Anti Sikh Riots: जगदीश टाइटलर को कोर्ट का समन, सिख दंगा पीड़ितों का छलका दर्द; खौफनाक मंजर को किया याद
दिल्ली सिख दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को कोर्ट से समन जारी होने पीड़ित परिवारों ने खुशी जताई है। उनका कहना है कि 39 साल के लंबे संघर्ष के बाद न्याय की उम्मीद जगी है।
दिल्ली सिख दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को कोर्ट से समन जारी होने पीड़ित परिवारों ने खुशी जताई है। उनका कहना है कि 39 साल के लंबे संघर्ष के बाद न्याय की उम्मीद जगी है। बीच में सीबीआई द्वारा मामला बंद किए जाने के बाद लगा था कि अब न्याय नहीं मिल पाएगा, लेकिन अब कोर्ट ने मामले पर पुन संज्ञान लिया है। बुधवार को कोर्ट द्वारा समन जारी किए जाने बाद पीड़ितों परिवार से जुड़े विक्टिम ऑफ 1984 एंटी सिख राइट सोसायटी और दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की कार्यकर्ताओं ने खुशी जताई।
पहले राउज एवेन्यू कोर्ट के बाहर लोगों ने खुशी जताई। उसके बाद इंडिया गेट पर एकत्र होकर खुशी जताते हुए कोर्ट को धन्यवाद दिया। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाई, जिसमें कमेटी की तरफ से कहा गया कि लंबे संघर्षों के बाद न्याय की उम्मीद जगी है। इस लड़ाई में पूरी कौम ने एक साथ खड़े होकर पैरवी की है। अब हम आगे की रणनीति पर काम कर रहे हैं, क्योंकि टाइटलर अब गिरफ्तारी से बचने के लिए ऊपरी अदालत में अपील कर सकते हैं। वहां भी कमेटी पुख्ता तरीके से पैरवी करेगी।
कमेटी में पदाधिकारी और दंगा पीड़ित परिवार से जुड़े आत्मा सिंह लुबाना का कहना है कि जिन धाराओं में कोर्ट ने समन किया है, उनके तहत टाइटलर को जेल जाना ही पड़ेगा। यदि वे अपील करते हैं तो उनके लिए भी अहम वाजिब तरीके से अपना पक्ष रखेंगे। उधर, कमेटी के पूर्व अध्यक्ष व भाजपा नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने बयान जारी कर रहा कि यह पूरी कौम के लिए बड़ा दिन है। बहुत लंबा समय लगा, लेकिन इंसाफ के दरवाजे फिर से खुले हैं। उम्मीद करते हैं कि मामले में कड़ी से कड़ी सजा होगी। कोर्ट ने भी माना है कि पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं। इस मामले में देश की सरकार और न्यायपालिका धन्यवाद देता हूं।
बचने के लिए सिर के बाल खोल दिए थे
सुरजीत सिंह उन पीड़ित परिवारों में शामिल हैं, जिन्होंने 11 साल की उम्र में अपने पिता, तीन चाचा समेत सात सदस्यों को दंगों के बीच खो दिया था। उन्होंने बताया कि वे त्रिलोकपुरी में रहते थे। एक नवंबर की सुबह 10 बजे हमारी कॉलोनी के बाहर हजारों लोगों की भीड़ थी। मेरी मां ने मुझे दंगाइयों के डर से मेरी बहन के कपड़े पहना दिए थे और मेरे केस (सिर के बाल) खोल दिए थे, जिससे कि दंगाइयों को लगे कि यह लड़की है। यह कारण है कि आज मैं जिंदा हूं। मैंने अपनी आंखों से नेताओं को आते देखा, जो कॉलोनी के बाहर खड़े होकर भीड़ को उकसाते थे और लोगों के घरों से निकाल-निकालकर मारा जाता था।
दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गुरमीत सिंह कालका ने कहा, 'हमारे संघर्ष के दौरान आरोपियों को बचाने की कोशिश की गई, लेकिन अब बड़ी सफलता मिली है। उम्मीद है कि इंसाफ मिलेगा।'
आंखों के सामने जल रहे थे लोगों के आशियाने
लक्ष्मी कौर दंगे के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि मेरा परिवार सुलतानपुरी गुरुद्वारे के पास रहता था। एक नवंबर की सुबह भारी भीड़ वहां पर पहुंची। कुछ के हाथों में पेट्रोल भरी हुई बोतलें थी, तो कुछ के हाथों में लाठी-डंडे। पहले उन्होंने पेट्रोल पंप फेंककर घरों में आग लगाई। फिर घरों में घुसने का प्रयास किया। मुझे याद है कि तीन दिन तक घर में आग लगी रही और बाहर सड़कों पर कत्लेआम था। हर गली में लाश पड़ी थी। घरों में आग लगी तो हमने पार्कों में रातें गुजारी।
कत्लेआम के लिए घरों के बाहर भीड़ खड़ी थी
त्रिलोकपुरी निवासी शाम्मी कौर कहती हैं कि वो दिन बहुत ही भयावह थे। मैंने अपने परिवार के आठ लोगों को खोया। उन्होंने 15 साल के बेटे को भी नहीं छोड़ा। वो दिन याद आते हैं तो रूह भी कांप उठती है। हम घरों में कैद थे, क्योंकि कॉलोनी से जुड़ी सभी गलियों के बाहर भीड़ खड़ी थी, जो इंतजार करती थी कि किस घर का दरवाजा खुले। फिर उसी घर में घुस जाते थे और कत्लेआम करने लगे थे। मेरे 15 साल के बेटे को घर से बाहर निकालकर मारा।