आठ बार आया हार्ट अटैक, अब ट्रांसप्लांट खेलों में दम दिखा रहे संदीप; जानें कैसे बदली जिंदगी?
एम्स दिल्ली में रविवार को आयोजित हुए प्रत्यारोपण खेलों में तमाम खिलाड़ियों ने भाग लिया। इन्हीं में शामिल एक खिलाड़ी हैं संदीप जिन्हें आठ बार दिल का दौरा पड़ चुका है। अब पूरी तरह फिट हैं जानें कैसे...
पांच साल पहले जब तक मेरा हृदय प्रत्यारोपण नहीं हुआ था तब तक मुझे आठ बार दिल का दौरा पड़ा। मेरा वजन 110 किलो हो गया था। दो छोटी बेटियां थीं जो कहती थीं कि पापा गोदी में उठा लो लेकिन कमजोरी की वजह से मैं ऐसा नहीं कर पाता था। अस्पतालों के चक्कर लगाकर थक चुका था, कुछ कदम चलने पर ही सांस फूलने लगती थी। एम्स में मेरा हृदय प्रत्यारोपण कराने के बाद अब मैं आम आदमी की तरह ट्रांसप्लांट खेलों में बैडमिंटन खेल रहा हूं। अब तैयारी कर रहा हूं कि जल्द ही विश्व प्रत्यारोपण खेलों में भारत की तरफ से खेलने के मौका मिले। यह कहना है दिल्ली के रहने वाले 40 वर्षीय संदीप मल्होत्रा का। वह रविवार को एम्स दिल्ली में आयोजित प्रत्यारोपण खेलों में हिस्सा लेने आए थे।
अंग प्रत्यारोपण करा चुके करीब 50 लोगों ने लिया हिस्सा
संदीप ने बताया कि साल 2018 में किसी परिवार ने अपने किसी सगे के ब्रेन डेड घोषित होने के बाद अंगदान का फैसला किया था। इसके बाद एम्स में दिल प्रत्यारोपित किया गया। अब वे कुछ दवाओं के साथ स्वस्थ्य जिंदगी जी रहे हैं। एम्स में रविवार को प्रत्यारोपण करा चुके लोगों के लिए बैडमिंटन समेत कई इंडोर खेलों का आयोजन किया इसमें अंग प्रत्यारोपण करा चुके करीब 50 लोगों ने हिस्सा लिया। इस कार्यक्रम का मकसद अंगदान को बढ़ावा देना और अंग प्राप्त करने के इंतजार में बैठे लोगों को हौसला देना था।
कई खिलाड़ी विदेशों में कर चुके हैं नाम
कार्यक्रम में एम्स के निदेशक डॉक्टर एम श्रीनिवासन बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। एशियन पैरा चैंपियनशिप में जेवलिन थ्रो में स्वर्ण पदक जीत चुके नीरज यादव बतौर विशेष अतिथि उपस्थित हुए। कार्यक्रम के दौरान आस्ट्रेलिया में हुई विश्व प्रत्यारोपण प्रतियोगिता में पदक जीत चुके लोगों ने भी हिस्सा लिया।
पांच साल पहले दिल का प्रत्यारोपण करा चुके राहुल ने आम लोगों को हराया
30 वर्षीय राहुल प्रजापति का साल 2018 में एम्स में दिल का प्रत्यारोपण हुआ था। उन्होंने विश्व प्रत्यारोपण खेलों में इस साल कांस्य पदक जीता है। उनकी सबसे बड़ी बहन की 2002 में 14 साल की उम्र में हृदय गति रुकने से मृत्यु हो गई थी। प्रजापति ने कहा कि जब हमें पता चला कि मैं भी हृदय रोग से पीड़ित हूं तो परिवार डर गया था। प्रजापति हर सुबह इंदिरा गांधी स्टेडियम में एक कोच से प्रशिक्षण ले रहे हैं। अब वे आने वाले खेलों की तैयारी कर रहे हैं। रविवार को एम्स में हुए बैडमिंटन मैच में उन्होंने कई फिट लोगों को पराजित किया।
प्रत्यारोपण करा चुके लोगों ने एवरेस्ट भी जीता
राहुल का इलाज करने वाले एम्स के हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर संदीप सेठ के अनुसार, प्रजापति के 'सकारात्मक दृष्टिकोण' ने उन्हें तेजी से ठीक होने और अपनी दैनिक दिनचर्या फिर से शुरू करने में मदद की। एम्स में प्रत्यारोपण कराने वाले मरीजों की फिजियोथेरेपी कराने वाले डॉक्टर सचिन भूषण ने बताया कि प्रत्यारोपण करा चुके लोगों ने दी दुनिया भर में प्रेरणादायक काम किए हैं। एक महिला ने प्रत्यारोपण के बाद माउंट एवरेस्ट को चोटी को भी फतेह किया है। कई लोगों ने मैराथन दौड़ में भी हिस्सा लिया है।
उत्तर भारत में कम हो रहे प्रत्यारोपण
एम्स के हृदय रोग विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर अंबुज रॉय ने बताया कि दक्षिण भारत में उत्तर भारत के मुकाबले अधिक प्रत्यारोपण होते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है लोगों में अंगदान के प्रति जागरूकता की कमी है। दक्षिण भारत में कई सोसाइटी बनी हुई हैं जो ऐसी जागरूक करने वाली गतिविधियां कराती हैं। एम्स में ट्रांसप्लांट खेल भी अब लोगों को अच्छी तरह आंगदान के प्रति जागरूक करेंगे।
क्यों विख्यात है एम्स
एम्स में प्रत्यारोपण का खर्च लगभग डेढ़ लाख रुपए आता है क्योंकि यहां कई तरह की सरकारी योजनाओं का लाभ मिलता है। निजी अस्पतालों में इसका खर्च 20 लाख से भी अधिक हो जाता है। एम्स में अभी तक 80 से ज्यादा हृदय प्रत्यारोपण हुए हैं। देश का पहला हृदय प्रत्यारोपण भी साल 1994 में एम्स में हुआ था। इससे पहले दुनिया का पहला हृदय प्रत्यारोपण 1978 में दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में हुआ था।