विपक्ष की रणनीति यूपी में नहीं हुई सफल
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता का संदेश और नैरेटिव सेट
नई दिल्ली, विशेष संवाददाता लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता का संदेश और नैरेटिव सेट करने में सफल रहा विपक्ष इस बार यूपी के उपचुनाव में पूरी तरह चूक गया। इस बार विपक्ष जमीन पर पूरी तरह बिखरा नजर आया। सपा का एकला चलो का दांव कामयाब नहीं हुआ।
उपचुनाव में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव अकेले चुनाव मैदान में थे। चुनाव मैदान से दूर कांग्रेस प्रचार से भी दूर रही। लिहाजा विपक्षी रणनीति का सारा दारोमदार अकेले अखिलेश के कंधों पर था। अब इसे उनका आत्मविश्वास कहें या फिर मजबूरी लेकिन मैदान में उन्हें अकेले ही भाजपा से जूझना पड़ा और नतीजा अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा।
कारगर नहीं हुआ नैरेटिवः
बसपा और आजाद समाज पार्टी अलग मैदान में थे। उनकी रणनीति को लेकर भी विपक्षी खेमे का ध्यान नहीं गया। लोकसभा चुनाव में पीडीए की अवधारणा कांग्रेस के समर्थन से परवान चढ़ी थी। संविधान के मुद्दे पर दलित वोट भी बड़ी संख्या में विपक्ष के खेमे में शिफ्ट हुआ था। माना गया था दलित और मुस्लिम वोट को साथ लाने में कांग्रेस की अहम भूमिका थी लेकिन इस बार नैरेटिव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने नारे ‘कटेंगे तो बंटेगे से तय किया। उन्होंने विपक्ष के संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर खड़ा किया गया नैरेटिव भी परवान नहीं चढ़ने दिया।
सपा नहीं दे पाई संदेशः
सपा की ओर से ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे का जवाबी नारा नहीं चला और पार्टी सोशल इंजीनियरिंग को लेकर भी बड़ा संदेश नहीं दे पाई। जानकारों का कहना है कि सपा लोकसभा चुनाव में मिली जीत से अति-उत्साहित थी। उसने वही गलती की, जो कांग्रेस ने हरियाणा में की थी। सामूहिक विपक्ष के बजाय खुद को ही विपक्ष का केंद्र मान लिया। इसका नतीजा उल्टा हुआ।
माना जा रहा है कि नतीजों के बाद विपक्षी खेमे में हलचल बढ़ेगी और सपा के लिए आने वाले दिनों में चुनौती भी बढ़ेगी। जानकारों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के दौरान विपक्ष के खेमे में जो ‘मोमेंटम बना था, उपचुनाव के नतीजों ने उसे तोड़ दिया है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।