संबित पात्रा को राहत नहीं, केजरीवाल से जुड़े वीडियो में छेड़छाड़ की जांच करेगी पुलिस, याचिका खारिज
दिल्ली की एक सत्र अदालत ने भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा की उस पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मजिस्ट्रेट अदालत के पूर्व के आदेश को चुनौती दी गई थी। जानें क्या है मामला...
भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा को अदालत से राहत नहीं मिली है। दिल्ली की एक सत्र अदालत ने पात्रा (BJP leader Sambit Patra) की उस पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें नवंबर 2021 के मजिस्ट्रेट अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी। मजिस्ट्रेट अदालत ने अरविंद केजरीवाल से जुड़ी एक वीडियो में कथित छेड़छाड़ कर के उसे पोस्ट करने के मामले में संबित पात्रा के खिलाफ दिल्ली पुलिस को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया था।
आरोप है कि कृषि कानूनों (अब वापस ले लिए जा चुके) के समर्थन में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Delhi Chief Minister Arvind Kejriwal) की वीडियो में कथित तौर पर छेड़छाड़ की गई थी। हालांकि, सत्र अदालत ने पात्रा को थोड़ी राहत भी जरूर दी है। अदालत ने संबित पात्रा को आरोपी नामित किए बिना मामले की जांच करने का निर्देश दिया है।
सहायक सत्र न्यायाधीश धीरज मोर भाजपा नेता संबित पात्रा की पुनरीक्षण याचिका पर सुनवाई कर रहे थे। न्यायाधीश धीरज मोर की अदालत ने पुलिस की प्रारंभिक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसके अनुसार पात्रा (Sambit Patra) ने फर्जी वीडियो नहीं बनाई थी। यह भी कहा गया है कि पात्रा ने गैर-इरादतन इसे सोशल मीडिया में अपलोड किया था।
उल्लेखनीय है कि मजिस्ट्रेट अदालत ने आम आदमी पार्टी नेता आतिशी की याचिका को स्वीकार करते हुए आईपी एस्टेट थाने के प्रभारी (एसएचओ) को भारतीय दंड संहिता की प्रासंगिक धाराओं के तहत प्राथमिकी दर्ज करने और पात्रा के खिलाफ गहन जांच करने का निर्देश दिया था। आतिशी ने संबित पात्रा के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग करते हुए अदालत का रुख किया था।
आम आदमी पार्टी की नेता आतिशी का दावा था कि वीडियो में ऐसे बयान थे जो कृषि कानूनों पर दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के रुख के बिल्कुल विपरीत थे। इससे किसानों के मन में असंतोष पैदा हुआ था। सहायक सत्र न्यायाधीश मोर ने सोमवार को पारित एक फैसले में कहा कि निचली अदालत के आदेश में किसी प्रकार की गलती नहीं है।
सत्र अदालत ने अपने फैसले में कहा कि पात्रा की पुनरीक्षण याचिका इस निर्देश के साथ खारिज की जाती है कि उनके नाम को आरोपी के रूप में हटाकर आदेश का पालन किया जाना चाहिए। प्राथमिकी में नाम नहीं शामिल किए जाने के पात्रा के अनुरोध के संबंध में अदालत ने कहा कि इसमें संदेह नहीं है कि किसी व्यक्ति के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होना उसकी प्रतिष्ठा पर धब्बा है, जिसे पूरी तरह से बहाल नहीं किया जा सकता है, भले ही बाद में उसे जांच एजेंसी और अदालत द्वारा दोषमुक्त कर दिया जाए।