राजदरबार: उम्मीद कायम
कांग्रेस में लंबे समय से संगठन में बदलाव की उम्मीद बरकरार है, जबकि भाजपा के एक बड़े नेता अपनी हार के सदमे में हैं। उत्तर प्रदेश में चुनावी प्रक्रिया में टीएन शेषन की सख्ती चर्चा का विषय है। दिल्ली में...
उम्मीद कायम कांग्रेस में लंबे वक्त से संगठन में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ है। पर हर माह पार्टी के शीर्ष नेता कोई न कोई बयान देकर बदलाव को हवा देते हैं। पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के इस तरह के बयानों के बाद पार्टी मुख्यालय और वरिष्ठ नेताओं के पास संगठन में पद के दावेदारों की भीड़ बढ़ जाती है। कुछ दिन तक जब कुछ नहीं होता, तो जोश ठंडा पड़ जाता है। लेकिन पद के दावेदारों के हौसले अभी पस्त नहीं हुए हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने जब हरियाणा के ऐसे ही दावेदार को समझाते हुए कहा कि उसे इस तरह चक्कर काटने के बजाय प्रदेश में काम करना चाहिए, तो उसने कहा कि जब तक उसे केंद्रीय संगठन में जगह नहीं मिल जाती है, वह उम्मीद बरकरार रखेगा।
खुद फंसे
उत्तराखंड में हाल ही में हुए निकाय चुनाव परिणाम से भाजपा खुश है, लेकिन भाजपा के एक बड़े नेताजी इन दिनों सदमे में बताए जा रहे हैं। दरअसल, नेताजी ने अपने विधानसभा क्षेत्र के नगर निगम से कुछ विरोधियों का पत्ता काटने कि लिए एक चाल चली। दमदार प्रत्याशी होने के बावजूद नेताजी ने एक निर्दलीय को पहले पार्टी में शामिल कराया फिर टिकट भी दिला दिया। चूंकि, नेताजी की ऊपर तक ठीक-ठाक पहुंच है तो अन्य बड़े नेताओं ने भी इसका विरोध नहीं किया। अलबत्ता, क्षेत्र में नेताजी के विरोधी जो पहले कानाफूसी तक ही सीमित रहते थे, अब नेताजी के खिलाफ खुलकर सामने आ गए हैं। नेताजी को चुनाव में तब बड़ा झटका लगा, जब उनके उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा। नगर निगमों में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया पर नेताजी के इलाके में पार्टी गच्चा खा गई। इस पीड़ा से नेताजी सदमे में हैं। इस हार के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि अब तो नेताजी को खुद के लिए भी दूसरी सीट तलाशनी पड़ सकती है।
शेषन स्टाइल
उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी दल में चल रहे संगठन चुनाव में इन दिनों पूर्व चुनाव आयुक्त रहे टीएन शेषन की ही चर्चा हो रही है। चुनाव का जिम्मा संभाल रहे नेताजी की सख्ती देख सबको टीएन शेषन याद आ रहे हैं। भाजपा के इन शेषन साहब ने जिस दिन से पद संभाला है, गजब प्रोटोकॉल का लुत्फ उठा रहे हैं। दिल्ली-लखनऊ से लेकर काशी-प्रयाग तक खूब दौड़ रहे हैं। आचार संहिता पर तो उनका खासा जोर है। चुनाव संबंधी कोई खबर किसी और के हवाले से सार्वजनिक होने पर साहब भड़क उठते हैं। देर रात तक चलने वाली स्क्रीनिंग बैठकों में भी उनका जलवा है। बैठकों में देर से पहुंचने की आदत भी है लेकिन कानाफूसी होती है मगर कोई कुछ कह नहीं पाता। पद चाहने वालों की भीड़ ने नेताजी के दर पर पसरे रहने वाले सन्नाटे को भी दूर कर दिया है। अब पार्टी नेता कहते फिर रहे हैं कि साहब जलवे को लंबा रखने के लिए चुनाव प्रक्रिया धीमी किए हुए हैं।
साथ-साथ?
दिल्ली चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी आमने-सामने हैं लेकिन संसद में दोनों दल क्या करेंगे? इस सवाल पर एक नेता ने कहा हमारा विरोध तो हमेशा से है। हरियाणा में, गुजरात में अन्य जगहों पर भी हम विरोध में लड़े लेकिन संसद में हमारा विरोध या समर्थन मुद्दों पर होता है। अगर कांग्रेस जो मुद्दे उठाती है वह हमारे अनुरूप है तो साथ होंगे अगर वे अपनी सुविधा का ही ख्याल रखेंगे तो हम उनके साथ क्यों होंगे। कहा जा रहा है कि असली रणनीति पांच तारीख के नतीजे देखकर तय होगी। तब तक संसद में कभी दूर दूर, कभी साथ-साथ का माहौल दिखेगा।
नजर में रहो
भाजपा में संगठन चुनाव के बाद नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के साथ न केवल राष्ट्रीय स्तर पर नई टीम आएगी, बल्कि राज्यों में भी संगठन में कई बदलाव होंगे। संगठन के कुछ नेताओं के सरकार में जाने और सरकार से कुछ नेताओं के संगठन में आने की भी चर्चा है। लंबे समय से संगठन में काम कर रहे नेताओं, खासकर जो सांसद और विधायक हैं उनको उम्मीद है कि इस बदलाव में अब सरकार में भी काम करने का मौका मिल सकता है। जो सांसद हैं, उनको केंद्र सरकार में होने वाले संभावित फेरबदल में लाभ मिलने की उम्मीद है, वहीं जो विधायक हैं उनको राज्यों में सरकारों में भागीदारी का मौका मिल सकता है। इसे देखते हुए सभी नेता अपनी-अपनी जुगत बना रहे हैं कि ऐसा मौका हाथ से न निकल जाए। इसलिए कोई भी आकांक्षी नेता केंद्रीय नेतृत्व की नजर में आने का कोई मौका नहीं छोड़ रहा है।
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