रिश्वत दो और जल्द इलाज पाओ; दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में इस तरह चल रहा काला कारोबार
सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक, अगर डॉक्टर को बतौर रिश्वत 20 हजार नहीं मिलते थे तो गर्भवती महिला को वार्ड से बाहर निकाल दिया जाता था। आरएमएल के क्लर्क व अन्य कर्मचारी धमकाते थे।
दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में कमीशनखोरी-रिश्वतखोरी का धंधा लंबे समय से चल रहा है। कहीं इलाज के नाम पर तो कहीं दवा और मेडिकल उपकरण उपलब्ध कराने के लिए वसूली हो रही है। राम मनोहर लोहिया अस्पताल से पहले भी कई बार इस तरह के मामले सामने आ चुके हैं। कार्रवाई तो हुई, लेकिन यह काला कारोबार रुका नहीं।
पिछले साल मार्च में सीबीआई ने सफदरजंग अस्पताल के एक न्यूरोसर्जन डॉ. मनीष रावत को गिरफ्तार किया था। उन पर कथित तौर पर मरीजों को एक विशेष दुकान से अत्यधिक कीमतों पर सर्जिकल उपकरण खरीदने के लिए मजबूर करने का आरोप था। मामला दस्तावेजों की जांच के स्तर पर है। आरोपों के मुताबिक, अन्य आरोपियों के बैंक खाते में एक निजी व्यक्ति के माध्यम से गिरफ्तार हुए डॉक्टर के मरीजों से तीन अलग-अलग मामलों में करीब 1.45 लाख रुपये की रिश्वत ली गई थी। अधिकारियों ने कहा कि न्यूरोसर्जन के निर्देश पर ही ऐसा किया जा रहा था। वहीं, सफदरजंग अस्पताल के पास स्थित एक निजी अस्पताल के डॉक्टरों को भी कमीशनखोरी के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका है।
एम्स में कर सकते हैं शिकायत
एम्स ने कुछ दिन पहले मरीजों की सुविधा के लिए वॉट्सऐप हेल्पलाइन नंबर (9355023969) जारी किया था। यदि एम्स में किसी मरीज से ओपीडी कार्ड बनवाने, जल्दी इलाज व जांच कराने का झांसा देकर कोई रिश्वत की मांग करता है तो मरीज या तीमारदार इस नंबर पर शिकायत कर सकते हैं। एम्स की प्रोफेसर डॉक्टर रीमा दादा ने बताया कि एम्स का सुरक्षा विभाग मरीजों की शिकायत पर त्वरित जांच और कार्रवाई करेगा। दलालों के पकड़े जाने पर कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी। प्राथमिक स्तर पर शिकायत सही पाए जाने पर कर्मचारियों के खिलाफ भी निलंबन और बर्खास्तगी की कार्रवाई की जाएगी। दूसरी ओर, ‘हिन्दुस्तान’ संवाददाता ने गुरुवार को इस हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क किया तो वह सक्रिय पाया गया।
आरएमएल का नंबर बंद
भ्रष्टाचार की शिकायत के लिए राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भी शिकायत सेल है। अस्पताल की वेबसाइट पर इसका नंबर उपलब्ध है, लेकिन हेल्पलाइन नंबर 011-23404219 पर कॉल करने पर यह अमान्य नंबर बताया गया।
...तो भर्ती मरीज को वार्ड से निकाल देते
सीबीआई की एफआईआर के मुताबिक, अगर डॉक्टर को बतौर रिश्वत 20 हजार नहीं मिलते थे तो गर्भवती महिला को वार्ड से बाहर निकाल दिया जाता था। आरएमएल के क्लर्क व अन्य कर्मचारी धमकाते थे। लेन-देन सुचारु ढंग से हो इसके लिए उन्होंने यूपीआई से भुगतान का विकल्प भी दिया था।
ऐसे होता है रिश्वतखोरी का खेल
सामान पर कमीशन : ऐसे धंधों में लिप्त डॉक्टर सर्जरी में इस्तेमाल होने वाले उपकरण और दवाएं जैसे इंप्लांट व स्टेंट को अपनी पसंद की कंपनी या मेडिकल स्टोर से लाने के लिए कहते हैं। इनकी कीमत बाजार में मौजूद मेडिकल उपकरणों से बहुत अधिक वसूली जाती है और फिर डॉक्टर को संबंधित विक्रेता से इसका कमीशन मिलता है।
दिन के हिसाब से रेट तय : अस्पताल का क्लर्क संजय 100 रुपये में एक दिन के आराम का मेडिकल सर्टिफिकेट चुटकी बजाते ही बनवा देता था। यही नहीं उसका रेट चार्ट फिक्स था। एक दिन के 100 रुपये तय थे। एजेंसी की एफआईआर में ऐसे चार मौके दिखाए गए हैं जब क्लर्क संजय ने 700 रुपये में सात दिन, 300 रुपये में तीन और 500 रुपये में पांच दिन का मेडिकल सर्टिफिकेट बनवाया।
मनचाहे दिन अपॉइंटमेंट : सीबीआई के मुताबिक, क्लर्क भुवाल जायसवाल डॉक्टरों के अपॉइंटमेंट दिलाने के नाम पर भी रिश्वत वसूलता था। अस्पताल में मनचाहे दिन डॉक्टर का अपॉइंटमेंट पाने के लिए सिर्फ भुवाल की जेब गर्म करनी होती है। भुवाल रिश्वत लेने के बाद मरीजों को अपॉइंटमेंट के साथ-साथ अन्य सुविधाएं भी देता था।
बेड या तारीख दिलवाने के नाम पर लेते थे रुपये
राम मनोहर लोहिया अस्पताल में मरीजों को बेड दिलाने या डॉक्टर का समय दिलाने, सर्जरी या जांच की तारीख कम कराने के लिए भी दलाल रुपये लेते हैं और ऊपर पहुंचाते हैं। सब तय करने के बाद मरीज का काम किया जाता है।
इसलिए झांसे में आ जाते हैं मरीज
एम्स की ओपीडी में रोजाना करीब 13 हजार मरीज, सफदरजंग में 10 हजार और राम मनोहर लोहिया में करीब सात हजार मरीज इलाज के लिए पहुंचते हैं। इस वजह से ओपीडी पंजीकरण के लिए भी मरीजों और तीमारदारों को जूझना पड़ता है। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, एमआरआई जांच व सर्जरी में भी लंबी वेटिंग है, जिस कारण अस्पताल में दलालों की सक्रियता बड़ी समस्या रही है। जल्दी इलाज कराने के नाम पर दलाल मरीजों से रुपयों की मांग करते हैं। मरीज भी झांसे में आ जाते हैं। इसके अलावा विभिन्न डायग्नोस्टिक लैब संचालकों और उनके कर्मचारी सक्रिय होते हैं, जो जल्दी जांच कराने का हवाला देकर मरीजों को बाहर निजी लैब में जांच कराने के लिए ले जाते हैं। इसके अलावा निजी दवा स्टोर के दलाल भी सक्रिय होते हैं।