुचल दिया। उसके दोनों पैरों में गंभीर चोट आई, लेकिन वह होश में था।
मौके पर भारी संख्या में लोग जमा हो गए, लेकिन किसी ने उसकी मदद नहीं की। रिंकू नाम के शख्स ने अपनी गाड़ी से उसे सत्यवादी राजा हरिशचंद्र अस्पताल पहुंचाया। रिंकू ने पुलिस बयान में बताया कि वह सोनीपत की ओर जा रहा था। रास्ते में सड़क पर करीब 150 से 200 लोग जमा थे। उसने गाड़ी रोकी और देखा तो एक घायल मदद के लिए चिल्ला रहा था। इसके बाद रिंकू ने उसे अपनी गाड़ी से अस्पताल पहुंचाया। वहां से गुजर रहे हरियाणा रोडवेज के एक बस चालक ने हादसे की सूचना पुलिस को दी। जिसके बाद पुलिस मौके पर पहुंची।
ट्रॉमा केयर पर राष्ट्रीय कानून बने
सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिए ट्रॉमा केयर पर राष्ट्रीय कानून बनाए जाने की जरूरत है। सेव लाइफ फाउंडेशन ने भारत में सड़क हादसों के आंकड़ों और दुनियाभर में मौजूद ट्रॉमा केयर सुविधाओं और कानूनों के अध्ययन के आधार पर इसका दावा किया है। संस्था का कहना है कि भारत में वर्ष 2021 में लगभग चार लाख आकस्मिक मौतें हुईं। इनमें से अधिकांश सड़क दुर्घटनाओं के चलते हुईं।
वर्ष 2017 से 2021 के बीच भारत में सड़क दुर्घटनाओं के चलते सात लाख लोगों को खो दिया गया। फाउंडेशन के मुताबिक गृह मंत्रालय की 2020 में जारी रिपोर्ट में भी कहा गया है कि सु-व्यवस्थित ट्रॉमा केयर प्रणालियां ऐसी मौतों को 20 से 25 फीसदी और गंभीर रूप से होने वाली विकलांगताओं को 50 फीसदी से भी ज्यादा कम करने में मदद करती हैं।
कहीं भी करा सकते हैं भर्ती
दिल्ली सरकार ने 2019 में सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों को बचाने के लिए प्रोत्साहन को ‘फरिश्ते दिल्ली के’ योजना शुरू की थी। इस योजना के तहत घायल को किसी भी निजी या सरकारी अस्पताल में भर्ती कर सकते हैं। उसका खर्च सरकार उठाएगी। अगर सड़क दुर्घटना के एक घंटे के भीतर पीड़ित व्यक्ति को अस्पताल ले जाया जाता है तो उसके बचने की संभावना 70-80 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
एक से दूसरे अस्पताल में रेफर करते रहे
घायल को राहगीर ने शुरू में अलीपुर के नजदीक ही सिंघु बॉर्डर के पास स्थित सत्यवादी राजा हरिशचंद्र अस्पताल में भर्ती कराया था, लेकिन यहां उपचार की सुविधाओं की कमी थी। इसके बाद सरकारी एंबुलेंस से उसे रोहिणी स्थित बीएसए अस्पताल में रेफर कर दिया गया। इन दोनों अस्पतालों के बीच की दूरी करीब 21 किलोमीटर है। यहां भी उपचार के लिए सुविधाएं नहीं होने के चलते उसे फिर से एंबुलेंस में आरएमएल अस्पताल में भेज दिया गया। रोहिणी के बीएसए अस्पताल से आरएमएल की दूरी करीब 18 किलोमीटर की है। इस तरह जिंदगी और मौत से जूझ रहा युवक करीब 41 किलोमीटर तक भटकता रहा, पर उसे उपचार नहीं मिल पाया। अगर उसे सही समय पर सही इलाज मिल जाता तो शायद उसकी जान बच सकती थी।
आरएमएल में युवक ने दम तोड़ा
पुलिस मौके पर पहुंची तो पता चला कि घायल को अस्पताल में सर्जरी नहीं होने के चलते बीएसए रोहिणी के लिए रेफर किया गया है। पुलिस टीम रोहिणी स्थित बीएसए अस्पताल पहुंची तो पता चला कि घायल को नई दिल्ली स्थित आरएमएल अस्पताल में रेफर किया गया है। मामले की जांच कर रहे अधिकारी तड़के करीब 5 बजे आरएमएल अस्पताल पहुंचे तो पता चला कि घायल अतुल की मौत हो चुकी है। इसके बाद पुलिस ने केस दर्ज कर जांच शुरू की। हादसे के बाद से वाहन चालक फरार हो गया था। बहरहाल पुलिस उसकी तलाश कर रही है।