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डिलिवरी का खर्च उठाए दिल्ली सरकार, DNA रखें सुरक्षित; HC ने नाबालिग को क्यों नहीं दी गर्भपात की इजाजत

दिल्ली हाईकोर्ट ने 16 साल की नाबालिग लड़की को गर्भपात की अनुमति देने से मना कर दिया। हाईकोर्ट ने नाबालिग के प्रसव तक उसे एम्स में भर्ती करने और तमाम खर्च दिल्ली सरकार की ओर से उठाए जाने का निर्देश दिय

हेमलता कौशिक नई दिल्लीTue, 2 July 2024 07:18 AM
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16 साल की एक नाबालिग दुष्कर्म पीड़िता ने अपने पिता के माध्यम से दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की अनुमति देने की गुहार लगाई। उच्च न्यायालय ने पीड़िता की मेडिकल जांच कराई तो पाया कि गर्भपात से बच्चे के साथ लड़की की जान को भी खतरा हो सकता है। हाईकोर्ट ने नाबालिग के प्रसव तक उसे एम्स में भर्ती करने और उसका तमाम खर्च दिल्ली सरकार की ओर से उठाए जाने का निर्देश दिए हैं।

न्यायमूर्ति मिनीषुष्करणा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान पाया कि पीड़िता के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। पीड़िता का परिवार इस समय दोहरी मार से गुजर रहा है। एक तरफ से उनकी बच्ची अपराध के कारण गर्भवती है, वहीं दूसरी तरफ बच्ची और उसके गर्भ में पल रहे बच्चे के लिए पोषण की आवश्यकता है। हालात यह हैं कि पीड़िता को गर्भपात की अनुमति दी नहीं दी जा सकती। ऐसे में पीठ ने बीच का रास्ता निकाला है। पीठ ने नाबालिग को तत्काल एम्स में भर्ती करने के आदेश दिया है। प्रसव तक पीड़िता वहीं रहेगी। पौष्टिक आहार, प्रसव पूर्व की देखभाल और सुविधाएं नाबालिग को दी जाएंगी। समय-समय पर मनोचिकित्सक नाबालिग की काउंसलिंग भी करेंगे।

जन्म के बाद बच्चे को गोद देने की इच्छा जताई

नाबालिग पीड़िता के पिता की तरफ से उनके अधिवक्ता ने पीठ के समक्ष कहा कि वह चाहते हैं कि नाबालिग का प्रसव एम्स में हो और बच्चे के जन्म के बाद वहीं से उसको गोद देने की प्रक्रिया संबंधित सरकारी विभाग की ओर से शुरू की जाए। पीठ ने इस मसले पर बहरहाल कोई टिप्पणी नहीं की है।

डीएनए लिया जाए पीठ

याचिकाकर्ता के वकील ने पीठ से एक और अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि नाबालिग का प्रसव कराने वाले डॉक्टर्स को निर्देश दिया जाए कि प्रसव के समय ही बच्चे का डीएनए संरक्षित कर लिया जाए, क्योंकि यह एक आपराधिक मामला है। इसलिए अदालत में मामले की सुनवाई के दौरान बच्चे का डीएनए साक्ष्य के तौर पर रिकार्ड पर रखा जा सकता है। पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील के इस आग्रह का स्वीकार कर लिया। पीठ ने डॉक्टरों को बच्चे के जन्म के समय उसका डीएनए कानून के हिसाब से संरक्षित करने को कहा है।

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