Hindi Diwas: भारत को जानने के लिए हिंदी सीख रहे विदेशी, खूब हो रहा प्रचार-प्रसार
भारत की संस्कृति, धर्म और सामाजिक परिवेश को जानने के लिए विदेशी हिंदी सीख रहे हैं। इसकी सफलता को देखकर तेल अवीव विश्वविद्यालय में भी वर्ष 2000 में हिंदी पढ़ाने का फैसला लिया गया।
भारत की संस्कृति, धर्म, भाषा और भारत को समझने के लिए विदेश के लोग हिंदी सीख रहे हैं। यहां की विविधता में एकता और लोकतांत्रित मूल्य विदेशी लोगों को भी हिंदी सीखने की चाहत पैदा कर रहे हैं।
तेल अवीव विश्वविद्यालय इजरायल में हिंदी के शिक्षक डा.गेनादी श्लोम्पेर का कहना है कि इज़रायल में हिंदी न तो सड़कों पर गूंजती है, हिंदी में कोई अख़बार-पत्रिका नहीं निकलते, किताबें प्रकाशित नहीं होतीं, साहित्य नहीं रचता, फिर भी हिंदी की लोकप्रियता देखिए।
उन्होंने कहा कि मैं बहुत सालों से हिंदी का अध्यापन करता आया हूं। मुझे यरुशलम के हिब्रू विश्वविद्यालय में मेरा पहला हिंदी पाठ याद है। यह 27 साल पहले की बात है! और इस पूरे दौर में हिंदी की पढ़ाई किसी भी अंतराल के बिना जारी रही, एक साल के लिये, एक महीने के लिये, एक दिन के लिये भी नहीं रुकी। जिस देश में हिंदी का सरकारी प्रयोग या रोजमर्रा जिंदगी में चलन नहीं होता, वहां लगातार 27 साल से हिंदी का पठन-पाठन एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। तो हिंदी में कौन सा चुंबक है जो विदेशी नव-युवकों और युवतियों को अपनी तरफ खींचता है? वह है आज के भारत के बारे में जानकारी पाने की इच्छा, और निजी संपर्क स्थापित करने की जरूरत।
अगर इसमें भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति का करिश्मा जोड़ें, तो कारण एकदम स्पष्ट हो जाता है। 1996 में मैंने हिब्रू विश्वविद्यालय में हिंदी का पहला कोर्स चलाया, तो इसकी सफलता को देखकर तेल अवीव विश्वविद्यालय में भी सन 2000 में हिंदी पढ़ाने का निश्चय किया गया। आख़िरकार मुझे यरुशलम विश्वविद्यालय को छोड़ना पड़ा, और वहां हिंदी शिक्षण की ज़िम्मेदारी एक नौजवान अध्यापिका को दी गई। एक साल बाद ख़ैफ़ा विश्वविद्यालय में एशिया अध्ययन का संकाय खुला, जिसके पाठ्यक्रम में भारत और हिंदी के अध्ययन को भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला। यह खुशी की बात है कि उच्च शिक्षा की व्यवस्था में सारे संकटों के बावजूद इज़रायल में तीन विश्वविद्यालयों में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन जारी है।
इटली निवासी छात्र स्टेफानो इन दिनों भारत में हिंदी सीख रहे हैं और यहां एक दूतावास में कार्यरत हैं। स्टेफानो बताते हैं कि मुझे इस देश से लगाव है। यहां की संस्कृति, धर्म, भाषा के प्रति मेरी जिज्ञासा है जिसके कारण मैंने हिंदी सीखी है। वह हिंदी में पारंगत नहीं हैं लेकिन उनकी बातचीत से इस भाषा और भारत के प्रति उनका प्रेम दिखाई देता है।
देश की विविधतापूर्ण संस्कृति से निकट संवाद का माध्यम है हिंदी
गंगा सहाय मीणा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं, अंकारा विश्वविद्यालय (तुर्की) और तुरीन विश्वविद्यालय (इटली) में भी यह विजिटिंग प्रोफेसर हैं। उनका कहना है कि
भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति पूरे विश्व के लिए आकर्षण का केन्द्र है और हिन्दी इस संस्कृति से निकट संवाद का माध्यम है।। विदेशों में हिन्दी ठीक उसी प्रकार पढाई जाती है जैसे भारत में जर्मन, फ्रेंच, स्पेनिश, रशियन या कोई अन्य विदेशी भाषा। विदेशियों की हिन्दी में रुचि इस बात पर निर्भर करती है कि उस देश के नागरिकों की नजर में भारत की अंतर्राष्ट्रीय हैसियत कैसी है, भारत में और हिन्दी में रोजगार की क्या संभावनाएं हैं तथा उनके देश के भारत के साथ संबंध कैसे हैं। साथ ही विद्यार्थियों की भारत और हिन्दी में व्यक्तिगत रुचि भी उन्हें इस ओर आकर्षित करती है। बहुत सारे विद्यार्थी दक्षिण एशिया के समाज और राजनीति के बारे में अध्ययन के क्रम में हिन्दी सीखते हैं। अपने देश की विदेश सेवा के तहत भारत में सेवाएं देने के इच्छुक विद्यार्थी भी हिन्दी पढ़ते हैं। भारत सरकार विदेशी विश्वविद्यालयों में हिन्दी अध्ययन के लिए जितनी पीठें स्थापित करेगी और स्थापित पीठों का सुचारु संचालन करेगी, उससे विदेशियों के हिन्दी अध्ययन में निरंतरता आएगी और इससे हिन्दी के प्रति आकर्षण भी बढ़ेगा। भारत के विश्वविद्यालय शिक्षा मंत्रालय के सहयोग से विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ स्वतंत्र समझौते (एमओयू) कर हिन्दी अध्ययन के दायरे को बढाने में मदद कर सकते हैं।
विदेशी धरती पर हिंदी का प्रचार प्रसार कर रहे अनूप भार्गव
अनूप भार्गव न्यूजर्सी में आईटी प्रोफेशनल और कवि हैं लेकिन हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए विगत 30 वर्ष से कार्यरत हैं। हिंदी के प्रति उनका प्रेम ही है कि वह विश्व के कई देशों में इसके प्रचार प्रसार के लिए कार्यरत हैं। वह बताते हैं कि हम लोग हिंदी की पत्रिका अनन्य पत्रिका स्वत: प्रयास से संचालित कर रहे हैं। यह कई देशों में प्रकाशित होती है। वह बताते हैं कि हमने यहां कवि सम्मेलन की प्रक्रिया शुरू की। हिंदी के प्रचार प्रसार में हमने तकनीकी का प्रयोग किया। भारतीय लोगों को यहां हिंदी पढ़ाने में हम काफी प्रयास हो रहे हैं और वह सफल हो रहे हैं। यहां कई स्वयं सेवी संस्थाएं बच्चों को रविवार को हिंदी सिखाते हैं। मेरी पत्नी न्यूर्याक युनिवर्सिटी में हिंदी की प्रोफेसर हैं। हमने सर्वे किया था और पाया कि अमेरिका में 65 विश्वविद्यालय हैं जहां हिंदी पढ़ाई जाती है। इन विश्वविद्यालयों में अधिकांश भारतीय मूल के होते हैं और विदेशी मूल के भी छात्र होते हैं। हमने तीन साल पहले एक स्वयं सेवी समूह शुरू किया था हिंदी से प्यार है। इसको लेकर काफी सकारात्मक परिणाम है। अनन्य पत्रिका का संचालन भी न केवल अमेरिका बल्कि कई देशों से निकाली जाती है।
हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए आईसीसीआर कर रहा विशेष प्रयास
भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) विदेशों में हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए काफी कार्य कर रहा है। आईसीसीआर के चेयरमैन डा.विनय सहस्त्रबुद्धे ने बताया कि विदेशों में हिंदी के प्रशिक्षण के इच्छुक लोगों को सुविधा देने का काम आईसीसीआर लगातार करती आई है। उन्होंने बताया कि विदेशों में जो 37 केंद्र काम करते हैं वहां हिंदी व संस्कृति के पाठ्यक्रम चलते हैं। इसके लिए हमने इग्नू के साथ एक करार भी किया है। आईसीसीआर के महानिदेशक कुमार तुहिन ने बताया कि विदेशों में जो बच्चे अपनी कक्षाओं में हिंदी में बेहतर कर रहे हैं यानी पहला या दूसरा स्थान लाते हैं तो हमारी योजना है कि हम उनको भारत लाएं।