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यूपी के ध्यानार्थ::::: सरकारी कर्मचारी को बड़ी सजा के प्रस्ताव पर मौखिक साक्ष्य जरूरी : सुप्रीम कोर्ट

- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का फैसला खारिज नई दिल्ली,

Newswrap हिन्दुस्तान, नई दिल्लीMon, 18 Nov 2024 11:04 PM
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- इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का फैसला खारिज नई दिल्ली, एजेंसी।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि उप्र. सरकारी कर्मचारी (अनुशासन और अपील) नियम, 1999 के तहत जांच में बड़ी सजा का प्रस्ताव होने पर लोक सेवक के खिलाफ आरोपों के सापेक्ष मौखिक साक्ष्य दर्ज करना अनिवार्य है।

शीर्ष अदालत ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें एक अखिकारी के खिलाफ अनुशासनात्मक प्राधिकारी के आदेश की पुष्टि की गई थी। वाणिज्य कर के सहायक आयुक्त के पद पर तैनात अधिकारी को अनुशासनात्मक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था। अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने नवंबर 2014 में निंदा प्रविष्टि की सजा के साथ-साथ दो ग्रेड वेतन वृद्धि रोकने का आदेश दिया था। अधिकारी ने राज्य लोक सेवा न्यायाधिकरण, लखनऊ के समक्ष जुर्माना लगाने के आदेश को चुनौती दी थी। न्यायाधिकरण ने आदेश को खारिज कर दिया और निर्देश दिया कि वह सभी परिणामी लाभों का हकदार होगा। बाद में, अनुशासनात्मक प्राधिकारी ने हाईकोर्ट में न्यायाधिकरण के आदेश को चुनौती दी। वहां न्यायाधिकरण के आदेश खारिज हुआ। इसके बाद अधिकारी ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और संदीप मेहता की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि पक्षों के बीच इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अधिकारी पर लगाया गया जुर्माना 1999 के नियमों के अनुसार बड़ा जुर्माना था। पीठ ने कहा कि हमारा मत है कि अपीलकर्ता (अधिकारी) के खिलाफ बड़े जुर्माने से दंडनीय आरोपों से संबंधित जांच कार्यवाही पूरी तरह से दोषपूर्ण और कानून की नजर में गैर-कानूनी थी, क्योंकि आरोपों के सापेक्ष विभाग द्वारा कोई भी मौखिक साक्ष्य दर्ज नहीं किया गया था।

न्यायाधिकरण का निर्णय सही

पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट ने न्यायाधिकरण के सही निर्णय में हस्तक्षेप करते हुए गंभीर त्रुटि की है। लिहाजा 30 जुलाई, 2018 के विवादित निर्णय को रद्द किया जाता है और उसे अलग रखा जाता है। साथ ही लोक सेवा न्यायाधिकरण द्वारा 5 जून, 2015 को दिए गए आदेश को बहाल किया जाता है। पीठ ने कहा कि अधिकारी सभी परिणामी लाभों का हकदार है।

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