लाइब्रेरी की बिल्डिंग तोड़ने पर MCD को फटकार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कोई दैवीय शक्ति नहीं जो आपको जगा सके
सुप्रीम कोर्ट ने प्रभावित पक्ष को राहत पाने का मौका दिए बिना एक पब्लिक लाइब्रेरी वाली बिल्डिंग को ध्वस्त करने पर एमसीडी को कड़ी फटकार लगाई। शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई दैवीय शक्ति नहीं है जो आपको जगा सके।
सुप्रीम कोर्ट ने एक बिल्डिंग को ध्वस्त करने के लिए दिल्ली नगर निगम को कड़ी फटकार लगाई है। जस्टिस सूर्यकांत और उज्जल भुइयां की पीठ ने सवाल किया कि शीर्ष अदालत में जाने के लिए पार्टियों को मौका दिए बिना नागरिक निकाय उस इमारत को कैसे ध्वस्त कर सकता है, जिसमें 1954 से दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरी स्थित था।
पीठ ने नाराज होकर कहा कि वर्षों से लोग आपको जगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। ऐसी कोई दैवीय शक्ति नहीं है जो आपको जगा सके। इस मामले में एक सप्ताह के भीतर आपने बिजली की तेजी से काम किया और इमारत को ध्वस्त कर दिया। पीठ ने एमसीडी की ओर से कोर्ट में मौजूद वकील को चेतावनी देते हुए कहा, हम न केवल जांच का आदेश देंगे बल्कि अगर कुछ गलत पाया जाता है तो इमारत की बहाली का भी निर्देश दिया जाएगा। "
पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट ने 10 सितंबर 2018 को मामले में एक आदेश पारित किया था। उसके बाद किरायेदारों और इमारत में रहने वाले अन्य लोगों को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने का समय दिए बिना एमसीडी ने 18 सितंबर 2018 को इमारत को ध्वस्त कर दिया।
पीठ ने कहा कि अजीब बात है कि सुनवाई के दौरान एमसीडी के वकील ने कहा कि नगर निकाय ने तोड़फोड़ नहीं की थी। पीठ ने कहा कि इमारत के मालिक ने अदालत के संज्ञान में एक तस्वीर लाई है, जिसमें एमसीडी के एक कार्यकारी इंजीनियर को बिल्डिंग को ध्वस्त करने के लिए भारी मशीनरी के साथ आते हुए दिखाया गया है।
पीठ ने कहा, "एमसीडी और प्रतिवादी नंबर 2 (मैसर्स डिंपल एंटरप्राइज) को कारण बताओ नोटिस जारी किया जाए ताकि वे बताएं कि किसके आदेश पर विध्वंस की कार्रवाई की गई थी।" अदालत को यह जानने की जरूरत है कि ऐसी कौन सी छिपी हुई परिस्थितियां थीं जिसके कारण एमसीडी ने पार्टी को शीर्ष अदालत में जाने के अधिकार से वंचित कर दिया।
एमसीडी को एक हलफनामा दायर करने का निर्देश देते हुए पीठ ने विवाद से जुड़ी एक निजी कंपनी डिंपल एंटरप्राइज से अपने संस्थापकों का विवरण देने और उन परिस्थितियों को समझाने के लिए कहा, जिनके कारण इमारत को ध्वस्त किया गया। पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया फर्म के प्रमोटरों और एमसीडी की विध्वंस कार्रवाई के बीच कुछ संबंध प्रतीत होता है। पीठ ने कहा कि वह इसकी सच्चाई का पता लगाएगी।
पीठ ने कहा कि उसका 18 सितंबर 2018 का अंतरिम आदेश अगले आदेश तक जारी रहेगा। 18 सितंबर 2018 को शीर्ष अदालत ने आदेश दिया था कि करोलबाग में संपत्ति का कोई भी हिस्सा ध्वस्त नहीं किया जाएगा। शीर्ष कोर्ट ने दिल्ली लाइब्रेरी बोर्ड द्वारा हाई कोर्ट के 10 सितंबर 2018 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर एक नोटिस जारी किया था। इसमें डीपीएल को अपनी शाखा को जनता के लिए सुलभ किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित करने के लिए छह महीने का समय दिया गया था।
हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि चूंकि उसके समक्ष याचिका मुख्य रूप से डीपीएल की करोलबाग शाखा में पुस्तकों के संरक्षण से संबंधित है, इसलिए वह उस इमारत के विवाद में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जहां 1954 से पुस्तकालय स्थित था।
हाई कोर्ट का आदेश उत्तरी दिल्ली नगर निगम द्वारा लाइब्रेरी को परिसर खाली करने के नोटिस के खिलाफ एक याचिका पर आया था, जो कि नगर निगम के अनुसार खतरनाक था। निगम की ओर से लाइब्रेरी को दो नोटिस जारी कर इमारत खाली करने को कहा गया था ताकि इसे तोड़ा जा सके।