बहादुरी का जज्बा भारतीय सेना की सबसे बड़ी पेशेवराना ताकत
भारतीय सेना की बहादुरी और पेशेवर क्षमता की पहचान है। सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी के अनुसार, भारतीय सेना हर प्रकार की युद्ध परिस्थितियों में सक्षम है। 1971 के युद्ध के नायक लेफ्टिनेंट...
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बहादुरी का जज्बा भारतीय सेना की सबसे बड़ी पेशेवराना ताकत
चीन और अमेरिका के बाद दुनिया में तीसरी सबसे बड़ी सेना भारत की है, लेकिन यदि उसकी पेशेवर क्षमता की बात करें तो वह दुनिया में नंबर वन है। भारतीय सेना की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह हर किस्म की जंग लड़ने में सक्षम है। यह मानना है सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी का। उनका कहना है कि नदी, समंदर से लेकर ऊंचे पहाड़ हों या शून्य से 60 डिग्री नीचे तापमान वाले इलाके। या फिर 50 डिग्री तापमान में तपता रेगिस्तान। हर जगह सेना की बहादुरी दुश्मन पर भारी पड़ी है। भारतीय सैनिकों की सबसे बड़ी खूबी उनकी बहादुरी है। बहादुरी का ऐसा जज्बा किसी और सेना में नहीं है। इतना ही नहीं, आज हमारी सेना अत्याधुनिक उपकरणों, युद्ध की नई तकनीकों और अंतरिक्ष कमान जैसी तकनीकों से भी लैस हो चुकी है। यह उसकी पेशेवर क्षमता को और बढ़ा रहा है। एक बड़ी खूबी भारतीय सेना की यह भी है कि वह निरंतर खुद को अपग्रेड करती है।
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सेना के गुमनाम योद्धाओं की गाथा
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह : बदल दिया था 1971 के युद्ध का रुख
लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह 1971 के भारत-पाक युद्ध के गुमनाम नायक थे। उन्होंने पाकिस्तान को धूल चटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जनरल सगत ने अगरतला सेक्टर की तरफ से हमला बोला और अपनी सेना को लेकर आगे बढ़ते रहे। जनरल अरोड़ा ने उन्हें मेघना नदी पार नहीं करने का आदेश दिया लेकिन हेलिकॉप्टरों की मदद से चार किलोमीटर चौड़ी मेघना नदी के पार उन्होंने पूरी ब्रिगेड उतार दी और आगे बढ़ गए। लेफ्टिनेंट जनरल सगत के नेतृत्व में भारतीय सेना ने ढाका को घेर लिया और जनरल नियाजी को आत्मसमर्पण का संदेश भेजा। छह युद्ध लड़ने वाले लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने 1965 के युद्ध में नाथूला दर्रे को चीन से बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दिसंबर 1961 में उनके नेतृत्व में ही गोवा को पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया। इससे पुर्तगाल आगबबूला हो गया। वहां की सरकार ने उनको जिंदा या मुर्दा पकड़ कर लाने पर नकद ईनाम तक रख दिया था।
कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे : बर्फीली चट्टान पर चढ़ाई के लिए उतार दिए थे जूते
कारगिल युद्ध में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले नागा योद्धा शहीद कैप्टन नेइकेझाकुओ केंगुरुसे की शहाहत की कहानी गर्व से भरने वाली है। 28 जून 1999 के दिन द्रास सेक्टर में 16,000 फुट की ऊंचाई पर बर्फीली चट्टान पर खड़ी चढ़ाई करनी थी। हड्डियां गला देने वाली ठंड थी। दुश्मन पर धावा बोलने के लिए चढ़ाई करते समय बर्फीली चट्टान पर केंगुरुसे के पैर फिसल रहे थे। केंगुरुसे ने बदन जमा देने वाली ठंड में अपने जूते उतार दिए थे। चट्टान के पास पहुंचते ही वह और उनकी पलटन दुश्मन की गोलीबारी की चपेट में आ गए। शरीर से अत्यधिक खून बह जाने पर भी केंगुरुसे ने हार नहीं मानी और साथी जवानों को आगे बढ़ने के लिए उनमें जोश भरते रहे। दुश्मन की मशीनगन के बीच चट्टान के रूप में एक दीवार थी। केंगुरुसे नंगे पैर रॉकेट लॉन्चर लेकर चट्टान की दीवार पर चढ़ गए। अपनी जान की परवाह किए बिना केंगुरुसे ने दुश्मन की मशीन गन को नष्ट करने के लिए उस पर रॉकेट लॉन्चर दाग दिया। साथ ही दुश्मन के चार सैनिकों को ढेर कर दिया। मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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मेजर जनरल गुरबख्श सिंह : टैंक रेजीमेंट को कर दिया था नेस्तनाबूद
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान, मेजर जनरल गुरबख्श सिंह माउंटेन डिवीजन के जनरल कमांडिंग ऑफिसर थे। उन्हें खेमकरण सेक्टर में पाकिस्तान के खिलाफ ऑॅपरेशन की जिम्मेदारी दी गई थी। ऑपरेशन के दौरान, मेजर जनरल सिंह का सामना पाकिस्तान के तीन आर्मर्ड ग्रुप और पूरी इंफेंट्री डिविजन से था। दुश्मन सेना से संख्या बल में कम होने के बावजूद मेजर जनरल सिंह अपने लक्ष्यों पर कब्जा करने में कामयाब रहे। मेजर जनरल गुरबख्श सिंह की यह नेतृत्व क्षमता था कि उन्होंने न केवल टैंक रेजीमेंट को नेस्तनाबूद कर दिया, बल्कि बाकी बचे दुश्मन सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कर दिया। अनुकरणीय नेतृत्व और अदम्य साहस के लिए मेजर जनरल गुरबख्श सिंह को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
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